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हमारा कर्तव्य

है बल्कि यह कि आत्म-निर्णय हिंदुस्तान का निर्विवाद अधिकार है।

अच्छा होगा कि इस बारे में एक-न-एक बहाना खड़ा करके सत्याग्रह की घोषणा करने में मेरी अनिच्छा का दोषारोपण करते हुए जो पत्र मुझे मिले हैं उनका भी जिक्र मैं कर दूँ। इन मित्रों को जान लेना चाहिए कि अहिंसा-अस्त्र के सफल प्रदर्शन के लिए मैं उनसे ज्यादा चिंतित हूँ। इस शोध के अनुगमन में मैं ऐसा लगा हूँ कि अपने को एक पल का विश्राम नहीं दे रहा हूँ। निरन्तर मैं प्रकाश के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ। लेकिन बाहरी दबाव के कारण मैं सत्याग्रह छेड़ने में जल्दबाजी नहीं कर सकता-ठीक वैसे, जैसे कि बाहरी दबाव के कारण में उसको छोड़ नहीं सकता। मैं जानता हूँ कि यह मेरी सबसे बड़ी कसौटी की घड़ी है। यह दर्शाने के लिए मेरे पास बहुत ज्यादा सबूत हैं कि बहुतेरे कांग्रेसकर्मियों के हृदय में काफी हिंसा भरी है और उनमें स्वार्थ की मात्रा भी बहुत ज्यादा है। अगर कांग्रेसकार्यकर्ता अहिंसा की सच्ची भावना से ओत-प्रोत होते तो स्वतन्त्रता हमें १६२१ ई० में ही मिल गई होती और हमारा इतिहास आज कुछ दूसरा ही लिखा गया होता। लेकिन मुझे शिकायत नहीं करनी चाहिए। जो औजार मेरे पास हैं उन्हींसे मुझे काम करना है। मैं इतना ही चाहता हूँ कि कांग्रेसी लोग मेरी ऊपर से दीख पड़नेवाली अक्रियता का कारण जान लें।

‘हरिजन-सेवक': २० मई; १९४०