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युद्ध और अहिंसा


स्वभाव का कुछ ज्ञान ही नहीं है। यह मेरे लिए एक निर्दोष प्रमाण-पत्र होगा, जिसके कारण न वैरभाव पैदा होना चाहिए, न क्रोध। यह प्रमाण-पत्र निर्दोष होगा, क्योंकि मुझे पहले भी कई ऐसे प्रमाण-पत्र मिल चुके हैं। उनकी यह सबसे नई आवृत्ति होगी और मैं आशा रखता हूँ कि सबसे आखिर की नहीं, क्योंकि मेरे बेवकूफी के प्रयोग अभी खत्म नहीं हुए।

जहाँतक हिन्दुस्तान का वास्ता है, अगर वह मेरी शुद्ध अहिंसा की नीति को अपनायें, तो उससे उसे नुकसान पहुँच ही नहीं सकता। अगर हिन्दुस्तान एकमत से उसे नामंजूर करता है, तो भी उससे देश को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। नुकसान अगर होगा तो उन लोगों का, जो मूर्खता' से उसपर अमल करते रहेंगे! पत्र-लेखक ने यह कहकर कि ‘महात्माजी अपने-आपको अपनी सामग्री के मुताबिक बनाने की अजीब शक्ति रखते हैं? मेरा बड़ा भारी गुण बताया है। मेरी सामग्री की बाबत मेरे स्वाभाविक ज्ञान ने मुझे ऐसी श्रद्धा दी है कि जो हिलाई नहीं जा सकती। मुझे अऩ्दर से महसूस होता है कि सामग्री तैयार है। मेरी इस अंदरूनी आवाज ने आजतक मुझे कभी धोखा नहीं दिया। मगर मुझे पिछले अनुभव की बुनियाद् पर कोई बड़ी इमारत नहीं खड़ी करनी चाहिए। ‘मुझे अलम् है देव, एक डग।'

‘हरिजन-सेवक' : ३ अगस्त, १९४०