बिल्लेसुर बकरिहा/१३

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बिल्लेसुर बकरिहा  (1941) 
द्वारा सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

[ ४१ ]

(१३)

त्रिलोचन दूसरे दिन आये, और कहा, "बिल्लेसुर, तैयार हो जाओ।"

बिल्लेसुर ने कहा, "मैं तो पहले से तैयार हो चुका हूँ।"
त्रिलोचन ख़ुश होकर बोले, "तो अच्छी बात है, चलो।" [ ४२ ]

बिल्लेसुर ने कहा, "भय्या, मन्नी की मौसिया सास की भतीजी को ससुराल में एक लड़की है, कल आये थे, बातचीत पक्की कर गये हैं, अब तो मुझे माफ़ी दीजिये।"

त्रिलोचन नाराज होकर बोले, "तो वह ब्याह ज़रूर गैतल होगा। वैसी ही लड़की होगी। हम शर्त बदकर कह सकते है।" मुस्कराकर बिल्लेसुर ने जवाब दिया, "और तुम्हारा दूध का धोया है? मन्नी की मौसिया सास की भतीजी की ससुराल की लड़की में दाग़ है, और तुम्हारी में, जिसके न बाप का पता, न माँ का, न सम्बन्ध का, मखमल का झब्बा लगा है?"

"देखो, फिर पीछे पछताओगे।" त्रिलोचन बढ़कर बोले।

"पछताने का काम ही नहीं करते; बहुत समझकर चलते हैं, त्रिलोचन भय्या।" बिल्लेसुर ने कड़ाई से जवाब दिया।

"अच्छा, चलकर ज़रा लड़की तो देख लो, तुम्हें लड़की भी दिखा देंगे।"

"अब, लड़की नहीं, लड़की की आजी तक को दिखाओ तो भी मैं नहीं जाऊँगा। जब घर में, अपने नातेदारों में लड़की है तब दूसरी जगह नहीं जाना चाहिये। यह तो धर्म छोड़ना है। गृहस्थ की लड़की का रूप नहीं देखा जाता, गुण देखा जाता है। कहते हैं, रूपवती लड़की बदचलन होती है।"

"तो यह तेरे लिये सावित्री आ रही है। देख ले, अगर गाँव के धिंगरों से पीछा छूटे।"

"वह सब हमें मालूम है। लेकिन घर का सामान लेकर भाग न जायगी, देख लेना। जो मुसीबत पड़ेगी, झेलेगी। किसी का धर्म बिगाड़ने से नहीं बिगड़ता। गाँव में सब का हाल हमें मालूम है।" [ ४३ ]

"तू सबको दोष लगा रहा है।"

"मैं किसी को दोष नहीं लगा रहा, सच-सच कह रहा हूँ।"

"अच्छा बता, हमें क्या दोष लगा है, नहीं तो––"

"तुम चले जाओ यहाँ से, नहीं तो मैं चौकीदार के पास जाता हूँ।"

चौकीदार के नाम से त्रिलोचन चले। करुणा-भरे क्रोध से घूम-घूमकर देखते जाते थे।

बिल्लेसुर अपना काम करने निकले।