बेकन-विचाररत्नावली/१५ यौवन और जरा

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बेकन-विचाररत्नावली  (1899) 
द्वारा महावीरप्रसाद द्विवेदी
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यौवन और जरा १५.

[१] तेन वृद्धो भवति येनाऽस्य पलितं शिरः।
यो वै युवाऽप्यधीयानस्तं देवा:स्थविरं विदुः॥

मनुस्मृति।

जो मनुष्य वर्षों मे छोटा है, वह, यदि उसने अपना समय वृथा नष्ट नहीं किया,तो घंटों बडा हो सकता है। तात्पर्य यह है कि अल्पवयस्क होकर भी जिसने अपने अमूल्य समय का अपव्यय नहीं किया, उसके ज्ञानवृद्ध होने में कोई आपत्ति नहीं आसकती; परन्तु यह बात बहुत कम पाई जाती है। मनुष्य के पहिले पहिल उत्पन्न हुए विचार जैस आगे के विचारों की अपेक्षा निकृष्ट होते हैं वैसेही तारुण्य में वृद्धापकाल की अपेक्षा बुद्धिका विकास कम होताहै। वय का परिपाक न होने से ज्ञानका परिपाक नहीं होता; जैसे जैसे वयोवृद्धि होतीहै वैसे वैसे बहुदर्शिता भी बढ़ती जाती है; परन्तु नूतन वय में वृद्धावस्था की अपेक्षा अभिनव शोध निर्माण करने की शक्ति बलवती रहती है और कल्पनाओं के स्रोत मन में आधिक वेग से बहते हैं। जो मनुष्य पित्तप्रकृति के हैं और जिनका मन अति उच्छृंखल तथा जिनकी भोगवासना अति प्रबल होती है वे यौवन का उन्माद उतरने के पहिले किसी सत्कार्य में अभिनिवेश करने के योग्य नहीं होते। रोम के सार्वभौम राजा जूलियस सीज़र और सेप्टीमियस सिवेरस इसी प्रकार के थे। इनमें से दूसरे अर्थात् सेप्टीमियस सिवेरस के विषय में कहीं लिखा है कि उस ने अपना सारा वय सार्वजनिक कार्यों में शतशः भूल करने और तज्जनित पश्चात्ताप पाने में व्यतीत किया। परन्तु फिर भी यह कहना अत्युक्ति न होगी कि वास्तव में और सब राजाओं की अपेक्षा वही विशेष योग्य था। जो स्वभावतः शान्त और धीर होते हैं वे तरुणता में भी अपना काम काज भली भांति कर सकते हैं। [ ४१ ]उदाहरणार्थ—रोम का राजा आगस्टस सीज़र, फ्लारेन्स का कास्मस ड्यूक; गास्टन डी फाइक्स इत्यादि। परन्तु यदि वृद्धवय में तारुण्य के समान ओजस्विता और उत्साह हो तो फिर क्या पूछना है? सोने और सुगन्ध कासा मेल समझना चाहिये। तरुण मनुष्य विवेचना की अपेक्षा कल्पना करने में; किसी विषय में उपदेश देने की अपेक्षा कार्य करनेमें; और निश्चित व्यवसायमें लगनकी अपेक्षा नई नई युक्ति निकालनेमें अधिकतर नैपुण्य दिखाते है। प्राचीनोंको काम काज करते करते जो अनुभव आताहै वह अनुभव तत्तत्कार्य करने में नवीनोंका मार्गदर्शक होताहै; परन्तु कोई नई बात उपस्थित होनेपर वृद्धोंके अनुभवका तरुणोंको तादृश उपयोग होना तो दूर रहा उलटा उससे उन्हें वंचित होना पड़ताहै।

तरुण मनुष्यकी भूलसे काम काजका सर्वनाश तक होजाताहै परन्तु वृद्धोंकी भूलका इतनाही परिणाम होताहै कि कार्य कम अथवा विलम्बसे होताहै। बस। तरुण मनुष्य जब किसी व्यवसाय में प्रवृत्त होतेहैं तब जो वे कर नहीं सकते उसमेंभी हस्ताक्षेप करते हैं; शान्त न रहकर निरर्थक चंचलता दिखातेहैं; अपनी सामग्री और क्रम इत्यादि का विचार न करके सहसा आकाश पाताल एक करने लगतेहैं; दो चार बातें जो इधर उधरसे सीखली हैं उन्हींके अनुसार व्यवहार करनेमें व्यग्र होतेहैं; कोई नवीन प्रकरण उपस्थित होने पर उसकी ओर ध्यान नहीं देते जिससे अनेक अज्ञात असुविधा उत्पन्न होतीहैं; और पहलेहीसे प्रचण्ड उपायोंकी योजना आरम्भ कर देते हैं। सबसे बढ़कर आश्चर्य तो यह है कि इतना करकेभी वे अपनी भूल स्वीकार नहीं करते। जैसे नवीन घोड़ा न तो पीछे फिरताहै और न चुपचाप खड़ाही रहताहै वैसेही तरुण जनभी भूल करके न तो उसे मानते हैं और न पीछेही लेते हैं।

वृद्ध जन सभी कामोंमें आपत्ति उत्थान करते हैं; परामर्श करनेमें बहुत काल व्यतीत करदेते हैं; साहसका काम करते डरतेहैं; पश्चात्ताप [ ४२ ] शीघ्र पातेहैं; आरम्भ किये गये कार्यका अन्त किये बिनाही उसे बहुधा छोड़ देते हैं; और थोड़ीही सिद्धिसे समाधान मानतेहैं। अतएव युवा और जरठ दोनों अवस्था के मनुष्योंसे काम लेना सर्वोत्तम हैं। ऐसा करनेसे वर्त्तमान और भविष्यत् दोनों कालमें लाभ होगा; क्योंकि तरुणों की न्यूनता वृद्ध और वृद्धोंकी न्यूनता तरुण परिपूर्ण करैंगे, तथा वृद्धों से तरुण जन काम सीखकर आगे के लिए चतुर भी होजावेंगे। दोनों अवस्थावालों के मेल से वृद्धों की ओर अधिकार और तरुणों की ओर लोकप्रियता रहती है; इसलिए आकस्मिक विघ्नों से कार्य में व्याघात नहीं आता। व्यवहार शास्त्र में वृद्ध विशेष आस्था व्यक्त करते हैं। लिखाहै कि "तुम्हारे तरुणजनों को दृष्टान्त और वृद्ध जनों को स्वप्न देख पड़ैंगे"। इस वाक्य से यहूदी जाति का एक महात्मा यह अनुमान करता है कि वृद्धों की अपेक्षा तरुण ईश्वर के अधिक सन्निकट हैं; क्योंकि स्वप्न से दृष्टान्त अधिक स्पष्ट होताहै। सत्यहै; मनुष्य को संसार का जितनाही अधिक अनुभव होताहै उतनाही विषय उसे अधिक मत्त करदेते हैं; अतएव यह सिद्ध है कि सद्वासना और प्रेमकी अपेक्षा सारासार विचारशक्ति को जरा विशेष वृद्धिंगत करती है।

कुछ लोग थोड़ेही वय में वयोवृद्ध जनों के समान पारिपक्वबुद्धिके होजाते हैं। उनकी बुद्धि का विकास वयस्क होने पर संकुचित होजाता है। इस प्रकार का मनुष्य रोम में हारमोजीनियस[२] नामक अलंकारशास्त्रवेत्ता होगया है; तत्कृत ग्रन्थ बहुतही उत्कृष्ट हैं; परन्तु अधिक वयमें उसकी बुद्धि कुंठित होगई थी। किसी किसीमें अस्खलित और मोहकभाषणके समान कोई २ ऐसे स्वाभाविकगुण होते हैं जो वृद्धावस्थाकी अपेक्षा [ ४३ ] युवावस्थामें विशेष शोभा देते हैं। इस कक्षा में हारटेन्शियस[३] के समान पुरुषों का समावेश होताहै। कुछ इस प्रकारकेभी होते हैं जो अपने वयोमान की अपेक्षा ऊंचा उड्डान भरते हैं और विशेष भव्यता दिखाते हैं। सीपिओ[४] आफ्रिकेनस ऐसाही था।

  1. केश पकजाने से कोई वृद्ध नहीं होता; युवा होकर भी जो बहुश्रुत और विद्वान् है उसीको देवता वृद्ध कहते हैं।
  2. हारमोजीनियस दूसरी शताब्दी में हुवाहै। मरणोत्तर इसके शव की परीक्षा करते समय यह देखागया कि इसके विशाल हृदय के उपर केश उग आएथे। २५ वर्ष के वयमें इसकी स्मरणशक्ति जाती रहीथी।
  3. हारटेन्शियस रोम का एक प्रख्यात वक्ताथा। इसने १९ वर्ष के वयमें अपनी अत्यन्त प्रभावशालिनी वक्तृता के कारण विशेष ख्याति लाभ की थी। सिसरो से ८ वर्ष पहिले इसका जन्म हुआ था।
  4. सीपिओ आफ्रिकेनस रोम में एक विख्यात सेनापति होगयाहै। इसने थोड़ेही वयमें बड़े बड़े पराक्रम के काम किए। ४८ वर्ष की अवस्था में इसकी मृत्यु हुई।