बेकन-विचाररत्नावली/२५ विवाह और अविवाहित्व

विकिस्रोत से
बेकन-विचाररत्नावली  (1899) 
द्वारा महावीरप्रसाद द्विवेदी

[ ७२ ]

विवाह और अविवाहित्व २५.

सानन्दं[१] सदनं सुताश्च सुधियः कान्ता न दुर्भाषिणी
सन्मित्रं सधनं स्वयोषिति रतिश्र्वाज्ञापराः सेवकाः।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्ठान्नपानं गृहे
साधोः संगमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः॥

भर्तृहरि।

स्त्री और लड़के वाले होनेसे मनुष्य प्रारब्धके आधीन सा होजाता है। बड़े बड़े काम उससे नहीं होसकते-चाहै वह काम काज भले हों अथवा बुरे; क्योंकि, स्त्री पुत्रादि साहसके कार्योंके प्रतिबन्धक होते हैं। यथार्थमें उत्तमोत्तम और लोकोपयोगी जितने काम हुए हैं वे सब अविवाहित और सन्ततिहीन मनुष्योंहींके हाथसे हुए हैं। एतादृश मनुष्य सर्वसधारणको अपना प्रेमपात्र बनाकर मानों उन्ही को संवरण करते हैं और अपनी सारी सम्पत्ति भी मानो उन्हीको अर्पण करते हैं। जिनके लड़के वाले हैं उन्हीको विशेष करके भविष्यत् की सबसे अधिक चिन्ता रहती है; कारण यह है कि, वे जानते हैं कि, भविष्यत् ही में हमारी सन्ततिको सांसारिक व्यवसायोंमें लीन होना होगा। बहुतेरे अविवाहित मनुष्य भविष्यत्का कुछ भी विचार [ ७३ ] नहीं करते। वे यह समझते हैं कि जो कुछ है हमी तक है। आगे कुछ नहीं। कोई कोई मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो यह समझते हैं कि स्त्री और लड़के बाले व्ययका कारण मात्र हैं। उनके खाने पीने और वस्त्राच्छादन आदिका प्रबन्ध करना मानो "व्हाइटवे लेडला ऐंड कम्पनी" के बिल चुकाना है। यही नहीं किन्तु कोई कोई ऐसे भी मूर्ख, धनी और मक्खीचूस पड़े हैं जो सन्तान न होना भूषण समझते हैं। वे यह जानते है कि निरपत्य होनेसे हम औरोंकी अपेक्षा अधिक धन सम्पन्न देख पड़ते हैं। स्यात् इन लोगोने इस प्रकारकी बातचीत कभी सुनी होगी। एकने किसीसे कहा "अजी तुमने सुना है वह बड़े पैसेवाले हैं"। इसपर दूसरेने उत्तर दिया "जीहां; परन्तु तुम नहीं जानते उनके पीछे लड़के बालोंका कितना झगड़ा है"। मानो बालबच्चों के पालन पोषण करनेसे सम्पत्ति कम होजाती है। परन्तु विवाह न करनेका सबसे साधारण कारण स्वतन्त्र रहनेकी इच्छा कहना चाहिए। स्वच्छन्दशील, विनोदी और केवल अपनेही सुख को सुख जाननेवाले लोग स्वतंत्र रहनेहीकी इच्छासे विवाह नहीं करते। प्रत्येक अटकावकी बात उनके चित्तमें ऐसी चुभती है मानो किसी दिन वे अपने कमरबन्द और मोजे बांधनेके फीतेकोभी बन्धन और बेड़ीके समान समझने लगेंगे। अविवाहित मनुष्य सर्वोत्तम मित्र, सर्वोत्तम स्वामी और सर्वोत्तम सेवक होते हैं; परन्तु प्रजाका राजाके विषय में जो धर्म है उसके परिपालनमें सदैव सर्वोत्तम नहीं होते। स्थानान्तरमें चले जाना तो उनके लिए कोई बातही नहीं है। भागेहुए सारे मनुष्य प्रायः अविवाहितही होते हैं।

धर्मोपदेशकोंको अविवाहित रहना अच्छा है; क्योंकि गृहस्थाश्रमके फंदेमें फँसजानेसे सर्वसाधारणके हितसाधनकी ओर उनकी प्रवृत्ति कम होजाती है। न्यायाधीशोंके लिये विवाह करना और न करना दोनों बराबर है। यदि वे कानके कच्चे और उत्कोचग्राही हुए तो उनसे अपना काम निकालनेके लिए स्त्रीकी अपेक्षा कई गुणा [ ७४ ] बढ़कर उनका एक आध नौकर मिल जाता है। सैनिक सिपाही लोगोंकी यह बात है कि उनके अधिकारी सेनानायक युद्धमें पराक्रम दिखलानेके लिए उत्तेजित करनेके समय बहुधा उनको उनके स्त्री पुत्रादिहीका स्मरण दिलाते हैं। हमारी समझमें तुर्कलोगोंके नीच जातिवाले सिपाही जो पराक्रमी नहीं होते उसका यही कारण है कि वे लोग विवाह करना तुच्छ मानते हैं।

सत्य तो यह है कि स्त्री और लड़के वाले मनुष्यके लिए दया दाक्षिण्यादि गुणोंके शिक्षक समझने चाहिए। जिनका विवाह नहीं हुआ उनके यहां परिमित व्यय होनके कारण द्रव्यसञ्चय विशेष होता है; परन्तु, दयालुता और धार्मिकता जागृत होनेके जितने प्रसङ्ग स्त्री पुत्रादिके मध्य रहनेवाले कुटुम्बवत्सल मनुष्यको आते हैं उतने अविवाहित मनुष्यको नहीं आते। इसी लिए अविवाहित लोग अधिक निर्दय और पाषाणहृदय होते हैं।

जो मनुष्य स्वाभाविक गम्भीर होते हैं वे अपनीही स्त्रीमें रत रहते हैं और उसे विशेष प्रेम दृष्टिसे देखते हैं। यूलीस्पस[२] ऐसाही था। पतिव्रता स्त्रियां अपने शुद्धाचरणके बलपर बहुधा गर्विष्ठ और हठी होती हैं। जो लोग अपनी स्त्रियोंकी दृष्टि में बुद्धिमान जंच जाते हैं उनकी स्त्रियां सदैव उनके आधीन रहती हैं और उनको छोंड़ अन्यकी ओर दृक्पात तक नहीं करतीं। परन्तु स्त्रियां जब यह समझ जाती हैं कि हमारा पति हमारे विषयमें सशंक है तब कदापि वे उसे बुद्धिमान् नहीं मानतीं; अतः वे उसके वशीभूतभी नहीं रहतीं। मनुष्यके तरुणवयमें स्त्री गृहिणीका काम देती है, मध्यमवयमें [ ७५ ] सखीका काम देती है और उत्तर वयमें दासीका काम देती है। इसलिये मनुष्य चाहै जिस वयमें विवाह करनेकी इच्छा करै इन बातों मेसे एक न एक उसके लिए विवाह करनेका कारणरूप प्रस्तुतही रहतीहै। थेलिस[३] नामक एक परम चतुर और प्रसिद्ध तत्त्ववेत्तासे जब यह किसीने पूछा कि "विवाह कब करना चाहिए?" तब उसने उत्तर दिया कि "युवाको अभी न करना चाहिए और वृद्धको तो कभी करना ही न चाहिए" यह बहुधा देखने में आया है कि जो लोग बुरे स्वभावके होते हैं उनकी स्त्री बहुत सुशीला होती है। नहीं जानते इसका क्या कारण है? कभी कभी किसी विशेष अवसरपर पतिदेवताकी थोड़ी बहुत कृपा कटाक्ष अपने ऊपर हुई देख उसको अधिक परिमाणमें सम्पादन करनेकी इच्छासे वे विनयसम्पन्नता दिखलाती हैं; अथवा पतिका क्रूर व्यवहार सहन करके भी सुशीलता दिखाना वे भूषण समझती हैं; यथार्थ क्या है नहीं कह सकते। हां, यदि किसी स्त्रीने अपने इष्ट मित्रोंके उपदेशको न सुनकर, हठपूर्वक, किसीके साथ विवाह किया और वह दुःशील निकला, तब वह स्त्री अवश्यमेव उसके साथ सहनशीलता व्यवहार करैगी। उस दशामें अपनी मूर्खताको छिपाने के लिए उसे इस प्रकारका आचरण स्वीकार करनाहीं पड़ेगा।

  1. आनन्दमय घर, बुद्धिमान पुत्र, मिष्ठाभषिणी स्त्री, धनी सन्मित्र, स्वस्त्री मे प्रेम, आज्ञाकारी सेवक, अतिथि का आदर, शिवपूजन, प्रतिदिन उत्तम भोजन, सतत साधुसमागम;-जिसके प्रतापसे ये सब प्राप्त होते हैं वह गृहस्थाश्रम धन्य है।
  2. यूलीस्पस ग्रीसमें इथाकाका राजाथा। इसने एक पत्नीव्रत तो न धारण कियाथा परन्तु अपनी पत्नी पिनिलोपपर अतिशय प्रेम रखता था। ग्रीसके पुरातन कवि होमरने ऑडेसी नामक काव्यमें इसका विस्तृत वर्णन किया है। ट्रायके युद्ध में भी यह विद्यमान् था। वहां बड़े बड़े पराक्रमके काम इसने किए हैं।
  3. ग्रीसके ७ चतुर मनुष्योंमेंसे थेलिस भी एक था। इसने ज्योतिष और ज्यामिति शास्त्रमें बड़ी पारंगतता प्राप्तकीथी। इसने विवाह नहीं किया। जब जब इसकी मा इससे विवाह करने को कहतीथी तब तब वह यही उत्तर देताथा कि अभी मेरा वय विवाह करनेके योग्य नहीं। आधिक वयस्क होनेपर जब यह प्रश्न फिर उससे किया गया तब उसने कहा कि अब मेरा वय इतना होगया है कि इस समय विवाह करना मूर्खताहै। यह ५६ वर्षका होकर ईसाके ५४८ वर्ष पहिले मृत्युकोप्राप्त हुआ।