बेकन-विचाररत्नावली/५ त्वरा

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बेकन-विचाररत्नावली  (1899) 
द्वारा महावीरप्रसाद द्विवेदी
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त्वरा ५.

अत्यावश्यमनावश्यं[१] क्रमात्कार्य समाचरेत्।
प्राक्पश्र्वाद्द्राग्विलम्बेन प्राप्तं कार्य तु बुद्धिमान्॥

शुक्रनीति।

औरोंको दिखानेके लिये अकारण त्वरा करनेसे कार्यको अतिशय हानि पहुँचती है। इस प्रकारकी त्वरा उस पाचन क्रियाके समान समझनी चाहिये जिसे वैद्य लोग भस्मक कहते हैं अर्थात् जिसके कारण उचित समयके पहिलेही आमाशयमें जातेही जाते अन्न पच जाता है। ऐसी क्रियासे शरीर अपक्व रससे परिपूर्ण होजाता है और अनेक रोगोंके गुप्तबीज उत्पन्न होते हैं। इसलिये त्वराका अनुमान अधिक देरतक बैठकर कोई कार्य करनेसे न करना चाहिये, किन्तु यथार्थमें कार्य कितना हुआ इसका विचार करके करना चाहिये।

दौड़नेमें जैसे लम्बे लम्बे फाल धरने अथवा ऊँची ऊँची छलांग भरनेसे त्वरा नहीं होती वैसेही कार्यमें भी है। एक बारही बहुतसे कार्यका बोझा उठानेसे नहीं, किन्तु नियमानुसार थोड़ा थोड़ा करनेसे वह शीघ्र निपटता है। कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं जो दूसरोंको अपनी त्वरा दिखानेके लिये किसी भाँति झटपट कामको पूरा करदेते हैं, अथवा किसी युक्तिद्वारा पूरा होजानेकासा भाव प्रकट करते हैं; परन्तु कार्यको हस्तगत करके शीघ्रताके साथ पूर्ण करना एक बात है और उसे काटछाँटके कम करदेना दूसरी बात है। बहुतसे काम ऐसे हैं जिनके करनेमें देर लगती है। ऐसी दशामें काम करनेके लिये कई बार बैठना पड़ता है। परन्तु यदि प्रति बैठक में कुछ काम कम करके त्वरा की जाय तो काममें अवश्यमेव बाधा आती है और वह भली भाँति नहीं होता। हमारा एक बुद्धिमान् मित्र था। लोगोंको काममें [ १३ ] शीघ्रता करते देख वह बहुधा यह कहा करता था "भाई किंचित् ठहरिये, जिसमें कार्य शीघ्र समाप्त होजावे"।

परन्तु आवश्यकत्वरा एक अनमोल पदार्थ है। वस्तुमात्रकी योग्यता जैसे पैसेसे समझीजाती है वैसेही कामकी योग्यता समयसे समझीजाती है। इसीसे जिस कामके करने में विलम्ब लगता है वह महँगा पड़ता है। स्पार्टा और स्पेनके रहनेवाले काममें कभी त्वरा नहीं करते। अतएव यह कहावत प्रसिद्ध होगई है कि "हमारा मृत्यु स्पेनसे आवे तो अच्छा है"; क्योंकि, यदि वहांसे आवेगा तो अवश्येमव देरमें आवेगा।

जो मनुष्य काम काजकी प्रथम सूचना देता है उसके कहनेको भलीभाँति सुनो। यदि तुम्हें उसको कुछ कहना है तो पहिलेहीसे कह रक्खो; बीचमें उसे मत छेड़ो; क्योंकि, जो जिस बातको जिस रीतिसे कह रहा है उसे वैसे न कहने देनेसे वह गड़बड़ा जाता है और कहनेके विषयको भूल जाता है। ऐसा होनेसे उसकी बात अच्छी नहीं लगती। परन्तु बीचमें न छेड़कर यदि उसे अपने प्रकार पर अपनी बात कहने दोगे तो ऐसा कदापि न होगा। तथापि यह सत्य है कि, कभी कभी नटकी अपेक्षा सूत्रधारके वाक्य श्रवण करनेमें जी अधिक ऊब जाता है।

एकही बातको बार बार कहनेसे समय वृथा नष्ट होता है परन्तु जो विषय चला है उस विषयके सम्बन्धमें पुनरुक्ति करने से समय उलटा बचता है; क्योंकि मुख्य प्रश्न की ओर ध्यान दिलाने से निरर्थक वार्त्तालाप करने का स्वभाव छूट जाता है। त्वरा के काममें लम्बे लम्बे और अलंकृत भाषण उतनीही योग्यता के समझने चाहिये जितनी योग्यताके चोगे और पैरतक लटकने वाले घोड़ोंके चारजामें घुड़दौड़में समझे जाते हैं। भाषणके आरम्भ में प्रस्तावना करना, प्रमाण देना, क्षमा माँगना अथवा औरों के कथन का उदाहरण देनासमयको निरर्थक नष्ट करना है। यद्यपि उस समय [ १४ ] ऐसा भासित होता है कि ये सब बातें यह मनुष्य अपनी शालीनताके कारण कह रहा है तथापि एतादृश आडम्बरको प्रतिष्ठाद्योतकही समझना चाहिये। परन्तु यदि मनुष्योंके मनमें किसी प्रकार का अनुचित आग्रह उत्पन्न होगया हो और ऐसा होनेसे यदि तुम्हारे काममें प्रतिबन्ध आता हो तो प्रस्तावनाके बिना प्रतिपाद्य विषयकी आलोचना की ओर तुम्हें कदापि तत्काल न बढ़ना चाहिये। जिस स्थलमें मरहम लगाना होता है उस स्थलको पहिले सेंकते हैं तब मरहम लगाते हैं; ऐसा करनेसे मरहम भली भाँति भीतर प्रवेश करजाता है। इसीप्रकार लोगोंके चित्तका अनुचित आग्रह छुड़ानेके लिये प्रस्तावनाकी आवश्यकता पड़ती है।

काम करनेका क्रम, उसके विभाग और एक एक विभागको एक एक करके समाप्त करना त्वराका मूलसिद्धांत है। यह बात सबसे बढ़कर है; परन्तु कामके विभाग बहुत छोटे छोटे न होने चाहिये। जो मनुष्य अपने कामके विभाग नहीं करता उसका उसमें अच्छीप्रकार प्रवेश नहीं होता और जो अनेक अनावश्यक विभाग करता है वह उन सबको यथायोग्य समाप्त करनेमें समर्थ नहीं होता। अनुकूल समयमें काम करनेसे समय कम लगता है और प्रतिकूल समयमें करनेसे वायुको ताड़न करनेके समान श्रम निष्फल जाता है। कामके तीन भाग होते हैं:-कामको प्रस्तुत करना, उसके विषयमें वादविवाद करके योग्यायोग्यका निर्णय करना और अन्तमें उसे सिद्ध करना। यदि तुम्हारी यह इच्छा है कि, काम शीघ्रही समाप्त होजावे तो करे हुए विभागोंमेसे मध्यके विभागमें एकको छोड़ अनेकोंका उपयोग तुम्हें करना चाहिये; परन्तु आदि और अन्तके विभागोंमें दोही चार मनुष्यों को युक्त करना उचित है; अधिकोंको नहीं।

जो कुछ कहना है उसे लिखकर वादविवादके लिये प्रस्तुत करना चाहिये; क्योंकि, ऐसा करनेसे काम शीघ्र होता है। [ १५ ] चाहै अपनी सूचना अमान्यही क्यों न हों तथापि मुखाग्र कहने सुनने से निश्चित रूपमें उसे लिखलेना अधिक लाभकारी है। धूलि और राख यद्यपि दोनों क्षुद्र पदार्थ हैं; तथापि, फिर भी, राखकी खाद बनानेसे वह विशेष उपयोगमें आती है।

  1. काम पड़नेपर बुद्धिमान् को चाहिये कि, जो अत्यावश्यक है वह काम तुरन्तही करडालै, जो तत्काल अनावश्यक है उसे पीछेसे यथावकाश करै।