भारतवर्ष का इतिहास/१—भारतवर्ष-उसके पहाड़ और नदियां

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भारतवर्ष का इतिहास।

पहिला भाग।

१—भारतवर्ष—उसके पहाड़ और नदियां।

१—भारतवर्ष एक बहुत बड़ा देश है। यह एशिया के दक्षिण त्रिभुज के आकार समुद्र में घुसा हुआ है। इसकी उत्तर की भुजापर बड़े ऊंचे पहाड़ों की श्रेणी हिमालय के नाम से प्रसिद्ध है और इसके पूर्व और पश्चिम समुद्र लहरें मारता है।

२—हिमालय दो शब्दों से बना है, हिम बरफ़ और आलय घर, बरफ़ का घर। यह पृथ्वी भर में सब से ऊंचा पहाड़ है और इस देश को एशिया के और देशों से अलग करने को एक बड़ी भीत सा उठा हुआ है। हिमालय की चोटियां सदा बरफ़ से ढकी रहती हैं। ठंढक भी ऊपर ऐसी है कि वहां न जीव जन्तु रह सकते हैं न पेड़ उग सकते हैं।

३—यह श्रेणी सीधी पूर्व के समुद्र से पश्चिम के समुद्र तक चली जाती तो उत्तर की ओर से इस देश में कोई न आ सकता; पर पूर्व और पश्चिम दोनों सिरों पर पहाड़ बहुत नीचे हो गये हैं, जिन के बीच बीच में बड़ी बड़ी घाटियां हैं, जिन्हें दरा या दर्रा कहते हैं, और इनमें से होकर लोग आते जाते हैं। यह घाटियां [ १० ]
[ ११ ]भी कहीं कहीं हज़ारों फ़ीट ऊंची हैं और इनमें बहुधा बरफ़ जमी रहती है।

४—उत्तर-पश्चिम की ओर नीची पहाड़ियों की एक श्रेणी है, उसका नाम सुलेमान है और उसका मुख्य दर्रा ख़ैबर कहलाता है। उत्तर-पूर्व में पटकोई की पहाड़ी है। इस पहाड़ी और हिमालय के पूर्व के सिरे के बीच में होकर महानद ब्रह्मपुत्र ने अपने लिये राह बनाली है। उत्तर-पूर्व में भारत में आने की जितनी राहैं हैं सब ब्रह्मपुत्र ही की बनाई हुई हैं।

५—हिमालय के दक्षिण हिन्दुस्थान का बड़ा मैदान है जिस में दो बड़ी नदियां सिन्धु और गङ्गा बहती हैं। सिन्धु पश्चिम के भाग को सींचती और गङ्गा पूर्व के भाग की प्यास बुझाती है। इस लम्बे चौड़े देश के दक्षिण बिन्ध्याचल और सतपुरे के पहाड़ हैं जो भारतवर्ष के बीच में पटके की तरह बंधे पड़े हैं। जैसे हिमालय पहाड़ भारतवर्ष को एशिया से अलग करता है वैसे ही बिन्ध्याचल दक्षिण देश को उस भाग से बांटे हुए है जो मुख्य हिन्दुस्थान के नाम से प्रसिद्ध है।

६—दकन या दखिन (दक्षिण) भारतवर्ष का वह भाग है जो मुख्य हिन्दुस्थान के दक्षिण में है। बिन्ध्याचल पहाड़ दोनों के बीच में है। यह पहाड़ पश्चिम की ओर बराबर समुद्र तक चला गया है परन्तु पूर्व में इसकी उंचाई घटती गई है यहां तक कि इनके नीचे होने से चुटिया नागपुर का पठार बन गया है। जो लोग दखिन में बसे हैं वह प्राचीन काल में इसी राह हिन्दुस्थान से गये थे।

७—दखिन के देश में पहाड़ियां और नदियां भरी पड़ी हैं। पश्चिम में जो पर्वतश्रेणी है वह पश्चिमीय घाट के नाम से प्रसिद्ध है। पूर्व की पर्वतश्रेणी को पूर्वीय घाट कहते हैं। यह श्रेणी [ १२ ] पहिली से बहुत नीची है। दखिन की प्रायः सब नदियां पश्चिमीय घाट से निकलती हैं और पूर्व की ओर बहती हुई पूर्वीय घाटों को चीरती समुद्र में गिरती हैं। दोनों घाटों और समुद्र के बीच में कुछ कुछ तरी है। पूर्वीय घाट की तरी सिकुड़ कर उत्तर में बहुत छोटी रह गई है, परन्तु दक्षिण में इसकी चौड़ाई बहुत है और यहां इसे कारनाटिक का मैदान कहते हैं। उत्तर से दक्षिण जाने का रास्ता इन्हीं तरेटियों में होकर है।