भारतवर्ष का इतिहास/४१—संयुक्त ईस्ट इंडिया कम्पनी

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४१—संयुक्त ईस्ट इंडिया कम्पनी।

१—१६०० ई॰ में लण्डन के लगभग सौ सौदागरों ने मिलकर मन्सूबा किया कि भारतवर्ष के साथ व्यापार किया जाय। इस अर्थ से उन्होंने एक कम्पनी बनाई जिसका नाम "इंगलिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी" था। कम्पनी ने इलीज़बेथ से जो उस समय इंगलिस्तान की रानी थी यह आज्ञा ले ली थी कि भारतवर्ष को जहाज़ भेजे। अकबर उस समय भारत का बादशाह था। [ १९८ ] १६१२ ई॰ में कम्पनी ने सूरत नगर में जो मुगलराज का सब से बड़ा बन्दरगाह था एक कोठी बनाई। कम्पनी के कर्मचारी साल भर तक भारत के व्यापारियों से माल मोल लेकर कोठी में इकट्ठा रखते थे और जब उनके जहाज़ आते थे तो उनपर लाद कर यूरोप को भेज देते थे; और इङ्गलैण्ड का जो माल जहाज़ों पर आता था उसको अपनी कोठी में उतार लेते थे और बेचते रहते थे। अपने माल और प्राण की रक्षा के लिये उन्हों ने कोठी के चारों ओर एक पुष्ट दीवार बनाली थी, उसपर तोपें चढ़ा दी थीं।

२—इङ्गलिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को इतना लाभ हुआ कि अङ्गरेजों ने और और कम्पनियां भी बनाली और भारतवर्ष के साथ व्यापार करना आरम्भ कर दिया। अन्त में लगभग सौ बरस पीछे यह सब कम्पनियां मिलाकर एक कर दी गईं। यह बात १७०० ई॰ की है। इस बड़ी कम्पनी का नाम "संयुक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी" रख दिया गया और इङ्गलैण्ड के बादशाह ने भारतवर्ष से व्यापार करने का पूरा अधिकार इस कम्पनी को दे दिया।

३—१६३९ ई॰ में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने चन्द्रगिरि के राजा से जो कर्नाटक में एक छोटी सी पहाड़ी गढ़ी का शासक था मदरास मोल ले लिया यह उस समय मछुओं का एक छोटा सा गांव था। अंगरेजों ने इस स्थान पर एक क़िला बनवाया और उसका नाम सेण्ट जार्ज का क़िला रक्खा। बहुत से हिन्दू यहां आकर इनकी शरण में रहने लगे और इनके साथ लेन देन करने लगे।

४—बम्बई पहिले पहिल पुरतगीज़ों के आधीन था। इङ्गलैण्ड के बादशाह द्वितीय चार्लस् ने पुर्तगाल के बादशाह की बेटी से [ १९९ ]

ब्याह किया और पुर्तगाल के बादशाह ने १६६२ ई॰ में अपनी लड़की के जहेज़ में बम्बई इङ्गलैण्ड के बादशाह को दे दिया। इसके छः बरस पीछे चार्लस् ने यह नगर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को [ २०० ] दस पाउण्ड सालाना किराये पर देदिया। बम्बई बहुत अच्छा बन्दरगाह था। इस कारण यह नगर बहुत बड़ा होगया और बहुत से हिन्दू यहां आकर बस गये। कुछ काल बीतने पर अंगरेज़ अपना कुल कारख़ाना सूरत से उठा कर यहीं ले आये।

शाहजहां के राज में मदरास मोल लेने के एक साल पीछे अर्थात १६४० ई॰ में अंगरेज़ों ने गङ्गा जी के मुहाने के निकट हुगली स्थान पर एक कोठी बनवाई और औरङ्गजेब के राज में उन्हों ने तीन गांव मोल लिये जो कि हुगली की अपेक्षा गङ्गा जी के मुहाने के और भी निकट थे। इनमें से एक गांव का नाम कालीघाट था। यह वही स्थान है जो अब कलकत्ते के नाम से प्रसिद्ध है। १६९० ई॰ में अंगरेज़ों ने यहां पर एक क़िला बनवाया और उसका नाम फ़ोर्ट विलियम रक्खा।

५—इनके अतिरिक्त अङ्गरेजों की और भी कोठियां थीं। पूर्वीय तट पर मदरास के दक्षिण में एक कोठी थी जो सेण्ट डेविड के किले के नाम से प्रसिद्ध थी। एक कोठी मसलीपटम, एक बङ्गाला, एक पटना और एक ढाके में थी और एक बङ्गाले के नवाब की राजधानी मुर्शिदाबाद के निकट क़ासिमबज़ार में थी।

६—फ़रांसीस भी भारतवर्ष में अंगरेज़ों के साथ ही साथ आये थे और उन्हों ने भी अपने व्यापार की कोठियां बना रक्खी थीं इनमें से बड़ी बड़ी यह थीं,—पश्चिमीय समुद्र तट पर माही, मद्रास के दक्षिण में पांडीचरी, पूर्वीय समुद्रतट पर बङ्गाले में कलकत्ते से बीस मील की दूरी पर चन्द्रनगर।

७—डच लोगों के व्यापार के स्थान भिन्न थे। उनमें से बड़े बड़े यह थे, कोचीन पश्चिमीय समुद्रतट पर, पुलीकट, अर्थात पलिया घाट, मद्रास के उत्तर में पूर्वीय समुद्रतट पर और चन्द्रनगर के पास चिंसुरा बङ्गाले में।