भारतवर्ष का इतिहास/७—महाभारत का समय

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७—महाभारत का समय।

१—जब आर्यों को पंजाब में अपना अधिकार जमाये और ब्रह्मावर्त ऐसे रमणीय स्थान में रहते बहुत दिन बीत गये तब उन्होंने जाना कि उन से पूर्व का देश जिस में गंगा और यमुना बहती हैं इससे भी बढ़कर रमणीय और उपजाऊ है। अब वह गिनती में इतने बढ़ गये थे कि सिन्धु की घाटी में उनका निर्वाह कठिन [ ३६ ]था इस के सिवाय नये आर्यों के झुंड के झुंड अफगानिस्तान और कशमीर से चले आते थे जो पहिले आये हुए आर्यों को आगे ठेलते जाते थे। आर्य लोग पंजाब के दक्षिण तो जा नहीं सकते थे क्योंकि उस दिशा में चार सौ मील तक रेत ही रेत था जो आंधियों में एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़ता फिरता था। इस लिये उनमें से बहुत से यमुना नदी पार करके गंगा की ओर चल पड़े।

२—परन्तु यह देश भी बस्तियों से भरा था। यहां भी द्रविड़ कोल जाति के लोग रहते थे और कुछ मिली जुली जातियां भी थीं जो द्रविड़ और कोल के मिलने से उत्पन्न हुई थीं। यह लोग गिनती में आर्यों से कम से कम बीस गुने अधिक रहे होंगे परन्तु बहुत दिन तक भारतवर्ष के गरम मैदानों में रहते रहते न तो आर्य जाति के मनुष्यों की भांति लम्बे चौड़े ही थे, न वैसे बलवान ही थे और न उन के समान बुद्धिमान और चतुर थे। बहुत दिनों तक आर्य इन को नीच समझते रहे और इन का निरादर करते थे। इसलिये उनको दास कहा गया है। दूसरे पुराने निवासियों को आर्य अपने ग्रन्थों में असुर दानव और दैत्य कहकर सम्बोधन करते हैं। इनके विषय में कहा गया है कि इनका रंग काला और इनका रूप भोंड़ा था। यह कच्चा मांस खाते थे। इनकी नाक चिपटी थी और इनका कोई धर्म्म न था। इस बात का ध्यान रहै कि यह उनका खान उनके बैरियों का किया हुआ है। इतना निश्चय होचुका है कि इनमें से बहुतेरे सभ्य थे और उनके बड़े बड़े नगर बसे थे; और और देशों से वणिजव्यापार करते थे। उस समय के लिखे द्रविड़ ग्रन्थों का यदि पता लगता तो अवश्य उनमें आर्यों के विषय में भी वही बातें होती जो आर्यों ने अपने शत्रुओं के विषय में अपने ग्रन्थों में लिखी हैं। पहिले तो आर्य इनसे लड़ते रहे; अन्तको उनसे मित्रता करली और उन्हीं में मिल गये। इस [ ३७ ]भांति नये नये कुल बने जैसे कि पश्चिम के आर्यों में यूरोप जाने से बने थे।

३—इस तरह बहुत से आर्य गंगा की उपजाऊ तरेटियों में जाकर बसे। यहां आने के पीछे भी वह लोग नये नये मन्त्र बनाते गये। और इसी से उन्हों ने इस भूमि का नाम ब्रह्मर्षि देश रक्खा।

४—जान पड़ता है कि इन्हों ने पहिले पहिल यमुना के ऊपरी भाग को पार करके गंगा के ऊपर के भाग में तीन सौ मील तक जीत लिया और यमुना के तीर एक नगर बसाया जिसका नाम अपने बड़े देवता के नाम पर इन्द्रप्रस्थ रक्खा। यह नगर पीछे उत्तरीय हिन्दुस्थान की राजधानी हो गया और दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस से साठ मील की दूरी पर गंगा के ऊपरी भाग में एक और नगर बसाया गया जिसका नाम हस्तिनापुर रक्खा गया। यहां से चल कर बहुतेरे दक्षिण की ओर चल पड़े और प्रायः डेढ़ सौ मील की दूरी पर दो और नगर बसाये। एक आगरा यमुना के तट पर और दूसरा कन्नौज़ जिसको वह कामपिल्य भी कहते थे। गंगा के तट पर इस के आगे जाकर कुछ आगे आर्य लोग उस स्थान पर पहुंचे जहां गंगा और यमुना मिलती हैं। यहां पांचवां नगर बसाया उस का नाम प्रयाग था। अब इस को इलाहाबाद कहते हैं।

५—कुछ लोगों का विचार है कि आर्यों को इस भूमि के विजय करने में प्रायः तीन सौ बरस लगे हुए होंगे। उस समय भी वेद के देवताओं की पूजा होती थी परन्तु आर्यों के आचार व्यवहार में धीरे धीरे अन्तर पड़ता गया। इस तीन सौ बरस के समय को महाभारत का समय कह सकते हैं क्योंकि संस्कृत की बड़ी पोथी महाभारत में जिस लड़ाई का वृतान्त है वह इसी समय में हुई थी। [ ३८ ]६—आर्यों की बहुत से प्राचीन जातियों और परिवारों के नाम तक मिट गये हैं। यह लोग भारतवर्ष के पुराने निवासियों से लड़े और इन के आपस में भी लड़ाइयां हुईं। महाभारत में उन दो जातियों के नाम दिये हैं जिन में महायुद्ध हुआ था। महाभारत शब्द से महायुद्ध समझना चाहिये जोकि राजा की सन्तान में हुआ था। इस युद्ध का ठीक समय ऊपर कह दिया गया परन्तु महाभारत ग्रन्थ इस से बहुत पीछे रचा गया। इस लड़ाई की कहानियां पहिले योहीं कही जाती थीं। कवि और भाट राजाओं महाराजाओं की सभा में यह कहानियां सुनाया करते थे। बढ़ते बढ़ते यह कहानी बहुत बढ़ गई। समय समय पर इस में बहुत से दृष्टान्त जुड़ते गये। पीछे उस समय में जिसे हम ब्राह्मणों का समय कहते हैं व्यास जीने उन कहानियों को इकट्ठा करके उनका क्रम निश्चित किया और पद्य में रच डाला। यही काव्य अब महाभारत के नाम से प्रसिद्ध है। महाभारत में आर्यों के जिन आचार व्यवहार का वर्णन है उनके विषय में यह कहना कठिन है कि वह महाभारत के समय का ठीक पता देते हैं या नहीं। यह भी निश्चय नहीं हुआ कि इस कहानी में कहां उस ब्राह्मण समय से जोड़ मिलाया गया है जो इस के पीछे आया था और जिसमे आर्यों के बोल चाल और आचार व्यवहार में बहुत कुछ भेद हो गया था।