भारतेंदु-नाटकावली/१२–प्रेमयोगिनी के मराठी अंश का हिंदी रूपांतर
प्रेम-योगिनी के
चौथा गर्भांक के मराठी अंश का हिंदी रूपांतर
महाश---क्या बुभुक्षित दीक्षित हैं?
बुभुक्षित---कौन है? वाह महाश, क्या तू है? क्यों बाबा आज कितने ब्राह्मणों को हमारे द्वारा निमंत्रण दोगे। मालिक ने कितने ब्राह्मण कहे हैं? क्यों रे ठोक्या के यहाँ कहाँ के यजमान का सहस्र भोजन चल रहा है?
महाश----दीक्षित जी, आज ब्राह्मणों में ऐसी मार-पीट हुई कि नहीं कह सकता। वह बड़ा पचड़ा है।
बुभु०---क्या सचमुच मार-पीट हुई? अच्छा, आओ चलो बैठक में। पर यह तो बतलायो कि आखिर हमारे ब्राह्मणों की क्या व्यवस्था होगी? तू ब्राह्मणो को लाया या नहीं? या यों ही हाथ झुलाता चला आया।
महाश----दीक्षित जी थोड़ा सा जल दीजिए, बड़ी प्यास लगी है।
बुभु०----अच्छा भाई थोड़ा ठहरो इतनी धूप में आए हो। बूटी ही बन रही है। थोड़ी बूटी ही पी लो। अच्छा यह बतलाओ कि कौन कौन से और कितने ब्राह्मण मिले? महाश---( हिन्दी )
चंबू भट्ट---.........२५ ब्राह्मण?
महाश---हाँ गुरु, २५ ब्राह्मण तो केवल सहस्र भोजन के है। और आज जो बसंत पूजा होगी, उसके लिए अलग, और जो सभा होगी, उनके लिए भी मैंने तार लगाया है, लेकिन।
गोपाल, माधव शास्त्री---क्यों महाश लेकिन क्या? सभा का काम किसके हाथ में है? और सभा कब होने वाली है?
महाश---पर यही है कि यह यजमान पाप नगर में रहता है। इसे एक कन्या है, वह विधवा है पर उसके शिर पर केश हैं। तीर्थ स्थान में आकर क्षौर करना आवश्यक है पर क्षौर करने से कन्या की शोभा चली जायगी इसलिए जो कोई ऐसी शास्त्रोक्त व्यवस्था दे तो उसका एक हजार रुपये की सभा करने का विचार है और यह काम धनतुंदिल शास्त्री के हाथ में पड़ गया है।
गप्प पं०---उँ ( हिन्दी )
माधव शास्त्री---( हिन्दी )
गोपाल०----ठीक ही है, और यदि किसी दुर्घट काम के कारण हम लोक-दृष्टि में निंध भी हों तब भी हम बंध हैं, क्योंकि श्रीमद्भागवत ही में लिखा है कि 'पाप किए हुए ब्राह्मण को भी कोई हानि न पहुँचावे इत्यादि'......। गप्प पं०―(हिन्दी)
बुभु०―(हिन्दी)
चंबू भट्ट―(हिन्दी)
महाश―दीक्षित जी, बूटी तैयार हुई―अब जल्दी छने क्योंकि यह जीव बहुत प्यासा हो गया है और अभी बहुत से ब्राह्मणों के यहाँ कहने जाना है।
बुभु०―जरा छानो तो।
माधव शास्त्री―दीक्षित जी, यह मेरा काम नहीं, कारण मैं केवल अपने पीने का मालिक हूँ, मुझे छानना नहीं आता। (हिन्दी)
गोपाल०―अच्छा दीक्षित जी, मैं ही आता हूँ।
चंबू भट्ट―महाश आखिर हमारे दल के सहन भोजन में कितने ब्राह्मण और बसंत पूजा में कितने ब्राह्मण रहेंगे?
महाश―आज दीक्षित के दल के कुल २५ ब्राह्मण हैं। उनमें से १५ सहस्र भोजन में और १० बसंत पूजा में रहेंगे।
माधव शास्त्री―और सभा के? महाश―सभा के बारे में तो मैंने कह ही दिया कि धनतुंदिल शास्त्री के अधिकार में है और दो तीन दिन में वे उसका भी बंदोबस्त करेंगे।
गप्प पं०―(यहाँ से पृष्ठ १६७ में गप्प पंडित तक हिन्दी है) संबू भट्ट--हाँ हाँ दीक्षित जी वहीं खतम करिए मैं आज कल नहीं पीता।
गोपाल, माधव---क्यो भट्ट जी, बस रहने दो, ये नखरे कहाँ सीखे? इसे पीयो, व्यर्थ यह ठंढी होती है।
चंबू भट्ट---नहीं भाई मैं सत्य कहता हूँ, मुझको बरदाश्त नहीं होती। तुम लोगों को तो यह नखरा जान पड़ता है पर ये सब प्रायः काशी के ही हैं और आप लोगों के समान परम प्रियतम सफेद करकराता डुपट्टा ओढ़ने वाली अनाथ बाला ने ही सिखलाए होगे।
महाश---क्यों गुरु दीक्षित जी अब पान जमना चाहिए।
बुभु०---हॉ भाई, वह बँटा है ले आओ और लगायो तब एक दो चार।
महाश----दीक्षित जी, ठोक्या के कमरे में १५ ब्राह्मण भेजिए। दस बजे पत्तल परोसी जायगी और आज रात को बसन्त पूजा में १० ब्राह्मण जल्दी भेज देना, क्योंकि उसके बाद दूसरे दल के ब्राह्मण आवेंगे।
बुभु०---( हिन्दी )
माधव०---( हिन्दी )
गोपाल---( हिन्दी ) बुभु०---भाई बहरी ओर यदि मैं जाऊँ तो यहाँ का प्रबंध कौन करेगा।
गोपाल---एँ, गुरु केवल १५ ब्राह्मणो के लिए घबड़ाते हो। सर्वभक्ष को सहेज दो ब्राह्मणो को भेज देगा। ( हिन्दी )
गप्प पं०-( यहाँ से पृ० १७० गोपाल० के कथन तक हिंदी है )
बुभु०-अरे पहिले नए शौकीन के यहाँ चलूँ, वहाँ क्या है यह देख लूँ तब रामचंद की ओर झुकूँ।
माधव शास्त्री---अच्छा वैसा ही हो, आजकल न्यू फांड शास्त्री ने बहुत उदारता धारण की है और बहुत सी चिड़िया भी पाली हैं। वह सब भी देखने में आवेंगी। पर भाई मैं अन्दर नहीं जाऊँगा। क्योकि मुझे देखकर उन्हें बहुत कष्ट होता है।
गोपाल---अच्छा वहाँ तक तो चलो, आगे देखा जायगा।
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