भारतेंदु-नाटकावली/६–भारत दुर्दशा
संवत् १९३७
(मंगलाचरण)
कठिन धार तरवार कर, कृष्ण कल्कि अवतार॥
_____
पहिला अंक
स्थान--बीथी
(एक योगी गाता है)
(लावनी)
हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥ ध्रुव॥
सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो।
सबके पहिले जेहि सभ्य बिधाता कीनो॥
सबके पहिले जो रूप-रंग रस-भीनो।
सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो॥
अब सबके पीछे सोई परत लखाई।
जहँ राम युधिष्ठिर बासुदेव सर्याती॥
जहँ भीम करन अर्जुन की छटा दिखाती।
तहँ रही मूढ़ता कलह अविद्या-राती॥
अब जहँ देखहु तहँ दुःखहि दुःख दिखाई।
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥
लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी।
करि कलह बुलाई जवनसैन पुनि भारी॥
तिन नासी बुधि बल विद्या धन बहु बारी।
छाई अब आलस-कुमति-कलह-अँधियारी॥
भए अंध पंगु सब दीन हीन बिलखाई।
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥
अँगरेजराज सुख साज सजे सब भारी।
पै धन बिदेस चलि जात इहै अति ख्वारी॥
ताहू पै महँगी काल रोग बिस्तारी।
दिन दिन दूने दुख ईस देत हा हा री॥
सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई।
(पटोत्तोलन)
—————