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भारतेंदु-नाटकावली/७–नीलदेवी (दसवाँ दृश्य)

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भारतेंदु-नाटकावली
भारतेन्दु हरिश्चंद्र, संपादक ब्रजरत्नदास

इलाहाबाद: रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर, पृष्ठ ६३६ से – ६४१ तक

 

दसवाँ दृश्य
स्थान––अमीर की मजलिस
(अमीर गद्दी पर बैठा है। दो-चार सेवक खड़े हैं। दो-चार
मुसाहिब बैठे हैं। सामने शराब के पियाले, सुराही,
पानदान, इतरदान रखा है। दो गवैए सामने
गा रहे हैं। अमीर नशे में झूमता है)

गवैए––

आज यह फत्ह का दरबार मुबारक होए।
मुल्क यह तुझको शहरयार मुबारक होए॥
शुक्र सद शुक्र कि पकड़ा गया वह दुश्मने-दीन।
फत्ह अब हमको हरेक बार मुबारक होए॥
हमको दिन-रात मुबारक हो फत्ह ऐशोउरूज।
काफिरों को सदा फिटकार मुबारक होए॥
फत्हे पंजाब से सब हिंद की उम्मीद हुई।
मोमिनो नेक य आसार मुबारक होए॥
हिंदू गुमराह हों बेजर हो बनें अपने गुलाम।
हमको ऐशो तरबोतार मुबारक होए॥

अमीर––आमीं आमीं। वाह-वाह वल्लाही खूब गाया। कोई है? इन लोगो को एक-एक जोड़ा दुशाला इनआम दो। (मद्यपान)

(एक नौकर आता है)

नौकर––खुदावंद निआमत! एक परदेस की गानेवाली बहुत ही अच्छी खेमे के दरवाजे पर हाजिर है। वह चाहती है कि हुजूर को कुछ अपना करतब दिखलाए। जो इरशाद हो बजा लाऊँ।

अमीर––जरूर लाओ। कहो साज मिलाकर जल्द हाजिर हो।

नौकर––जो इरशाद। [जाता है

अमीर––आज के जशन का हाल सुनकर दूर-दूर से नाचने-गानेवाले चले आते हैं।

मुसाहिब––बजा इरशाद है, और उनको इनआम भी तो बहुत जियादः मिलता है, न क्यो आवें?

(चार समाजियों के साथ एक गायिका का प्रवेश)

अमीर––(आप ही आप) यह तायफा तो बहुत ही खूबसूरत है! (प्रगट) तुम्हारा क्या नाम है? (मद्यपान)

गायिका––मेरा नाम चंडिका है। मैं बड़ी दूर से आपका नाम सुनकर आती हूँ।

अमीर––बहुत अच्छी बात है। जल्द गाना शुरू करो। तुम्हारा गाना सुनने को मेरा इश्तियाक हर लहजे बढ़ता जाता है। जैसी तुम खूबसूरत हो वैसा ही तुम्हारा गाना भी खूबसूरत होगा। (मद्यपान)

गायिका––जो हुकुम। (गाती है)

(ठुमरी तिताला)

हाँ, मोसे सेजिया चढ़लि नहिं जाई हो।
पिय बिनु साँपिन सी डसै बिरह रैन॥
छिन-छिन बढ़त बिथा तन सजनी,
कटत न कठिन बियोग की रजनी।
बिनु हरि अति अकुलाई हो॥

अमीर––वाह-वाह क्या कहना है! (मद्यपान) क्यों फिदा हुसैन! कितना अच्छा गाया है।

मुसाहिब––सुबहानअल्लाह! हुजूर क्या कहना है। वल्लाह मेरा तो क्या जिक्र है मेरे बुजुर्गों ने ख्वाब में भी ऐसा गाना नहीं सुना था।

(अमीर अँगूठी उतारकर देना चाहता है)

गायिका––मुझको अभी आपसे बहुत कुछ लेना है। अभी आप इसको अपने पास रखें, अखीर में एक साथ मैं सब ले लूँगी।

अमीर––(मद्यपान करके) अच्छा! कुछ परवाह नहीं। हाँ, इसी धुन की एक और हो; मगर उसमें फुरकत का मजमून न हो क्योंकि आज खुशी का दिन है।

गायिका––जो हुकुम। (उसी चाल में गाती है)

जाओ जाओ काहे आओ प्यारे कतराए हो।
काहे चलो छाँह से छाँह मिलाए हो॥
जिय को मरम तुम साफ कहत किन काहे फिरत मँड़राए हो।
एहो हरि देखि यह नयो मेरो जोबन हम जानी तुम जो लुभाए हो॥

अमीर––(मद्यपान करके अत्यंत रीझना नाट्य करता है) कसम खुदा की ऐसा गाना मैंने आज तक नहीं सुना था। दर-हकीकत हिंदोस्तान इल्म का खजाना है। वल्लाह, मैं बहुत ही खुश हुआ।

(मुसाहिबगण वल्लाह, बजा इरशाद, बेशक इत्यादि सिर और दाढ़ी हिला-हिलाकर कहते हैं)

अमीर––तुम शराब नहीं पीतीं?

गायिका––नहीं हुजूर।

अमीर––तो आज हमारी खातिर से पीओ।

गायिका––अब तो आपके यहाँ आई ही हूँ। ऐसी जल्दी क्या है। जो-जो हुजूर कहेंगे सब करूँगी।

अमीर––अच्छा कुछ परवाह नहीं। (मद्यपान) थोड़ा और आगे बढ़ आओ।

(गायिका आगे बढ़कर बैठती है)

अमीर––(खूब घूरकर स्वगत) हाय-हाय! इसको देखकर मेरा दिल बिलकुल हाथ से जाता रहा। जिस तरह हो, आज ही इसको काबू में लाना जरूर है। (प्रगट) वल्लाह, तुम्हारे गाने ने मुझको बेअख्तियार कर दिया है। एक चीज और गाओ इसी धुन की। (मद्यपान)

गायिका––जो हुकुम। (गाती है)

हाँ गरवा लगावै गिरधारी हो, देखो सखी लाज सरम सब जग की,
छोड़ि चट निपट निलज मुख चूमै बारी बारी।
अति मदमातो हरि कछु न गिनत छैल बरजि रही मैं होइ होइ बलिहारी।
अब कहाँ जाऊँ कहा करूँ लाज की मैं मारी!

अमीर––(मद्यपान करके उन्मत्त की भाँति) वाह-वाह! क्या कहना है। (गिलास हाथ में उठाकर) एक गिलास तो अब तुमको जरूर ही पीना होगा। लो तुमको मेरी कसम, वल्लाह मेरे सिर की कसम जो न पी जाओ।

गायिका––हुजूर, मैंने आज तक शराब नहीं पी है। मैं जो पीऊँगी तो बिल्कुल बेहोश हो जाऊँगी।

अमीर––कुछ परवाह नहीं, पीओ।

गायिका––(हाथ जोड़कर) हुजूर, एक दिन के वास्ते शराब पीकर मैं क्यों अपना ईमान छोड़ूँ?

अमीर––नहीं-नहीं, तुम आज से हमारी नौकर हुई, जो तुम चाहोगी तुमको मिलेगा। अच्छा, हमारे पास आओ। हम तुमको अपने हाथ से शराब पिलावेंगे।

(गायिका अमीर के अति निकट बैठती है)

अमीर––लो जान साहब!

(पियाला उठाकर अमीर जिस समय गायिका के पास ले जाता है उसी समय गायिका बनी हुई नीलदेवी चोली से कटार निकालकर अमीर को मारती है और चारों समाजी बाजा फेंककर शस्त्र निकालकर मुसाहिब आदि को मारते हैं।)

नीलदेवी––ले चांडाल पापी! मुझको जान साहब कहने का फल ले, महाराज के वध का बदला ले। मेरी यही इच्छा थी कि मैं इस चांडाल का अपने हाथ से वध करूँ। इसी हेतु मैंने कुमार को लड़ने से रोका, सो इच्छा पूर्ण हुई। (और आघात) अब मैं सुखपूर्वक सती हूँगी।

अमीर––(मृतावस्था में) दगा––वल्लाह चंडिका––

(रानी नीलदेवी ताली बजाती है। तंबू फाड़कर शस्त्र खींचे हुए कुमार सोमदेव राजपूतों के साथ आते हैं। मुसलमानों को मारते और बाँधते हैं। क्षत्री लोग भारतवर्ष की जय; आर्यकुल की जय; क्षत्रियवंश की जय; महाराज सूर्यदेव की जय; महारानी नीलदेवी की जय; कुमार सोमदेव की जय; इत्यादि शब्द करते हैं)

(पटाक्षेप)
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