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भारतेंदु-नाटकावली/८–अंधेर नगरी

विकिस्रोत से
भारतेंदु-नाटकावली
भारतेन्दु हरिश्चंद्र, संपादक ब्रजरत्नदास

इलाहाबाद: रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर, पृष्ठ ६४२ से – ६४५ तक

 



अंधेर-नगरी

चौपट्ट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा
 

प्रहसन

 

संवत् १९३८



छेदश्चंदनचूतचम्पकवने रक्षा करीरद्रुमे
हिंसा हंसमयूरकोकिलकुले काकेषुलीलारतिः।
मातङ्गेन खरक्रयः समतुला कर्पूरकासियोः
एषा यत्र विचारणा गुणिगणे देशाय तस्मैनमः॥*

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अंधेर-नगरी

चौपट राजा

टके सेर भाजी टके सेर खाजा


पहला अंक

स्थान––बाह्य प्रांत
(महंतजी दो चेलों के साथ गाते हुए आते हैं)

सब––राम भजो राम भजो राम भजो भाई।

राम के भजे से गनिका तर गई,
राम के भजे से गीध गति पाई।
राम के नाम से काम बनै सब,
राम के भजन बिनु सबहि नसाई।
राम के नाम से दोनों नयन बिनु,
सूरदास भए कविकुल-राई॥
राम के नाम से घास जंगल की,
तुलसीदास भए भजि रघुराई॥

महँत––बच्चा नारायणदास, यह नगर तो दूर से बड़ा सुंदर

दिखलाई पड़ता है! देख, कुछ भिच्छा-उच्छा मिले तो ठाकुरजी को भोग लगै। और क्या।

नारायण॰––गुरुजी महाराज, नगर तो नारायण के आसरे से बहुत ही सुंदर है जो है सो, पर भिच्छा सुंदर मिले तो बड़ा आनंद होय।

महंत––बच्चा गोबरधनदास, तू पच्छिम की ओर से जा और नारायणदास पूरब की ओर जायगा। देख, जो कुछ सीधा-सामग्री मिले तो श्रीशालग्रामजी का बालभोग सिद्ध हो।

गोबरधन॰––गुरुजी, मैं बहुत सी भिच्छा लाता हूँ। यहाँ के लोग तो बड़े मालवर दिखलाई पड़ते हैं। आप कुछ चिंता मत कीजिए ।..

महंत––बहुत लोभ मत करना। देखना, हाँ––

लोभ पाप को मूल है, लोभ मिटावत मान।
लोभ कभी नहिं कीजिए, यामैं नरक निदान॥

(गाते हुए सब जाते हैं)


  1. *चंदन, आम तथा चपा के वन को काटकर करीर वृक्ष की जो रक्षा करता है; हंस, मोर तथा कोयल को मार कर कौए की लीला में प्रेम रखता है; हाथी देकर गदहा खरीदता है और कपूर तथा कपास को समान समझता है। जहाँ के गुणी लोगों के ऐसे विचार हों उस देशको नमस्कार है।