भारतेंदु-नाटकावली/७–नीलदेवी (पाँचवाँ दृश्य)

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भारतेंदु-नाटकावली  (1935) 
द्वारा भारतेन्दु हरिश्चंद्र

[ ६१५ ]

पाँचवाँ दृश्य
स्थान––सूर्य्यदेव के डेरे का बाहरी प्रांत
[रात्रि-समय देवीसिंह सिपाही पहरा देता हुआ घूमता है]
(नेपथ्य में गान)
(राग कलिंगड़ा)

सोओ सुख-निंदिया प्यारे ललन।
नैनन के तारे दुलारे मेरे बारे,
सोओ सुख-निंदिया प्यारे ललन।
भई आधी रात बन सनसनात,
पथ पंछी कोउ आवत न जात,
जग प्रकृति भई मनु थिर लखात,
पातहु नहिं पावत तरुन हलन॥
झलमलत दीप सिर धुनत आय,
मनु प्रिय पतंग हित करत हाय,
सतरात अंग आलस जनाय,
सन-सन लगी सीरी पवन चलन।
सोए जग के सब नींद घोर,
जागत कामी चिंतित चकोर,
बिरहिन बिरही पाहरू चोर,
इन कहँ छन रैन हूँ हाय कल न॥

[ ६१६ ]

सिपाही––बरसों घर छूटे हुए। देखें कब इन दुष्टो का मुँह काला होता है। महाराज घर फिरकर चलें तो देस फिर से बसे। रामू की माँ को देखे कितने दिन हुए। बच्चा की तो खबर तक नहीं मिली। (चौंककर ऊँचे स्वर से) कौन है? खबरदार जो किसी ने झूठमूठ भी इधर देखने का विचार किया। (साधारण स्वर से) हाँ––कोई यह न जाने कि देवीसिंह इस समय जोरू-लड़कों की याद करता है, इससे भूला है। क्षत्री का लड़का है। घर की याद आवे तो और प्राण छोड़कर लड़े। (पुकारकर) खबरदार। जागते रहना।

(इधर-उधर फिरकर एक जगह बैठकर गाता है)
(कलिंगडा)

प्यारी बिन कटत न कारी रैन।
पल छिन न परत जिय हाय चैन॥
तन पीर बढ़ी सब छुट्यो धीर,
कहि आवत नहिं कछु मुखहु बैन।
जिय तड़फड़ात सब जरत गात,
टप टप टपकत दुख भरे नैन॥
परदेस परे तजि देस हाय,
दुख मेटनहारो कोउ है न।

[ ६१७ ]

सजि बिरह सैन यह जगत जैन,
मारत मरोरि मोहि पापी मैन॥
प्यारी बिन कटत न कारी रैन।

(नेपथ्य में कोलाहल)

कौन है! यह कैसा शब्द आता है! खबरदार।

(नेपथ्य में विशेष कोलाहल)

(घबड़ाकर) हैं! यह क्या है? अरे क्यों एक साथ इतना कोलाहल हो रहा है। बीरसिंह! बीरसिंह! जागो। गोविंदसिंह दौड़ो!

(नेपथ्य में बड़ा कोलाहल और मार-मार का शब्द। शस्त्र खींचे हुए अनेक यवनों का प्रवेश। अल्ला अकबर का शब्द। देवीसिंह का युद्ध और पतन। यवनों का डेरे में प्रवेश।)

(पटाक्षेप)