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भारतेंदु-नाटकावली/७–नीलदेवी (चौथा दृश्य)

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भारतेंदु-नाटकावली
भारतेन्दु हरिश्चंद्र, संपादक ब्रजरत्नदास

इलाहाबाद: रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर, पृष्ठ ६१० से – ६१४ तक

 

चौथा दृश्य
स्थान––सराय
(भठियारी, चपरगट्टू खाँ और पीकदानअली)

चपर॰––क्यों भाई अब आज तो जशन होगा न? आज तो वह हिंदू न लड़ेगा न?

पीक॰––मैंने पक्की खबर सुनी है। आज ही तो पुलाव उड़ने का दिन है।

चपर॰––भाई, मैं तो इसी से तीन-चार दिन दरबार में नहीं गया। सुना वे लोग लड़ने जायँगे। मैंने कहा जान थोड़ी ही भारी पड़ी है। यहाँ तो सदा भागतों के आगे मारतों के पीछे। जबान की तेग कहिए दस हजार हाथ झारूँ।

पीक॰––भई, इसी से तो कई दिन से मैं भी खेमों की तर्फ नहीं गया। अभी एक हफ्ता हुआ, मैं उस गाँव में एक खानगी है उसके यहाँ से चला आता था कि पाँच हिंदुओं के सवारों ने मुझे पकड़ लिया और तुरक-तुरक करके लगे चपतियाने। मैंने देखा कि अब तो बेतरह फँसे मगर वल्लाह मैंने भी अपनी कौम और दीन की इतनी मजम्मत और हिंदुओं की इतनी तारीफ की कि उन लोगों से छोड़ते ही बन आई। ले ऐसे मौके और क्या करता? मुसलमानी के पीछे अपनी जान देता?

चपर॰––हाँ जी, किसकी मुसलमानी और किसका कुफ्र। यहाँ अपने माँड़े-हलुए से काम है।

भठि॰––तो मियाँ आज जशन में जाना तो देखो मुझको भूल मत जाना। जो कुछ इनाम मिले उसमें से भी कुछ देना। हाँ! देखो मैंने कई दिन खिदमत की है।

पीक॰––जरूर-जरूर जानछल्ला। यह कौन बात है। तुम्हारे ही वास्ते तो जी पर खेलकर यहाँ उतरे हैं। (चपरगट्टू से कान में) यह सुनिए, जान झोकें हम माल चाभें बी भठियारी। यह नहीं जानतीं कि यहाँ इनकी ऐसी-ऐसी हजारों चराकर छोड़ दी हैं।

चपर॰––(धीरे से) अजी कहने दो, कहने से कुछ दिए ही थोड़े देते हैं। भठियारी हो चाहे रंडी, आज तक तो किसी को कुछ दिया नहीं है, उलटा इन्हीं लोगों का खा गए हैं। (भठियारी से) वाह जान साहब! तुम जब माँगोगी तब देंगे। रुपया-पैसा कौन चीज है, जान तक हाजिर है। जब कहो गरदन काटकर सामने रख दूँ। (खूब घूरता है)

भठि॰––(आँखें नचाकर) तो मैं भी तो मियाँ की खिदमत से किसी तरह बाहर नहीं हूँ।

(दोनों गाते हैं)

पिकदानो चपरट्‌टू है बस नाम हमारा।
इक मुल्क का खाना है सदा काम हमारा॥
उमरा जो कहैं रात तो हम चाँद दिखा दें।
रहता है सिफारिश से भरा जाम हमारा॥
कपड़ा किसी का खाना कहीं सोना किसी जा।
गैरों ही से है सारा सरंजाम हमारा॥
हो रंज जहाँ पास न जाएँ कभी उसके।
आराम जहाँ हो है वहाँ काम हमारा॥
जर दीन है कुरआन है ईमाँ है नबी है।
जर ही मेरा अल्लाह है जर राम हमारा॥

भठि॰––ले मैं तो मियाँ के वास्ते खाना बनाने जाती हूँ।

पीक॰––तो चलो भाई हम लोग भी तब तक जरा 'रहे लाखों बरस साकी तेरा आबाद मैखाना'।

चपर॰––चलो।

(जवनिका पतन)