भारत का संविधान/भाग १

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भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

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भाग १
संघ और उसका राज्य-क्षेत्र

१. (१) भारत, अर्थात् इण्डिया, राज्यों का संघ होगा।

[१][(२) उसके राज्य और राज्य-क्षेत्र वे होंगे जो प्रथम अनुसूची में उल्लिखित हैं]

(३) भारत के राज्य क्षेत्र में—

(क) राज्यों के राज्य-क्षेत्र,
[२][(ख) प्रथम अनुसूची में उल्लिखित संघ राज्य-क्षेत्र, तथा]
(ग) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किये जायें,

समाविष्ट होंगे। नये राज्यों का
प्रवेश, या स्थापना

२. संसद्, विधि द्वारा, ऐसे निबन्धनों और शर्तों के साथ, जिन्हें वह उचित समझे, संघ में नये राज्यों का प्रवेश या स्थापना कर सकेगी। नये राज्यों का
निर्माण और वर्तमान राज्यों के
क्षेत्रों, सीमाओं या
नामों का बदलना

३. संसद् विधि द्वारा—

(क) किसी राज्य से उस का प्रदेश अलग कर के अथवा दो या अधिक राज्यों या राज्यों के भागों को मिला कर अथवा किसी प्रदेश को किसी राज्य के भाग साथ मिला कर नया राज्य बना सकेगी।
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी,
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी,
(घ) किसी राज्य की सीमाओं को बदल सकेगी,
(ङ) किसी राज्य के नाम को बदल सकेगी,

[३][परन्तु इस प्रयोजन के लिये कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिपारिश बिना तथा जहां विधेयक में अन्तविष्ट प्रस्थापना का प्रभाव[४]* * * राज्यों में से किसी के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता हो वहां जब तक कि उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी कालावधि के अन्दर जैसी कि निर्देश में उल्लेखित की जाये या ऐसी अतिरिक्त कालावधि के अन्दर, जैमी कि राष्ट्रपति समनुज्ञात करे, प्रकट किये जाने के लिये राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित न कर दिया गया हो और उस प्रकार उल्लिखित या समनुज्ञान कालावधि समाप्त न हो गयी हो संसद् के किसी सदन में पुरःस्थापित न किया जायेगा।][५] [  ] 

भाग १—संघ और उसका राज्य-क्षेत्र-अनु॰ ४

प्रथम और चतुर्थ
अनुसूचियों के संशो-
धन तथा अनुपूरक,
प्रासंगिक और
अनुषंगिक विषयों के
लिये अनुच्छेद २
और ३ के अधीन
निर्मित विधियां

४. (१) अनुच्छेद २ या अनुच्छेद ३ में निर्दिष्ट किसी विधि में प्रथम अनुसूची और चतुर्थ अनुसूची के संशोधन के लिये ऐसे उपबन्ध अन्तविष्ट होंगे जो उस विधि के उपबन्धों को प्रभावी बनाने के लिये आवश्यक हो, तथा ऐसे अनुपरक आनषंगिक उपबन्ध प्रासंगिक औ- (जिन के अन्तर्गत ऐसी विधि स प्रभावित राज्य या राज्यों के, संसद् या विधान-मंडल या विधान-मंडलों में, प्रतिनिधित्व के बारे में उपबन्ध भी हैं) भी हो सकेंगे, जिन्हें संसद् आवश्यक समझे।

(२) पूर्वोक्त प्रकार की ऐसी कोई विधि अनुच्छेद ३६८ के प्रयोजनों के लिये इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जायेगी।

  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २ द्वारा मूल खंड (२) के स्थान पर रखा गया।
  2. उपरोक्त के ही द्वारा मूल उपखंड (ख) के स्थान पर रखा गया।
  3. उसंविधान (पंचम संशोधन) अधिनियम, १९५६ द्वारा मूल परन्तुक के स्थान पर रखा गया।
  4. "प्रथम अनुसूची के भाग (क) या भाग (ख) में उल्लिखित" शब्द और अक्षर संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  5. जम्मू तथा कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३ में निम्नलिखित और परन्तुक जोड़ दिया जायेगा अर्थात्—
    "परन्तु यह और भी कि जम्मू तथा कश्मीर राज्य के क्षेत्र को घटाने या बढ़ाने या उस राज्य के नाम या सीमा को बदलने के लिये उपबन्ध करने वाला कोई विधेयक उस राज्य के विधान-मंडल की सम्मति के बिना संसद् में पुरःस्थापित न किया जायेगा।"