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भारत का संविधान/भाग १८ आपात-उपबन्ध

विकिस्रोत से
भारत का संविधान
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

पृष्ठ (132) से – १४१ तक

 

 

PART XVIII

EMERGENCY PROVISIONS

Proclamation of Emergency.

[]352. (1) If the President is satisfied that a grave emergency exists whereby the security of India or of any part of the territory thereof is threatened whether by war or external aggression or internal disturbance, he may, by Proclamation, make a declaration to that effect.

(2) A Proclamation issued under clause (1)—

(a) may be revoked by a subsequent Proclamation;
(b) shall be laid before cach House of Parliament;
(c) shall cease to operate at the expiration of two months unless before the expiration of that period it has been approved by resolutions of both Houses of Parliament:

Provided that if any such Proclamation is issued at a time when the House of the People has been dissolved or the dissolution of the House of the People takes place during the period of two months referred to in sub-clause (c), and if a resolution approving the Proclamation has been passed by the Council of States, but no resolution with respect to such Proclamation has been passed by the House of the People before the expiration of that period, the Proclamation shall cease to operate at the expiration of thirty days from the date on which the House of the People first sits after its reconstitution unless before the expiration of the said period of thirty days a resolution approving the Proclamation has been also passed by the House of the People.

(3) A Proclamation of Emergency declaring that the security of India or of any part of the territory thereof is threatened by war or by external aggression or by internal disturbance may be made before the actual occurrence of war or of any such aggression or disturbance if the President is satisfied that there is imminent danger thereof.

Effect of Proclamation of Emergency.

353. While a Proclamation of Emergency is in operation, then—

(a) notwithstanding anything in this Constitution, the executive power of the Union shall extend to the giving of directions to any State as to the manner in which the executive power thereof is to be exercised;
(b) the power of Parliament to make laws with respect to any matter shall include power to make laws conferring powers and imposing duties, or authorising the conferring of powers and the imposition of duties, upon the Union or officers and authorities of the Union as respects that matter, notwithstanding that it is one which is not enumerated in the Union List.
 

भाग १८

आपात-उपबन्ध

आपात की
उद्घोषणा
[]३५२. (१) यदि राष्ट्रपति को समाधान हो जाये कि गम्भीर आपात विद्यमान है जिससे कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आभ्यन्तरिक अशान्ति से भारत या उस के राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा उस आशय की घोषणा कर सकेगा।

(२) खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा—

(क) उत्तरवर्ती उद्घोषणा द्वारा प्रतिसंहृत की जा सकेगी;
(ख) संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जायेगी;
(ग) दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा वह उस कालावधि की समाप्ति से पहिले अनुमोदित न कर दी जाये;

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय निकाली गई है जब कि लोक-सभा का विघटन हो चुका है अथवा लोक-सभा का विघटन इस खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की कालावधि के भीतर हो जाता है, तथा यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा के विषय में लोक-सभा द्वारा उस कालावधि की समाप्ति में पहिले कोई संकल्प पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख में, जिसमें कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

(३) यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आभ्यन्तरिक अशान्ति का संकट सन्निकट है तो चाहे वास्तव में युद्ध अथवा ऐसा कोई आक्रमण या अशान्ति नहीं हुई हो तो भी भारत की अथवा भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा इस प्रकार से संकट में है ऐसे घोषित करने वाली आपात की घोषणा की जा सकेगी।

आपात की
उद्घोषणा का
प्रभाव
३५३. जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब—

(क) इस संविधान में किसी बात के होते हुये भी संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस विषय में निदेश देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किस रीति से प्रयोग करें;
(ख) किसी विषय के संबंध में विधि बनाने की संसद् की शक्ति के अन्तर्गत ऐसी विधियां बनाने की शक्ति भी होगी जो उस विषय के बारे में संघ अथवा संघ के पदाधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां देती तथा कर्त्तव्य सौंपती हो अथवा शक्तियों का दिया जाना और कर्तव्यों का सौंपा जाना प्राधिकृत करती हो चाहे फिर वह विषय ऐसा हो जो संघ सूची में प्रगणित नहीं है।

Part XVIII.—Emergency Provisions.—Arts. 354—356.

Application of provisions relating to distribution of revenues while a Proclamation of Emergency is in operation.

354. (1) The President may, while a Proclamation of Emergency is in operation, by order direct that all or any of the provisions of articles 268 to 279 shall for such period, not extending in any case beyond the expiration of the financial year in which such Proclamation ceases to operate, as may be specified in the order, have effect subject to such exceptions or modifications as he thinks fit.

(2) Every order made under clause (1) shall, as soon as may be after it is made, be laid before each House of Parliament.

Duty of the Union to protect States against external aggression and internal disturbance.

355. It shall be the duty of the Union to protect every State against external aggression and internal disturbance and to ensure that the government of every State is carried on in accordance with the provisions of this Constitution.

 

Provisions in case of failure of constitutional machinery in States.

[]356. (1) If the President, on receipt of a report from the Governor []* * * of a State or otherwise, is satisfied that a situation has arisen in which the government of the State cannot be carried on in accordance with the provisions of this Constitution, the President may by Proclamation—

(a) assume to himself all or any of the functions of the Government of the State and all or any of the powers vested in or exercisable by the Governor []* * * or anybody or authority in the State other than the Legislature of the State;
(b) declare that the powers of the Legislature of the State shall be exercisable by or under the authority of Parliament;
(c) make such incidental and consequential provisions as appear to the President to be necessary or desirable for giving effect to the objects of the Proclamation, including provisions for suspending in whole or in part the operation of any provisions of this Constitution relating to any body or authority in the State :

Provided that nothing in this clause shall authorise the President to assume to himself any of the powers vested in or exercisable by a High Court, or to suspend in whole or in part the operation of any provision of this Constitution relating to High Courts.

(2) Any such Proclamation may be revoked or varied by a subsequent Proclamation.

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३५४—३५६

आपात की उद्घोषणा
जब प्रवर्तन में है तब
राजस्वों के वितरण
सम्बन्धी उपबन्धों की
प्रत्युक्ति
३५४. (१) जब कि आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, तब राष्ट्रपति आदेश द्वारा निदेश दे सकेगा कि इस संविधान के अनुच्छेद २६८ से २७९ तक के सब या कोई उपबन्ध ऐसी किसी कालावधि में, जैसी कि उस आदेश में उल्लिखित की जाये और जो किसी अवस्था में भी उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति से आगे विस्तृत न होगी, जिसमें कि उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं रहती, ऐसे अपवादों या रूपभेदों के अधीन प्रभावी होंगे जैसे कि वह उचित समझे।

(२) खंड (१) के अधीन दिया प्रत्येक आदेश उसके दिये जाने के पश्चात यथासंभव शीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जायगा।

बाह्य आक्रमण
और आभ्यन्तरिक
अशान्ति से राज्य
का संरक्षण करने का
संघ का कर्तव्य
३५५. बाह्य आक्रमण और आभ्यन्तरिक अशान्ति से प्रत्येक राज्य का संरक्षण करना, तथा प्रत्येक राज्य की सरकार इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार चलाई जाये, यह सुनिश्चित करना संघ का कर्तव्य होगा।

 

राज्यों में सांविधानिक
तंत्र के विफल हो
जाने की अवस्था
में उपबन्ध
[]३५६. (१) यदि किसी राज्य के राज्यपाल []* * * से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें कि उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा—

(क) उस राज्य की सरकार के सब या कोई कृत्य, तथा [][राज्यपाल] में, अथवा राज्य के विधानमंडल को छोड़ कर राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी में, निहित, या तदद्वारा प्रयोक्तव्य सब या कोई शक्तियां अपने हाथ में ले सकेगा;
(ख) घोषित कर सकेगा कि राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद् के प्राधिकार के द्वारा या अधीन प्रयोक्तव्य होगी;
(ग) राज्य में के किसी निकाय या प्राधिकारी से संबद्ध इस संविधान के किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन को पूर्णत: या अंशत: निलम्बित करने के लिये उपबन्ध सहित ऐसे प्रासंगिक और आनुषंगिक उपबन्ध बना सकेगा जैसे कि राष्ट्रपति को उद्घोषणा के उद्देश्य को प्रभावी करने के लिये आवश्यक या वांछनीय दिखाई दें :

परन्तु इस खंड की किसी बात से राष्ट्रपति को यह प्राधिकार न होगा कि वह उच्चन्यायालय में निहित या तदद्वारा प्रयोक्तव्य शक्तियों में से किसी को अपने हाथ में ले अथवा इस संविधान के उच्चन्यायालयों से सम्बद्ध किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन को पूर्णतः या अंशतः निलम्बित कर दे।

(२) ऐसी कोई उद्घोषणा किसी उत्तरवर्ती उद्घोषणा द्वारा प्रतिसंहृत या परिवर्तित की जा सकेगी।

Part XVIII.—Emergency Provisions.—Arts. 356—357

(3) Every Proclamation under this article shall be laid before each House of Parliament and shall, except where it is a Proclamation revoking a previous Proclamation, cease to operate at the expiration of two months unless before the expiration of that period it has been approved by resolutions of both Houses of Parliament :

Provided that if any such Proclamation (not being a Proclamation revoking a previous Proclamation) is issued at a time when the House of the People is dissolved or the dissolution of the House of the People takes place during the period of two months referred to in this clause, and if a resolution approving the Proclamation has been passed by the Council of States, but no resolution with respect to such Proclamation has been passed by the House of the People before the expiration of that period, the Proclamation shall cease to operate at the expiration of thirty days from the date on which the House of the People first sits after its reconstitution unless before the expiration of the said period of thirty days a resolution approving the Proclamation has been also passed by the House of the People.

(4) A Proclamation so approved shall, unless revoked, cease to operate on the expiration of a period of six months from the date of the passing of the second of the resolutions approving the Proclamation under clause (3):

Provided that if and so often as a resolution approving the continuance in force of such a Proclamation is passed by both Houses of Parliament, the Proclamation shall, unless revoked, continue in force for a further period of six months from the date on which under this clause it would otherwise have ceased to operate, but no such Proclamation shall in any case remain in force for more than three years :

Provided further that if the dissolution of the House of the People takes place during any such period of six months and a resolution approving the continuance in force of such Proclamation has been passed by the Council of States, but no resolution with respect to the continuance in force of such Proclamation has been passed by the House of the People during the said period, the Proclamation shall cease to operate at the expiration of thirty days from the date on which the House of the People first sits after its reconstitution unless before the expiration of the said period of thirty days a resolution approving the continuance in force of the Proclamation has been also passed by the House of the People.

Exercise of legislative powers under Proclamation issued under article 356.

[]357. (1) Where by a Proclamation issued under clause (1) of article 356. it has been declared that the powers of the Legislature of the State shall be exercisable by or under the authority of Parliament, it shall be competent—

(a) for Parliament to confer on the President the power of the Legislature of the State to make laws, and to authorise the President to delegate, subject to such conditions as he may think fit to impose, the power so conferred to any other authority to be specified by him in that behalf;

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३५६—३५७

(३) इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जायेगी, तथा जहां वह पूर्ववर्ती उद्घोषणा को प्रतिसंहृत करने वाली उद्घोषणा नहीं है वहां वह दो महीने की समाप्ति पर, यदि उस कालावधि की समाप्ति से पूर्व संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा वह अनुमोदित नहीं हो जाती तो, प्रवर्तन में नही रहेगी :

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पहिले की उद्घोषणा को प्रतिसंहृत करने वाली नहीं है) उस समय निकाली गई है जब कि लोक-सभा का विघटन हो चुका है अथवा लोक-सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट दो मास की कालावधि के भीतर हो जाता है तथा यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा के विषय में लोक-सभा द्वारा उस कालावधि की समाप्ति से पहिले कोई संकल्प पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से, जिस में कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

(४) इस प्रकार अनुमोदित उद्घोषणा, यदि प्रतिसंहृत नहीं हो गई हो तो, इस अनुच्छेद के खंड (३) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे के पारित हो जाने की तारीख से छः महीने की कालावधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी :

परन्तु ऐसी उद्घोषणा के प्रवृत्त रखने के लिये अनुमोदन करने वाला संकल्प, यदि और जितनी बार संसद् के दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है तो, और उतनी बार, वह उद्घोषणा, जब तक कि वह प्रतिसंहृत न हो जायें, उस तारीख में जिसमें कि वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती, छ: महीने की और कालावधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी, किन्तु कोई ऐसी उद्घोषणा किसी अवस्था में भी तीन वर्ष में अधिक प्रवृत्त नहीं रहेगी :

परन्तु यह और भी कि यदि लोक-सभा का विघटन छ:मास की किसी ऐसी कालावधि के भीतर हो जाता है तथा ऐसी उद्घोषणा का प्रवृत्त बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाये रखने के बारे में कोई संकल्प लोक-सभा द्वारा उक्त कालावधि में पारित नहीं हुआ है तो उद्घोषणा उस तारीख से जिस में कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को प्रवर्तन में बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

अनुच्छेद ३५६ के
अधीन निकाली
गई उद्घोषणा के
अधीन विधायिनी
शक्तियों का प्रयोग
[१०]३५७. (१) जहां अनुच्छेद ३५६ के खंड (१) के अधीन निकाली गई उद्घोषणा द्वारा यह घोषित किया गया है कि राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद् के प्राधिकार के द्वारा या अधीन प्रयोक्तव्य होगी वहां—

(क) राज्य के विधानमंडल की विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति को देने के लिये तथा ऐसी दी हुई शक्ति को किसी अन्य प्राधिकारी को जिसे राष्ट्रपति, उस लिये उल्लिखित करे, ऐसी शर्तों के अधीन, जिन्हें आरोपित करना वह उचित समझे, प्रन्यायोजन करने के लिये राष्ट्रपति को प्राधिकृत करने की संसद् की,

Part XVIII—Emergency Provisions.—Arts. 357—360.

(b) for Parliament, or for the President or other authority in whom such power to make laws is vested under subclause (a), to make laws conferring powers and imposing duties, or authorising the conferring of powers and the imposition of duties, upon the Union or officers and authorities thereof;
(c) for the President to authorise when the House of the People is not in session expenditure from the Consolidated Fund of the State pending the sanction of such expenditure by Parliament.

(2) Any law made in exercise of the power of the Legislature of the State by Parliament or the President or other authority referred to in sub-clause (a) of clause (1) which Parliament or the President or such other authority would not, but for the issue of a Proclamation under article 356, have been competent to make shall, to the extent of the incompetency, cease to have effect on the expiration of a period of one year after the Proclamation has ceased to operate except as respects things done or omitted to be done before the expiration of the said period, unless the provisions which shall so cease to have effect are sooner repealed or re-enacted with or without modification by Act of the appropriate Legislature.

Suspension of provision of article 19 during emergencies.

358. While a Proclamation of Emergency is in operation, nothing in article 19 shall restrict the power of the State as defined in Part III to make any law or to take any executive action which the State would but for the provisions contained in that Part be competent to make or to take, but any law so made shall, to the extent of the incompetency cease to have effect as soon as the Proclamation ceases to operate, except as respects things done or omitted to be done before the law so ceases to have effect

Suspension of the enforcement of the rights conferred by Part III during emergencies.

359. (1) Where a Proclamation of Emergency is in operation, the President may by order declare that the right to move any court for the enforcement of such of the rights conferred by Part III as may be metioned in the order and all proceedings pending in any court for the enforcement of the rights so mentioned shall remain suspended for the period during which the Proclamation is in force or for such shorter period as may be specified in the order.

(2) An order made as aforesaid may extend to the whole or any part of the territory of India.

(3) Every order made under clause (1) shall, as soon as may be after it is made, be laid before each House of Parliament.

Provisions as to financial emergency.

[११]360. (1) If the President is satisfied that a situation has arisen whereby the financial stability or credit of India or of any part of the territory thereof is threatened, he may by a Proclamation make a declaration to that effect.

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३५७—३६०

(ख) संघ अथवा उसके पदाधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्ति देने या कर्तव्य आरोपित करने के लिये, अथवा शक्तियों का दिया जाना या कर्तव्यों का आरोपित किया जाना प्राधिकृत करने के लिये, विधि बनाने की संसद् को अथवा राष्ट्रपति की या ऐसी विधि बनाने की शक्ति जिस अन्य प्राधिकारी में उपखंड (क) के अधीन निहित है उसकी,
(ग) जब लोक-सभा सत्र में न हो तब व्यय के लिये संसद् की मंजूरी लंबित रहने तक राज्य की संचित निधि में से ऐसे व्यय को प्राधिकृत करने की राष्ट्रपति की क्षमता होगी।

(२) राज्य के विधानमंडल की शक्ति के प्रयोग में संसद् द्वारा अथवा राष्ट्रपति अथवा खंड (१) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा निर्मित कोई विधि, जिसे अनुच्छेद ३५६ के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव में संसद् या राष्टपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी बनाने के लिये सक्षम न होता, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात एक वर्ष की कालावधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक सिवाय उन बातों के प्रभाव में न रहेगी जो उक्त कालावधि की समाप्ति से पूर्व की गई या की जाने से छोड़ दी गई थी जब तक कि वे उपबन्ध, जो इस प्रकार प्रभावी न रहेंगें, समुचित विधानमंडल के अधिनियम द्वारा उस से पहिले ही या तो निरसित और या रूपभेदों के सहित या बिना पुनः अधिनियमित न कर दिय गये हो;

आपातों में अनुच्छेद
१९ के उपबन्धों
का निलम्बन
३५८. जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब अनुच्छेद १९ की किसी बात से राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की अथवा कोई ऐसी कार्यपालिका कार्यवाही करने की भाग ३ में परिभापित शक्ति, जिसे वह राज्य उस भाग में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अभाव में बनाने अथवा करने के लिये सक्षम होता, निबंन्धित नहीं होगी किन्तु इस प्रकार निर्मित कोई विधि उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की भाषा तक तुरन्त प्रभावशून्य हो जायेगी शिवाय उन बातों के जो विधि के इस प्रकार प्रभावशून्य होने से पहिले की गई या की जाने से छोड़ दी गई थी।

आपात में भाग ३
द्वारा प्रदत्त अधि-
कारों के प्रवर्तन
का निलम्बन
३५९. (१) जहां कि आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है वहां राष्ट्रपति आदेश द्वारा घोषित कर सकेगा कि भाग ३ द्वारा दिये गये अधिकारों में से ऐसों को प्रवर्तित कराने के लिये, जैसे कि उस आदेश में वर्णित हों, किसी न्यायालय के प्रचालन का अधिकार तथा इस प्रकार वर्णित अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिये किसी न्यायालय में लंबित सब कार्यवाहियां उस कालावधि के लिये, जिसमें कि उद्घोषणा लागू रहती है, अथवा उस से छोटी ऐसी कालावधि के लिये, जैसी कि आदेश में उल्लिखित की जाये, निलम्बित रहेगी।

(२) उपरोक्त प्रकार दिया हुआ आदेश भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में अथवा उस के किसी भाग पर विस्तृत हो सकेगा।

(३) खंड (१) के अधीन दिया प्रत्येक आदेश उसके दिये जाने के पश्चात् यथासंभव शीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जायगा।

वित्तीय आपात के
बारे में उपबन्ध
[१२]३६०. यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिससे भारत अथवा उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा उस बात की घोषणा कर सकेगा।

Part XVIII.—Emergency Provisions.—Art. 360.

(2) The provisions of clause (2) of article 352 shall apply in relation to a Proclamation issued under this article as they apply in relation to a Proclamation of Emergency issued under article 352.

(3) During the period any such Proclamation as is mentioned in clause (1) is in operation, the executive authority of the Union shall extend to the giving of directions to any State to observe such canons of financial propriety as may be specified in the directions, and to the giving of such other directions as the President may deem necessary and adequate for the purpose.

(4) Notwithstanding anything in this Constitution—

(a) any such direction may include—
(i) a provision requiring the reduction of salaries and allowances of all or any class of persons serving in connection with the affairs of a State :
(ii) a provision requiring all Money Bills or other Bills to which the provisions of article 207 apply to be reserved for the consideration of the President after they are passed by the Legislature of the State;
(b) it shall be competent for the President during the period any Proclamation issued under this article is in operation to issue directions for the reduction of salaries and allowances of all or any class of persons serving in connection with the affairs of the Union including the Judges of the Supreme Court and the High Courts.

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३६०

(२) अनुच्छेद ३५२ के खंड (२) के उपबन्ध इस अनुच्छेद के अधीन निकाली गयी उद्घोषणा के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे कि अनुच्छेद ३५२ के अधीन निकाली गयी आपात की उद्घोषणा के लिये लागू होते हैं।

(३) उस कालावधि में, जिसमें कि खंड (१) में वर्णित कोई उद्घोषणा प्रवर्तन में रहती है संघ की कार्यपालिका शक्ति किसी राज्य को वित्तीय औचित्य सम्बन्धी ऐसे सिद्धान्तों का पालन करने के लिये निदेश देने तक, जैसे कि निदेशों में उल्लिखित हों, तथा ऐसे अन्य निदेश देने तक, जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिये देना आवश्यक और समुचित समझे, विस्तृत होगी।

(४) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी—

(क) ऐसे किसी निदेश के अन्तर्गत—
(१) राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में सेवा करने वाले व्यक्तियों के सब या किन्हीं वर्गों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाले उपबन्ध,
(२) धन-विधयकों अथवा अन्य विधयकों को जिन को अनुच्छेद २०७ के उपबन्ध लागू है, राज्य के विधानमंडल के द्वारा उन के पारित किये जाने के पश्चात् राष्ट्रपति के विचार के लिये रक्षित करने के लिये उपबन्ध, भी हो सकेंगे;
(ख) उस कालावधि में, जिस में कि इस अनुच्छेद के अधीन निकाली गयी उद्घोषणा प्रवर्तन में है, उच्चतमन्यायालय और उच्चन्यायालयों के न्यायाधीशों के सहित संघ के कार्यों के सम्बन्ध में सेवा करने वाले व्यक्तियों के सब या किसी वर्ग के वेतनों और भत्तों में कमी के लिये निदेश निकालने के लिये राष्ट्रपति सक्षम होगा।
 

PART XIX

MISCELLANEOUS

Protection of President and Governors and Rajpramukhs.

[१३]361. (1) The President, or the Governor or Rajpramukh of a State, shall not be answerable to any court for the exercise and performance of the powers and duties of his office or for any act donc or purporting to be done by him in the exercise and performance of those powers and dutics :

Provided that the conduct of the President may be brought under review by any court, tribunal or body appointed or designated by either House of Parliament for the investigation of a charge under article 61 :

Provided further that nothing in this clause shall be construcd as restricting the right of any person to bring appropriate proceedings against the Government of India or the Government of a State.

(2) No criminal procedlings whatsoever shall be instituted or continued against the President, or the Governor [१४]* * * of a State, in any court during his term of office.

(3) process for the arrest or imprisonment of the President, or the Governor [१४]* * * of a State, shall issue from any court during his term of office.

(4) No civil proceedings in which relief is claimed against the President, or the Governor [१४]* * * of State shall be instituted during this term of office in any court in respect of any act done or purporting to be done by him in his personal capacity, whether before or after he entered upon his office as President, or as Governor [१४]* * * of such State, until the expiration of two months next after notice in writing has been delivered to the President or the Governor [१४]* * *, as the case may be, or left at his office stating the nature of the proceedings, the cause of action therefor, the name, description and place of residence of the party by whom such proceedings are to be instituted and the relief which he claims.

 

भाग १९

प्रकीर्ण

राष्ट्रपति और
राज्यपालों और
राजप्रमुखों का
संरक्षण
[१५]३६१. (१) राष्ट्रपति, राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन के लिये अथवा उन शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन में अपने द्वारा किये गये अथवा कर्तुमभिप्रेत किसी कार्य के लिये किमी न्यायालय को उतरदायी न होगा :

परन्तु अनुन्छेद ६१ के अधीन दोषारोप के अनुसंधान के लिये संसद् के किसी सदन द्वारा नियुक्त या नामोदिष्ट किसी न्यायालय, न्यायाधिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण का पुर्नावलोकन किया जा सकेगा :

परन्तु यह और भी कि इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं किया जायेगा मानों कि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के खिलाफ समूचित कार्यवाहियों के चलाने के किसी व्यक्ति के अधिकार को निर्बन्धित करती है।

(२) राष्ट्रपति के अथवा राज्य के राज्यपाल [१६]* * * के खिलाफ उसकी पदावधि में किसी भी प्रकार की दंड कार्यवाही किसी न्यायालय में संस्थित नहीं की जायेगी और न चालू रखी जायेगी।

(३) राष्ट्रपति अथवा राज्य के राज्यपाल [१६]* * * की पदावधि में उसे बन्दी या कारावासी करने के लिय किसी न्यायालय से कोई आदेशिका नहीं निकलेगी।

(४) राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के राज्यपाल [१६]* * * के रूप में अपना पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात, अपने वैयक्तिक रूप में किये गये अथवा कर्तुमभिप्रेत किसी कार्य के बारे में राष्ट्रपति अथवा ऐसे राज्य के राज्यपाल [१६]* * * के खिलाफ अनुतोष की मांग करने वाली कोई व्यवहार कार्यवाहिया उसकी पदावधि में किसी न्यायालय में तब तक संस्थित न की जायेगी जब तक कि कार्यवाहियों के स्वरूप, उनके लिय वाद का कारण ऐसी कार्यवाहियों को संस्थित करने वाले पक्षकार का नाम, विवरण, निवासस्थान तथा उससे मांग किये जाने वाले अनुतोष का वर्णन करने वाली लिखित सूचना को यथास्थिति राष्ट्रपति या राज्यपाल [१६]* * * को दिये जाने अथवा उसके कार्यालय में छोड़े जाने के पश्चात् दो मास का समय व्यतीत न हो गया हो।

Part XIX.—Miscellaneous.—Arts. 362—364.

Rights and privileges of Rulers of Indian States.

[१७]362. In the exercise of the power of Parliament or of the Legislature of a State to make laws or in the exercise of the executive power of the Union or of a State, due regard shall be had to the guarantee or assurance given under any such covenant or agreement as is referred to in [१८]* * * article 291 with respect to the personal rights, privileges and dignities of the Ruler of an Indian State.

Bar to Interference by Courts in disputes arising out of certain treaties agreements, etc.

363. (1) Notwithstanding anything in this Constitution, but subject to the provisions of article 143, neither the Supreme Court nor any other court shall have jurisdiction in any dispute arising out of any provision of a treaty, agreement covenant, engangement sanad or other similar instrument which was entered into or executed before the commencement of this Constitution by any Ruler of an Indian State and to which the Government of the Dominion of India or any of its predecessor Governments was a party and which has or has been continued in operation after such commencement, or in any dispute in respect of any right accruing under or any liability or obligation arising out of any of the provisions of this Constitution relating to any such treaty, agreement, covenant, engagement, sanad or other similar instrument.

(2) In this article—

(a) "Indian State" means any territory recognised before the commencement of this Constitution by His Majesty or the Government of the Dominion of India as being such a State; and
(b) "Ruler" includes the Prince, Chief or other person recognised before such commencement by His Majesty or the Government of the Dominion of India as the Ruler of any Indian State.

Special provisions as to major ports and aerodromes.

364. (1) Notwithstanding anything in this Constitution, the President may by public notification direct that as from such date as may be specified in the notification—

(a) any law made by Parliament or by the Legislature of a State shall not appply to any major port or aerodrome or shall apply thereto subject to such exceptions or modifications as may be specified in the notification, or
(b) any existing law shall cease to have effect in any major port or aerodrome except as respects things done or omitted to be done before the said date, or shall in its application to such port or aerodrome have effect subject to such exceptions or modifications as may be specified in the notification.

(2) In this article—

(a) "major port" means a port declared to be a major port by or under any law made by Parliament or any existing law and includes all areas for the time being included within the limits of such port;

भाग १९—प्रकीर्ण—अनु॰ ३६२—३६४

देशी राज्यों
के शासकों के
अधिकार और
विशेषाधिकार
[१९]३६२. संसद् 'की या किसी' राज्य के विधान-मंडल की विधि बनाने की शक्ति के प्रयोग में, अथवा संघ या किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में, देशी राज्य के शासक के वैयक्तिक अधिकारी, विशेषाधिकारों और गरिमा के विषय में ऐसी प्रसंविदा या करार के अधीन, जैसा कि अनुच्छेद २९१ [२०]* * * में निदिष्ट है दी गयी प्रत्याभूति या आश्वासन का सम्यक‍्ध्यान रखा जायेगा।

कतिपय सन्धियों
करारों इत्यादि से
उद्भूत विवादों में
न्यायालयों द्वारा
हस्तक्षेप का वर्जन
३६३. (१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी किन्तु अनुच्छेद १४३ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए न तो उच्चतमन्यायालय और न किसी अन्य न्यायालय का किसी सन्धि, करार, प्रसंविदा, बचन-बन्ध, सनद अथवा ऐसी ही किसी अन्य लिखत से, जो इन संविधान के प्रारम्भ से पहिले किसी देशी राज्य के शासक द्वारा की गई या निष्पादित की गयी थी तथा जिस में भारत डोमीनियन की सरकार या इसकी पूर्वाधिकारी कोई भी सरकार एक पक्ष थी तथा जो ऐसे प्रारम्भ के पश्चात प्रवर्तन में है या बनी रही है, उद्भूत किसी विवाद में अथवा ऐसी संधि, करार, प्रसविदा, वचन-बन्ध, सनद अथवा ऐसी ही किसी अन्य लिखत से सम्बद्ध इस संविधान के उपबन्धों में से किसी से प्रोद्भूत किसी अधिकार, या उद्भूत किसी दायित्व या आभार के विषय में किसी विवाद में क्षेत्राधिकार होगा।

(२) इस अनुच्छेद में—

(क) "देशी राज्य" से अभिप्रेत है कोई राज्य-क्षेत्र जो सम्राट या भारत डोमीनियन की सरकार द्वारा, इस संविधान के प्रारम्भ से पहिले ऐसा राज्य अभिज्ञात था; तथा
(ख) "शासक" के अन्तर्गत है, राजा, प्रमुख या अन्य कोई व्यक्ति जो सम्राट या भारत डोमीनियन की सरकार द्वारा ऐसे प्रारम्भ से पहिले किसी देशी राज्य का शासक अभिज्ञात था।

महापत्तनों और
विमान क्षेत्रों के
लिये विशेष
उपबन्ध
३६४. (१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकेगा कि ऐसी तारीख से लेकर जैसी कि अधिसूचना में उल्लिखित हो—

(क) संसद् या राज्य के विधान-मंडल द्वारा निर्मित कोई विधि किसी महापत्तन या विमान-क्षेत्र को लागू न होगी अथवा ऐसे अपवादों या रूपभेदों के अधीन रह कर, जैसे कि लोक-अधिसूचना में उल्लिखित हों, लागू होगी; अथवा
(ख) कोई वर्तमान विधि किमी महापत्तन या विमान-क्षेत्र में उक्त तारीख में पहिले की हुई या किये जाने से छोड़ दी गयी बातों के सम्बन्ध से अतिरिक्त अन्य बातों के लिये प्रभावी न होगी, अथवा ऐसे पत्तन या विमान-क्षेत्र में से अपवादों या रूपभेदों के अधीन रह कर, जैसे कि लोक अधिसूचना में उल्लिखित हों, प्रभावी होगी।

(२) इस अनुच्छेद में—

(क) "महापत्तन" से अभिप्रेत है कोई पत्तन जो संसद् द्वारा निर्मित किसी विधि या किसी वर्तमान विधि के द्वारा या अधीन महापत्तन घोषित किया गया है तथा उसके अन्तर्गत वह सब क्षेत्र हैं जो तत्समय ऐसे पत्तन की सीमाओं के अन्तर्गत हैं;
 

Part XIX.—Miscellaneous.—Arts. 364—366.

(b) "aerodrome" means aerodrome as defined for the purposes of the enactments relating to airways, aircraft and air navigation.

Effect of failure to comply with or to give effect to, directions given by the Union.

[२१]365. Where any State has failed to comply with, or to give effect to, any directions given in the exercise of the executive power of the Union under any of the provisions of this Constitution, it shall be lawful for the President to hold that a situation has arisen in which the government of the State cannot be carried on in accordance with the provisions of this Constitution.

 

Definitions.

366. In this Constitution, unless the context otherwise requires, the following expressions have the meanings hereby respectively assigned to them, that is to say—

(1) "agricultural income" means agricultural income as defined for the purposes of the enactments relating to Indian income-tax;
(2) an Anglo-Indian" means a person whose father of any of whose other male progenitors in the male line is or was of European descent but who is domiciled within the territory of India and is or was born within such territory of parents habitually resident therein and not established there for temporary purposes only;
(3) "article" means an article of this Constitution;
(4) "borrow" includes the raising of money by the grant of annuities, and "loan" shall be construed accordingly;
(5) "clause" means a clause of the article in which the expression occurs;
(6) "corporation tax" means any tax on income, so far as that tax is payable by companies and is a tax in the case of which the following conditions are fulfilled:—
(a) that it is not chargeable in respect of agricultural income;
(b) that no deduction in respect of the tax paid by companies is, by any enactments which may apply to the tax, authorised to be made from dividends payable by the companies to individuals;
(c) that no provision exists for taking the tax so paid into account in computing for the purposes of Indian income-tax the total income of individuals receiving such dividends, or in computing the Indian income-tax payable by, or refundable to, such individuals;
(7) "corresponding Province", "corresponding Indian State" or "corresponding State" means in cases of doubt such Province, Indian State or State as may be determined by the President to be the corresponding Province, the corresponding Indian State or the corresponding State, as the case may be, for the particular purpose in question;

भाग १९—प्रकीर्ण—अनु॰ ३६४—३६६

(ख) "विमान-क्षेत्र" से अभिप्रेत है वायु-पथों, विमानों और विमान-परिवहन से सम्बद्ध अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिये परिभाषित विमान-क्षेत्र।

संघ द्वारा दिये गये
निदेशों का अनुवर्तन
करने या उन को
प्रभावी करने में
असफलता का प्रभाव
[२२]३६५. जहां इस विधान के उपबन्धों में से किसी के अधीन संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में दिये गये किन्ही निदेशों का अनुवर्तन करने में या उनको प्रभावी करने में कोई राज्य असफल हुआ है वहां राष्ट्रपति के लिये यह मानना विधि-संगत होगा कि ऐसी अवस्था उत्पन्न हो गयी है जिन में राज्य का शासन इस संविधान के उपबन्धों के अनुकूल नहीं चलाया जा सकता।

 

परिभाषाएं३६६. जब तक प्रसंग से अन्यथा अपेक्षित न हो इस संविधान में निम्नलिखित पदों के वे अर्थ हैं जो क्रमशः उन को यहां दिये गये है, अर्थात्–

(१) "कृषि-आय" से अभिप्रेत है, भारतीय आय-कर से सम्बद्ध अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिये परिभाषित कृषि-आय;
(२) "आंग्ल भारतीय" से अभिप्रेत है वह व्यक्ति जिसका पिता अथवा पितृ-परम्परा में कोई अन्य पुरुष-जनक योरोपीय उद्भव का है या था, किन्तु जो भारत राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत अधिवासी है और जो ऐसे राज्य-क्षेत्र में ऐसे जनकों से जन्मा है जो वहां साधारणतया निवास करते रहे है और केवल अस्थायी प्रयोजनों के लिये नहीं ठहरे हैं;
(३) "अनुच्छेद" से अभिप्रेत है इस संविधान का अनुच्छेद
(४) "उधार लेना" मे अन्तर्गत है वार्षिकियों के अनुदान द्वारा धन लेना तथा "उधार" का तदनुसार अर्थ किया जायेगा;
(५) "खंड" से अभिप्रेत है उस अनुच्छेद का खंड जिस में कि वह पद आता है;
(६) "निगम कर" से अभिप्रेत है कोई आय पर कर, जहां तक कि वह कर समवायो द्वारा देय है, तथा ऐसा कर है जिस के सम्बन्ध में निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं
(क) कि वह कृषि आय के विषय में प्रभार्य नहीं है;
(ख) कि उस कर पर लागू होने वाली किन्हीं अधिनियमितियों में समवायों द्वारा दिये जाने वाले कर के बारे में कोई कटौती उन लाभाशों में से, जो समवायों द्वारा व्यक्तियों को देय हैं, प्राधिकृत नहीं है;
(ग) कि भारतीय आय-कर के प्रयोजनों के लिये ऐसे लाभांश पाने वाले व्यक्तियों की पूर्ण आय की गणना में अथवा ऐसे व्यक्तियों द्वारा देय अथवा उन को लौटाये जाने वाली भारतीय आय-कर की गणना में, इस प्रकार दिये गये कर को सम्मिलित करने का कोई उपबन्ध विद्यमान नहीं है;
(७) "तत्स्थानी प्रान्त", "तत्स्थानी देशी राज्य" अथवा "तत्स्थानी राज्य" से संशयात्मक दशाओं में अभिप्रेत है ऐसा प्रान्त, देशी राज्य, या राज्य जिसे प्रश्नास्पद विशिष्ट प्रयोजन के लिये राष्ट्रपति यथास्थिति तत्स्थानी प्रान्त, तत्स्थानी देशी राज्य अथवा तत्स्थानी राज्य निर्धारित करे;
 

Part XIX.—Miscellaneous.—Arts. 366.

(8) "debt" includes any liability in respect of any obligation to repay capital sums by way of annuitics and any liability under any guarantee, and "debt charges" shall be construed accordingly;
(9) "estate duty" means a duty to be assessed on or by reference to the principal value, ascertained in accordance with such rules as may be prescribed by or under laws made by Parliament or the Legislature of a State relating to the duty, of all property passing upon death or deemed, under the provisions of the said laws, so to pass;
(I0) "existing law" means any law, Ordinance, order, byelan, rule or regulation passed or made before the commencement of this Constitution by any Legislature, authority or person having power to make such a lan', Ordinance, ordler, bye-law', rule or regulation;
(II) "Federal Court" means the Federal Court constituted under the Government of India Act, 1935;
(I2) "goods" includes all materials, commoditics, and articles;
(I3) "guarantee" includes any obligation undertaken before the commencement of this Constitution to make payments in the event of the profits of an undertaking failing short of a specified amount;
(I4) "High Court" means any court which is deemed in the purposes of this Constitution to be a High Court for any State and includes—
(a) any Court in the territory of India constituted or reconstituted under this Constitution as a High Court, and
(b) any other Court in the territory of India which may be declared by Parliament by law to be a High Court for all or any of the purposes of this Constitution;
(I5) "Indian State" means any territory which the Government of the Dominion of India recognised as such a State;
(I6) "Part" means a Part of this Constitution;
(I7) "pension" means a pension, whether contributory or not, of any kind whatsoever payable to or in respect of any person, and includes retired pay so payable, a gratuity so payable and any sum or sums so payable by way of the return, with or without interest thereon or any other addition thereto, of subscriptions to a provident fund;
(I8) "Proclamation of Emergency" means a Proclamation issued under clause (I) of article 352;
(I9) "public notification" means a notification in the Gazette of India, or, as the case may be, the Olicial Gazette ol a State;

 

भाग १६—प्रकीर्ण—अनु॰ ३६६

(८) "ऋण" के अन्तर्गत है वार्षिकियों के रूप में मूलधन राशियों को लौटाने के किसी आभार के विषय में कोई दायित्व तथा किसी प्रत्याभूति के अधीन कोई दायित्व तथा "ऋणभारों" का तदनुसार अर्थ किया जायेगा;
(९) "सम्पत्ति शुल्क" से अभिप्रेत है कोई शुल्क जो मृत्यु पर रिक्थ हुई, अथवा संसद् या राज्य के विधान-मंडल द्वारा उस शुल्क के सम्बन्ध में निर्मित विधियों के उपबन्धों के अधीन वैसी रिक्थ हुई समझी जाने वाली, सारी सम्पत्ति के, उक्त विधियों के द्वारा या अधीन विहित नियमों के अनुसार अभिनिश्चित, मूल मूल्य पर या के निर्देश से परिगणित की जानी हो;
(१०) "वर्तमान विधि" से अभिप्रेत हैं कोई विधि, अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम या विनियम जो इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व ऐसी विधि अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम या विनियम को बनाने की शक्ति रखने वाले किसी विधान-मंडल, प्राधिकारी या व्यक्ति द्वारा पारित या निर्मित है;
(११) "फेडरलन्यायालय" से अभिप्रेत हैं भारत शासन अधिनियम, १९३५ के अधीन गठित फेडरलन्यायालय;
(१२) "वस्तुओं" के अन्तर्गत है सब सामग्री पण्य और पदार्थ;
(१३) "प्रत्याभूति" के अन्तर्गत है कोई ऐसा आभार जो इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व किसी उपक्रम के लाभों के किसी उल्लिखित राशि से कम होने की अवस्था में देने के लिये उठाया या हो;
(१४) "उच्चन्यायालय" से अभिप्रेत है कोई न्यायालय जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिये किसी राज्य के लिये उच्चन्यायालय समझा जाता है, तथा इसके अन्तर्गत हैं—
(क) इस संविधान के अधीन उच्चन्यायालय रूप में गठित या पुनर्गठित भारत राज्य क्षेत्र में का कोई न्यायालय; तथा
(ख) भारत राज्य-क्षेत्र में का कोई अन्य न्यायालय जो इस संविधान के सब या किन्हीं प्रयोजनों के लिये संसद् से विधि द्वारा उच्चन्यायालय घोषित किया जाये;
(१५) "देशी राज्य" से अभिप्रेत है कोई ऐसा राज्य क्षेत्र जिसे भारत डोमीनियन की सरकार ऐसा राज्य अभिज्ञात करती थी;
(१६) "भाग" से अभिप्रेत है इस संविधान का भाग;
(१७) "निवृत्ति वेतन" से अभिप्रेत है किसी व्यक्ति को, या के बारे में देय किसी प्रकार का निवृत्ति वेतन चाहे फिर वह अंशदायी हो या न हो तथा इस के अन्तर्गत है उस प्रकार देय सेवा-निवृत्ति-वेतन, उस प्रकार देय उपदान तथा किसी भविष्य निधि के चन्दों को व्याज सहित या रहित तथा उनके अन्य जोड़ सहित या रहित लौटाने के लिये देय कोई राशि या राशियां;
(१८) "आपात की उद्घोषणा" से अभिप्रेत है वह उद्घोषणा जो कि अनुच्छेद ३५२ के खंड (१) के अधीन निकाली गयी हो;
(१९) "लोक-अधिसूचना" से अभिप्रेत है भारत के सूचना-पत्र में अथवा जैसी कि स्थिति हो, राज्य के राजकीय सूचना-पत्र में अधिसूचना;

 

Part XIX.—Miscellaneous.—Arts. 366-367.

(20) "railway" does not include—

(a) a tramway wholly within a municipal area, or
(b) any other line of communication wholly situate in one State and declared by Parliament by law not to be a railway;

[२३]

(22) "Ruler" in relation to an Indian State mean; the Prince, Chief or other person by whom any such covenant or agreement as is referred to in clause (I) of article 29I was entered into and who for the time being is recognised by the President as the Ruler of the State, and includes any person who for the time being is re-cognised by the President as the successor of such Ruler;
(23) "Schedule" means a Schedule to this Constitution;
(24) "Scheduled Castes" means such castes, races or tribes or parts of or groups within such castes, races or tribes as are deemed under article 34I to be Scheduled Castes for the purposes of this Constitution;
(25) "Scheduled Tribes" means such tribes or tribal communities or parts of or groups within such tribes or communities as are deemed under article 342 to be Scheduled Tiibes for the purposes of this Constitution;
(26) "securities includes stock;
(27) "sub-clause" means a sub-clause of the clause in which the expression occurs;
(28) "taxation" includes the imposition of any tax or impost, whether general or local or special, and "tax" shall be construed accordingly;
(29) "tax on income" includes a tax in the nature of an excess profits tax;
[२४][30) "Union territory" means any Union territory specified in the First Schedule and includes any other territory comprised within the territory of India but not specified in that Schedule.]

Interpretation.

367. (I) Unless the context otherwise requires the General Clauses Act, 1897, shall subject to any, adaptations and modifications that may be made therein under article 372, apply for the interpretation of this Constitution as it applies for the interpretation of an Act of the Legislature of the Dominion of India.

 

भाग १९—प्रकीर्ण—अनु॰ ३६६-३६७

(२०) "रेल" के अन्तर्गत नहीं है—

(क) किसी नगर-क्षेत्र में ही पूर्णतया स्थित ट्रामवे; अथवा
(ख) संचार की कोई अन्य लीक जो किसी एक राज्य में पूर्णतया स्थित हो और जिसे संसद् ने विधि द्वारा रेल न होना घोषित किया हो;

[२५]

(२२) "शासक" से किसी देशी राज्य के सम्बन्ध में अभिप्रेत है कोई राजा, प्रमुख या अन्य कोई व्यक्ति जिसने ऐसी कोई मसविदा या करार, जैसा कि अनुच्छेद २९१ के खंड (१) में निर्दिष्ट है, किया था तथा जो राष्ट्रपति द्वारा उस राज्य का शासक तत्समय अभिज्ञात है तथा उस के अन्तर्गत ऐसा कोई व्यक्ति भी है जो राष्ट्रपति द्वारा ऐसे शासक का उत्तराधिकारी तत्समय अभिज्ञात है;
(२३) "अनुसूची" से अभिप्रेत है इस संविधान की अनुसूची;
(२४) "अनुसूचित जातियां" से अभिप्रेत है ऐसी जातियां, मूलवश या आदिमजातियां अथवा ऐसी जातियों, मूलवंशों या, आदिमजातियों के भाग या उनमें के यूथ जो कि अनुच्छेद ३४१ के अधीन इस संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित जातियां समझी जाती हैं;
(२५) "अनुसूचित आदिमजातियां" से अभिप्रेत है ऐसी आदिमजातियां या आदिमजाति-समुदाय अथवा ऐसी आदिमजातियों या आदिम-जाति-समुदायों के भाग या उन में के यूथ जो कि अनुच्छेद ३४२ के अधीन इस संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित आदिम-जातियां समझी जाती है;
(२६) "प्रतिभूतियाँ" के अन्तर्गत विधिपत्र भी है;
(२७) "उपखंड" में अभिप्रेत है उस खण्ड का उपखण्ड जिसमें कि यह पद आता है;
(२८) "कराधान" के अन्तर्गत है किसी कर या लाभ-कर का लगाना चाहे फिर वह साधारण या स्थानीय या विशेष हो, और "कर" का तदनुसार अर्थ किया जायेगा;
(२९) "आय पर कर" के अन्तर्गत है अतिरिक्त लाभ-कर के प्रकार का कर;
[२६](३०) ["संघ राज्य-क्षेत्र" से अभिप्रेत है प्रथम अनुसूची में उल्लिखित कोई संघ राज्य-क्षेत्र तथा इसके अन्तर्गत है भारत के राज्य-क्षेत्र के अन्दर समाविष्ट किन्तु उस अनुसूची में उल्लिखित कोई अन्य राज्य-क्षेत्र]

निर्वचन ३६७ (१) जब तक कि प्रसंग से अन्यथा अपेक्षित न हो तब तक इस संविधान निर्वाचन के निर्वाचन के हेतु साधारण परिभाषा अधिनियम, १८९७ किन्हीं ऐसे अनुकूलनों और रूपभेदों के साथ, जैसे कि अनुच्छेद ३७२ के अधीन उस में किये जायें, वैसे ही लागू होगा जैसे कि वह भारत डोमीनियम के विधान-मंडल के अधिनियम के निर्वाचन के लिये लागू है।

  1. In its application to the State of Jammu and Kashmir, the following new clause shall be added to art. 352:–
    "(4) No proclamation of Emergency made on grounds only of internal disturbance or imminent danger thereof shall have effect in relation to the State of Jammu and Kashmir (except as respects article 354) unless it is made at the request or with the concurrence of the Government of that State."
  2. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३५२ में निम्नलिखित नया खंड जोड़ दिया जायेगा, अर्थात्–
    "(४) केवल आभ्यान्तरिक अशांति या उसके सन्निकट संकट के ही आधार पर की गयी आपात की उद्घोषणा (अनुच्छेद ३५४ के विषय के सिवाय) जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में तब तक लागू न होगी जब तक कि वह उस राज्य की सरकार की प्रार्थना पर या उसकी सहमति से नहीं की गई है।"
  3. Art. 356 shall not apply to the State of Jammu and Kashmir.
  4. The words "or Rajpramukh" omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act 1956, s. 29 and Sch.
  5. The words "or Rajpramukh, as the case may be," omitted, ibid.
  6. अनुच्छेद ३५६ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  7. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  8. उपरोक्त के ही द्वारा "यथास्थिति राज्यपाल या राजप्रमुख" के स्थान पर रख गये।
  9. Art. 357 shall not apply to the State of Jammu and Kashmir.
  10. अनुच्छेद ३५७ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  11. Art. 360 shall not apply to the State of Jammu and Kashmir.
  12. अनुच्छेद ३६० जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  13. In its application to the State of Jammu and Kashmir to art. 361, after cl. (4), the following clause shall be added :–
    "(5) The provisions of this article shall apply in relation to the Sadar-i-Riyasat of Jammu and Kashmir as they apply in relation to a Rajpramukh, but without prejudice to the provisions of the Constitution of that State."
  14. १४.० १४.१ १४.२ १४.३ १४.४ The words "or Rajpramukh" omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act 1956, s. 29 and Sch.,
  15. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३६१ में खंड (४) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ दिया जायेगा, अर्थात्—
    "(५) इस अनुच्छेद के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर के सदरे रियासत के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे कि वे किसी राजप्रमुख के सम्बन्ध में लागू होते हैं किन्तु इससे उस राज्य के संविधान के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ेगा।"
  16. १६.० १६.१ १६.२ १६.३ १६.४ "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६ धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  17. Art. 362 shall not apply to the State of Jammu and Kashmir.
  18. The words "clause (1) of" omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch.
  19. अनुच्छेद ३६२ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  20. "के खंड (१)" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  21. Art. 365 shall not apply to the State of Jammu and Kashmir.
  22. अनुच्छेद ३६५ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  23. Cl. (21) omitted by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch.
  24. Subs. by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 29 and Sch., for the original cl. (30).
  25. खंड (२१) संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिया गया।
  26. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा मूल खंड (३०) के स्थान पर रखा गया।