महात्मा शेख़सादी/५ सादी की रचनायें और उनका महत्व
पांचवां अध्याय
सादी की रचनायें और उनका महत्व
सादी के रचित ग्रन्थों की संख्या १५ से अधिक है। इनमें ४ ग्रन्थ केवल गज़लों के हैं। एक दो ग्रन्थों में वह क़सीदे दर्ज हैं जो उन्होंने समय समय पर बादशाहों या वज़ीरों की प्रशंसा में लिखे थे। इन में एक अरबी भाषा में है। दो ग्रन्थ भक्तिमार्ग पर लिखे गये हैं। यद्यपि उनकी समस्त रचनाओं में मौलिकता ओज विद्यमान है, यहाँतक कि कितने ही बड़े बड़े कवियों ने उन्हें गज़लों का बादशाह माना है। लेकिन सादी की ख्याति और कीर्त्ति विशेषतः उनकी गुलिस्ताँ और बोस्ताँ पर निर्भर है। सादी ने सदाचार का उपदेश करने के लिए जन्म लिया था और उनके क़सीदा और ग़ज़लों में भी यही प्रधान गुण है। उन्होंने क़सीदों में भाटपना नहीं किया है, झूठी तारीफ़ों के पुल नहीं बांधे हैं। ग़ज़लों में भी हिज्र और विसाल, ज़ुल्फ़ और कमर, के दुखड़े नहीं रोये हैं। कहीं भी सदाचार को नहीं छोड़ा। तो फिर गुलिस्ताँ और बोस्ताँ का कहना ही क्या? इनकी तो रचना ही उपदेश के निमित्त हुई थी। इन दोनों ग्रन्थों को फ़ारसी साहित्य का सूर्य्य और चन्द्र कहे तो अत्युक्ति न होगी। उपदेश का विषय बहुत शुष्क समझा जाता है, और उपदेशक तो सदैव से अपनी कड़वी, और नीरस बातों के लिए बदनाम रहते हैं। नसीहत किसी को अच्छी नहीं लगती। इसीलिए विद्वानों ने इस कड़ुवी औषधि को भांति भांति के मीठे शर्बतों के साथ पिलाने की चेष्टा की है। कोई चील-कौवे की कहानियां गढ़ता है, कोई कल्पित कथायें नमक मिर्च लगाकर बखान करता है। लेकिन सादी ने इस दुस्तरकार्य को इतनी विलक्षण कुशलता और बुद्धिमत्ता से पूरा किया है कि उनका उपदेश काव्य से भी अधिक सरस और सुबोध हो गया है। ऐसा चतुर उपदेशक कदाचित् ही किसी दूसरे देश में उतपन्न हुआ हो।
सादी का सर्वोत्तम गुण वह वाक्यनिपुणता है, जो स्वाभाविक होती है और उद्योग से प्राप्त नहीं हो सकी। वह जिस बात को लेते हैं उसे ऐसे उत्कृष्ट और भावपूर्ण शब्दों में वर्णन करते हैं कि जो अन्य किसी के ध्यान में भी नहीं आ सके। उनमें कटाक्ष करने की शक्ती के साथ साथ ऐसी मार्मिकता होती है कि पढ़नेवाले मुग्ध हो जाते हैं। उदाहरण की भांति इस बात को कि पेट पापी है, इसके कारण मनुष्य को बड़ी कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं, वह इस प्रकार वर्णन करते हैं:—
"अगर जौरे शिकम न बूदे, हेच मुर्ग़ दर दाम न उफ़तादे, बल्कि सैयाद ख़ुद दाम न निहादे।"
भाव—यदि पेट की चिन्ता न होती तो कोई चिड़िया जाल में न फँसती, बल्कि कोई बहेलिया जाल ही न बिछाता।
इसी तरह इस बात को कि न्यायाधीश भी रिश्वत से वश में हो जाते हैं, वह यों बयान करते हैं:—
"हमा कत रा दन्दाँ वतुर्शी कुन्द गरदद,
मगर काज़ियाँ रा वशीरीनी।"
भाव—अन्य मनुष्यों के दाँत खटाई से गुट्ठल हो जाते हैं लेकिन न्यायकारियों के मिठाई से।
उनको यह लिखना था कि भीख माँगना जो एक निन्द्य कर्म है उसका अपराध केवल फ़क़ीरों ही पर नहीं बल्कि अमीरों पर भी है, इसको वह इस तरह लिखते हैं:—
"अगर शुमा रा इन्साफ़ बूदे व मारा क़नाअत,
रस्मे सवाल अज़ जहान बरख़ास्ते।"
भाव—यदि तुम में न्याय होता और हममें सन्तोष, तो संसार में माँगने की प्रथा ही उठजाती।
इन दोनों ग्रन्थों का दूसरा गुण उनकी सरलता है। यद्यपि इन में एक वाक्य भी नीरस नहीं है, किन्तु भाषा ऐसी मधुर और सरल है कि उस पर आशचर्य्य होता है। साधारण लेखक जब सजीली भाषा लिखने की चेष्ठा करता है तो उस में कृत्रिमता आजाती है लेकिन सादी ने सादगी और सजावट का ऐसा मिश्रण कर दिया है कि आज तक किसी अन्य लेखक को उस शैली के अनुकरण करने का साहस न हुआ, और जिन्होंने साहस किया, उन्हें मुँह की खानी पड़ी। जिस समय गुलिस्ताँ की रचना हुई उस समय फ़ारसी भाषा अपनी बाल्यावस्था में थी। पद्य का तो प्रचार हो गया था लेकिन गद्य का प्रचार केवल बात-चीत, हाट-बाज़ार में था। इसलिए सादी को अपना मार्ग आप बनाना था। वह फ़ारसी गद्य के जन्मदाता थे। यह उनकी अद्भुत प्रतिभा है कि आज ६०० वर्ष के उपरान्त भी उनकी भाषा सर्वोत्तम समझी जाती है। उनके पीछे कितनी ही पुस्तकें गद्य में लिखी गईं, लेकिन उनकी भाषा को पुरानी होने का कलंक लग गया। गुलिस्ताँ जिसकी रचना आदि में हुई थी आज भी फ़ारसी भाषा का शृंगार समझी जाती है। उसकी भाषा पर समय का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा।
साहित्य संसार में कविवर्ग में ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि एक ही विषय पर गद्य और पद्य के दो ग्रन्थों में गद्य रचना अधिक श्रेष्ठ हो। किन्तु सादी ने यही कर दिखाया है। गुलिस्ताँ और वोस्ताँ दोनों में नीति का। विषय लिया गया है। लेकिन जो आदर और प्रचार गुलिस्ताँ का है वह बोस्ताँ का नहीं। बोस्ताँ के जोड़ की कई किताबें फ़ारसी भाषा में वर्तमान हैं। [१]*मसनवी [२]†सिकन्दरनामा और [३]‡शाहनामा यह तीनों ग्रन्थ उच्चकोटि के हैं और उनमें यद्यपि शब्दयोजना, काव्यसौन्दर्य्य, अलङ्कार, और वर्णनशक्ति बोस्ताँ से अधिक है तथापि उनकी सरलता, और उसकी गुप्त चुटकियाँ और युक्तियाँ उनमें नहीं हैं। लेकिन गुलिस्ताँ के जोड़ का कोई ग्रन्थ फ़ारसी भाषा में है ही नहीं। उनका विषय नया नहीं है। उसके बाद से नीति पर फ़ारसी में सैकड़ों ही किताबें लिखी जा चुकी हैं। जिसमें जो कुछ चमत्कार है वह सादी की भाषालालित्य और वाक्य चातुरी है। उसमें बहुत सी कथायें और घटनायें स्वयं लेखक ने अनुभव की हैं इसलिए उनमें ऐसी सजीवता और प्रभावोत्पादकता का संचार हो गया है जो केवल अनुभव ही से हो सकता है। सादी पहले एक बहुत साधारण कथा छेड़ते हैं लेकिन अन्त में एक ऐसी चुटीली और मर्मभेदी बात कह देते हैं कि जिससे सारी कथा अलङ्कृत हो जाती है। यूरूप के समालोचकों ने सादी की तुलना [४]*'होरेस' से की है। अंग्रेज़ विद्वानों ने उन्हें एशिया के शेक्सपियर की पदवी दी है। इससे विदित होता है कि यूरूप में भी सादी का कितना आदर है। गुलिस्ताँ का लैटिन, फ़्रेञ्च, जर्मन, डच, अंग्रेज़ी, तुर्की आदि भाषाओं में एक नहीं कई अनुवाद हैं। भारतीय भाषाओं में उर्दू, गुजराती, बँगला में उसका अनुवाद हो चुका है। हिन्दी भाषा में भी महाशय मेहरचन्द दास का किया हुआ गुलिस्ताँ का गद्य-पद्यमय अनुवाद १८८८ में प्रकाशित हो चुका है। संसार में ऐसे थोड़े ही ग्रन्थ हैं जिनका इतना आदर हुआ हो।