मानसरोवर १/लांछन

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मानसरोवर १  (1947) 
द्वारा प्रेमचंद
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लांछन

अगर संसार में ऐसा प्राणी होता, जिसकी भाखें लोगों के हृदयों के भीतर घुसः सकती, तो ऐसे बहुत कम स्त्री या पुरुष होंगे, जो उसके सामने सीधी आँखें करके ताक सकते। महिला-आश्रम की जुगनूगई के विषय में लोगों को धारणा कुछ ऐसी हो हो गई थी। वह बेपढ़ी-लिखी, गरीब, बूढ़ी औरत थी ; देखने में बड़ी सरल, बड़ी हँसमुख , लेकिन जैसे किसी चतुर रीडर की निगाह गलतियों ही पर जा' पड़ती है, उसी तरह उसकी आँखें भी बुराइयों हो पर पहुँच जातो थों। शहर में ऐसी कोई महिना न थी, जिसके विषय में दो-चार लुकी-छिपी बात उसे न मालूम हो। उसका ठिंगना स्थूल शरीर, सिर के खिचड़ी बाल, गोल मुंह, इले-फूले गाल, छोटी-छोटी आँखें उसके स्वभाव को प्रखरता और तेली पर परदा-सा डाले रहती थी। लेकिन जब वह किसी के कुत्सा करने लगती, तो उसकी आकृति कठोर हो जाती, आंखें फैल जाती और कण्ठ-स्वर कर्कश हो जाता। उसको चाल में बिल्लियों का- सा संयम था, दबे पांव धीरे-धीरे चलती; पर शिकार की आहट पाते हो, जस्त मारने को तैयार हो जाती थी। उसका काम था, माहिला-आश्रम में महिलाओं की सेवा-टहल करना ; पर महिलाएं उम्रकी सूरत से कांपती थीं। उसका ऐसा आतंक था, कि ज्योंही वह कमरे में कदम रखतो, ओठों पर खेलती हुई इसी जैसे रो पड़तो थी। चहकनेवाली आवाजें, जैसे बुझ जाती थीं, मानों उनके मुख पर लोगों को अपने पिछले रहस्य अंकित नजर आते हो। पिछले रहस्य ! कौन है, जो अपने अतीत को किसी भयंकर जन्तु के सामने कठघरों में बन्द करके न रखना चाहता हो। धनियों को चोरों के भय से निद्रा नहीं पाती। मानियों को उसी भांति मान की रक्षा करनी पड़ती है। वह अतु, जो पहले कीट के समान अल्पाकार रहा होगा, दिनों के साथ दीर्घ और सबल होता है, यहाँ तक कि हम उसको याद ही से काँप उठते हैं। और अपने ही कारनामों की बात होती, तो अधिकांश देवियाँ जुगनू को दुत्कारती। पर यहाँ तो मैके और ससुराल, नन्हियाल और ददियाल, फुफियाल और मौसिवान, चारों ओर की रक्षा करनी थी भौर जिस किले में इतने द्वार हो, उसकी रक्षा कौम कर
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सकता है। वहाँ तो हमला करनेवाले के सामने मस्तक झुकाने में ही कुशल है। जुगनू के दिल में हजारों मुर्दे गड़े पड़े थे और वह जरूरत पड़ने पर उन्हें उखाड़ दिया करती थी। जहाँ किसी महिला ने दून को लो, या शान दिखाई, वहाँ जुगनू को त्योरियां बदलों । उसको एक बड़ो निगाह अच्छे-अच्छे को दहला देतो थी मगर यह बात न थी कि स्त्रियाँ उस घृणा करती हों। नहीं, सभी बड़े चाव से उससे मिलती और उसका आदर-सरकार करतों। अपने पड़ोसियों को निन्दा सनातन से मनुष्य के लिए मनोरजन का विषय रही है और जुगनू के पास इसका काफ़ी सामान था।

( २ )

नगर में इन्दुमती महिला-पाठशाला नाम का एक लड़कियों का हाई स्कूल था। हाल में मिस खुरशेद उसकी हेड मिस्ट्रेस होकर भाई थीं। शहर में महिलाओं का दूसरा क्लब न था। मिस खुरशेद एक दिन आश्रम में आई । ऐसी ऊँचे दर्जे को शिक्षा पाई हुई आश्रम में कोई देवो न थी । उनको उहो आव-मगत हुई। पहले ही दिन मालूम हो गया, मिस खुरशेद के आने से आश्रम में एक नये जोवन का संचार होगा। कुछ इस तरह दिल खोलकर हरेक से मिलों, कुछ ऐसा दिलवस्थ वाते की कि सभी देवियां मुग्ध हो गई। गाने मे भी चतुर थी । व्याख्यान भी खून देती थीं और अभिनय-कला में तो उन्होंने लन्दन में नाम कमा लिया था । एसी सर्वगुण सम्पन्न देवी का आना आश्रम का सौभाग्य था। गुलाको गोश रग, कोमल गाल, मदभरी आँखें, नये फैशन के कटे हुए केश, एक-एक अम सांचे में ढका हुआ, मादकता को इससे अच्छी प्रतिमा न बन सकती थी।

चलते समय मिस खुरशेद ने मिसेज टडन को, जो आश्रम की प्रधान थी, एकान्त में बुलाकर पूछा --- वह बुढ़िया कौन है ?

जुगनू कई बार कमरे में आकर मिस खुरशेद को अन्वेषण की मांखों से देख चुकी थी, मानों कोई शह सवार किलो नई घोड़ो को देख रहा हो।

मिसेज़ टडन ने मुमकिराकर कहा --- यहां ऊपर का काम करने के लिए नौकर है। कोई काम हो, तो धुलाऊँ ? मिस खुरशेद ने धन्यवाद देकर कहा-जी नहीं, कोई विशेष काम नहीं है। मुझे चालबाज मालूम होती है। यह भी देख रही हूँ कि यहाँ को वह सेविका नहीं, स्वामिनी है। मिसेज रहन तो जान से अलो बैठो
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साहब क्या करते हैं। जब मैंने बता दिया, तो इसे बढ़ा ताज्जुब हुआ; और हुआ ही चाहे । हिन्दुओं में तो दुधमुंहे बालकों तक का ब्याह हो जाता है। खुरशेद ने जांच की और क्या कहती थी।

'और तो कोई बात नहीं हुजूर !'

'अच्छा, उसे मेरे पास भेज दो।'

( ४ )

जुगनू ने ज्योंहो कमरे में कदम रखा, मिस खुरशेद ने कुरसी से उठकर स्वागत किया --- आइए माँजी ! मैं जरा सैर करने चली गई थी! आपके आश्रम में तो सब कुशल है ?

जुगनू एक कुर्सी का तकिया पकड़कर खड़ी-खड़ी बोलो --- कुशल है मिस साहन। मैंने कहा, आपको आसिरवाद दे आऊं। मैं आपकी चेरी हूँ । जब कोई काम पड़े, मुखे बाद कीजिएगा । यहाँ अकेले तो हजूर को अच्छा न लगता होगा ?

मिस० --- मुझे अपने स्कूल की लड़कियों के साथ बड़ा आनन्द मिलता है, वह सब मेरी हो लड़कियां हैं।

जुगनू ने मातृ-भाव से सिर हिलाकर कहा-यह ठीक है मिस साहब ; पर अपना अपना हो है। दूसरा ना हो जाय, तो अरनों के लिए कोई क्यों रोये ?

सहसा एक सुन्दर सजीला युवक रेशमी सूट धारण किये, जूते चामर करता हुआ अन्दर माय। मिस खुरशेद ने इस तरह दौसका प्रेम से उसका अभिवादन किया, मानों जामे में फूलो न समाती हो। जुगनू उसे देखकर कोने में दबक गई।

खुरशेद ने युवक से गले मिलकर कहा --- प्यारे ! मैं कब से तुम्हारी राह देख रही हूँ। (जुगनू से ) मांजो, आप जायें, फिर कभी आना। यह हमारे परम मित्र विलियम किंग हैं। हम और यह बहुत दिनों तक साथ-साथ पढे हैं।

जुगनू चुपके से निकलकर बाहर आई । खानसामा खड़ा था। पूछा-यह लौंडा

खानसामा ने सिर हिलाया-मैंने इसे आज ही देखा है। शायद अब कोरपन से जी ऊमा ! अच्छा तरहदार जवान है।

जुगनू-दोनों इस तरह हटकर गले मिले हैं कि मैं तो लाज के मारे गढ़ गई। ऐसो चूमा चाटी तो जोरू-कसम में नहीं होती। दोनों लिपट गये। लौटा तो मुझे [ २५९ ]
देखकर कुछ मिसकता था; पर तुम्हारी मिस साहब तो जैसे मतवाली हो गई थी।

खानसामा ने मानों अमगल के आभास से कहा --- मुझे तो कुछ बेढब मुआमला नजर आता है।

जुगनू तो यहां से सीधे मिसेज टंडन के घर पहुंची। इधर मिस खुरशेद और युवक में बातें होने लगी।

मिस खुरशेद ने कहकहा मारकर कहा --- तुमने अपना पार्ट खूब खेला लोळा, बुढ़िया सचमुच चौंधिया गई।

लोला --- मैं तो कर रही थी कि कहीं बुढ़िया माप न जाय।

मि० खुरशेद --- मुझे विश्वास था, वह आज हर भायेगी। मैंने दर हो से उसे बरामदे में देखा और तुम्हें सूचना दी। आज आश्रम में बड़े मन्ने रहेंगे। जो चाहता है, महिलाओं की कनफुसकियां सुनती। देख लेना, सभी उसकी बातों पर विश्वास करेंगे।

लीला --- तुम भो तो जान बूझकर दलदल में पाँव रख रही हो।

मिस खुरशेद --- मुझे अभिनय में मजा आता है बहन ! दिलगो रहेगी। बुढ़िया ने बड़ा जुल्म कर रखा है। जरा उसे सबक देना चाहती हूँ। कल तुम इसो वक इसी ठाट से फिर आ जान। बुढ़िया कल फिर आयेगी। उसके पेट में पानी न हजम होगा। नहीं, ऐसा क्यों। जिस वक्त वह आयेगी, मैं तुम्हें खार दूंगी। बस, 'तुम छैला बनी हुई पहुँच जाना।

( ५ )

आश्रम में उस दिन जुगनू को दम मारने की फुर्सत न मिली। उसने सारा वृत्तान्त मिसेज टंडन से कहा । मिसेज टंडन दौड़ी हुई आश्रम में पहुँची और अन्य महिलाओं को खबर सुनाई। जुगनू उसकी तस्दीक करने के लिए बुलाई गई । नो महिला माती, वह जुगनू के मुँह से यह कथा सुनती। हर एक रिहर्सल में कुछ-कुछ रंग भौर चढ़ जाता। यहाँ तक कि दोपहर होते-होते सारे शहर के सभ्य-समाज में यह खबर गूंज उठी।

एक देवी ने पूछा -- युवक है कौन ?

मि० टंडन --- सुना तो, उनके साथ का पढ़ा हुआ है। दोनों में पहले से कुछ बातचीत रही होगी। वही तो मैं कहती थी कि इतनी उम्र हो गई, यह क्वारी कैसे बैठी हैं? अब कलई खुली। [ २६० ]जुगनू --- और कुछ हो या न हो, जवान तो बांका है।

टंडन --- यह हमारी विद्वान् बहनों का हाल है।

जुगनू --- मैं तो उसकी सूरत देखते ही ताड़ गई थी। धूप में बाल नहीं सुफेद किये हैं।

टंडन --- कल फिर जाना ।

जुगनू --- कल नहीं, मैं आज रात हो को जाऊँगी । लेकिन रात को जाने के लिए कोई बहाना जरूरी था। मिसेज़ टडन ने आश्रम के लिए एक किताब मैंगवा मेली। रात को नौ बजे जुगनू मि० खुरशेद के बंगले पर जा पहुँची। सयोग से लोलावती उस वक्त मौजूद थी। बोली --- तो चेतरह पीछे पड़ गई।

मि० खुरशेद --- मैंने तो तुमसे कहा था, उसके पेट में पानी न पचेगा। तुम आकर रूप भर आओ। तब तक इसे मैं बातों में लगातो हूँ। शराबियों की तरह अट-सट बकना शुरू करना। मुझे भगा ले जाने का प्रस्ताव भी करना । बस यो बन माना, जैसे अपने होश में नहीं हो।

लीला मिशन में डाक्टर थी। उसका बंगला भी पस हो था। वह चली गई तो मि. खुएशेद ने जुगनू को बुलाया।

जुगनू ने एक पुरजा उनको देकर कहा ---;मिसेज टंडन ने यह किताब मांगी है। मुझे आने में देर हो गई। मैं इस वक्त आपको कर न देतो; पर सबेरे हो वह मुझसे मांगेंगी। हजारों रुपये महीने की आमदनी है मिस साहक मगर एक एक कौड़ी दाँत से पकड़ती है। इनके द्वार पर भिखारी को भाख तक नहीं मिलती।

मि० खुरशेद ने पुरजा देखकर कहा-इस बक तो यह किताब नहीं मिल सकती, सुबह ले जाना । तुमसे कुछ बातें करनी हैं। बैठो, मैं अभी आती हूँ।

वह परदा उठाकर पीछे के कमरे में चली गई और वहां से कोई पन्द्रह मिनट में- एक सुन्दर रेशमी साड़ी पहने, स्त्र में पसी हुई, मुँह पर पाउडर लाये निकली। जुगन ने उन्हें आँखें फाड़कर देखा । ओ हो! यह शृङ्गार! शायद इस समय वह लौंडा आनेवाला होगा। तभी यह तैयारियां हैं। नहीं, सोने के समय क्वारियों के बनाव-संवार की क्या जरूरत ? जुगनू की नोति में त्रियों के शृङ्गार का केवल एक उद्देश्य था, पति को लुभाना। इसलिए सोहागिनों के सिवा हार और सभी के लिए वजित था। भभी खुरशेद कुरसी पर बैठने भो न पाई थी कि जूतों का चामर सुनाई
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दिया भौर एक क्षण में विलियम किंग ने कमरे में कदम रखा। उसकी आँखें चड़ी हुई मालूम होती थी और कपड़ों से शराब की गन्ध आ रही थी। उसने बेधड़क मिस खुरशेद को छाती से लगा लिया और बार-बार उनके कपोलों के चुम्बन लेने लगा।

मिस खुरशेद ने अपने को उसके कर-पाश से छुड़ाने को चेष्ठा करके कहा --- चलो हटो, शराब पीकर आये हो।

किंग ने उन्हें और चिमटाकर कहा-आज तुम्हें भी पिलाऊँगा प्रिये ! तुमको पीना होगा। फिर हम दोनों लिपटकर सोयेंगे। नशे में प्रेम कितना सजीव हो जाता है, इसकी परीक्षा कर लो।

मिस खुरशेद ने इस तरह जुगनू की उपस्थिति का उसे सकेत किया कि जुगनू की नज़र पड़ जाय ; पर किंग नशे में मस्त था। जुगनू की तरफ देखा ही नहीं।

मिस खुरशेद ने रोष के साथ अपने को अलग करके कहा-तुम इस बक आपे मे नहीं हो। इतने उतावळे क्यों हुए जाते हो ? क्या मैं कहीं भागी जा रही हूँ?

किंग --- इतने दिनों से चोरों की तरह आया हूँ, आज से मैं खुले-खज़ाने आऊँगा।

खुरशेद --- तुम तो पागल हो रहे हो। देखते नहीं हो, कमरे में कौन बैठा हुआ है।

किग ने हकबकाकर जुगनू की तरफ देखा और झिझकर बोला- यह बुढ़िया न्यहाँ का आहे ? तुम यहाँ क्यों आई बुड्ढों ! शैतान की बच्ची ! यहाँ भेद लेने आतो है ? हमको बदनाम करना चाहती है ? मैं तेरा गला घोट दंगा, ठहर, भागती कहाँ है, ठहर, भागती कहाँ है ? मैं तुझे जिन्दा न छोहूँगा।

जुगनू बिल्ली की तरह कमरे से निकली और सिर पर पांव रखकर भागी। उधर कमरे से कहकहे उठ-उठकर छत को हिलाने लगे।

जुगनु उसी वक्त मिसेज़ टंडन के घर पहुँची। उसके पेट में धुलबुले उठ रहे थे ; पर मिसेज टंडन सो गई थीं। वहाँ से निराश होकर उसने कई दूसरे घरों को कुण्डी खटखटाई ; पर कोई द्वार न खुळा और दुखिया को सारी रात इस तरह काटनी पड़ी, मानों कोई रोता हुआ बच्चा गोद में हो। प्रातःकाल वह आश्रम में जा कूदी।

कोई आध घण्टे में मिसेज टंडन भी आई। उन्हें देखकर उसने मुँह फेर लिया।

मि० टडन ने पूछा --- रात क्या तुम मेरे घर गई थीं? इस वक्त मुझसे महाराज कहा। [ २६२ ]जुगनू ने विरक्त भाव से कहा-प्यासा हो तो कुएँ के पास जाता है। कुआँ थोड़े ही प्यासे के पास आता है। मुझे आग में झोंककर माप दर हट गई। भगवान् ने मेरो रक्षा की, नहीं कल जान ही गई थी।

मि. टंडन ने उत्सुकता से कहा --- क्या हुभा क्या, कुछ कहो तो? मुझे तुमने सा क्यों न लिया ? तुम तो जानतो हो, मेरो आदत सबेरे सो जाने की है।

'महाराज ने घर में घुसने ही न दिया। जगा कैसे लेती। आपको इतना तो सोचना चाहिए था कि वह वहाँ गई है, तो आतो होगी ? घड़ी-भर बाद ही सोती: तो क्या बिगड़ जाता, पर आपको किसी को क्या परवाह।

'तो क्या हुआ, मिस खुरशेद मारने दौड़ी ?'

'वह नहीं मारने दौड़ों, उनका वह खसम है, वह मारने दौड़ा। बाल भाखें निकाले आया और मुझसे कहा --- निकल ना । जब तक मैं निकल-निकल, तब तक इंटर खीचकर दौड़ ही तो पड़ा। मैं सिर पर पांव रखकर न भागती, तो चमड़ी उधेड़ डालता। और वह राह घेठी तमाशा देखती रहो। दोनों में पहले से सधी-सधी थी। ऐसी फुलटाओं का मुंह देखना पाप है। सवा भी इतनी निर्लजम न होगी।

ज़रा देर में और देवियां आ पहुंची। यह वृत्तान्न सुनने के लिए सभी उत्सुक हो रही थी। जुगनू की कैंची अविश्रान्त रूप से चलती रही। महिलाओं को इस वृत्तान्त में इतना आनन्द पा रहा था कि दुछ न पूछो। एक-एक बात को खोद-खोदकर पूछती थी। घर के काम-धन्धे भूल गये, खाने-पीने की सुधि भी न रहो। और एक बार ' सुनकर उनको तृप्ति न होती थी, बार-बार वही कथा नये आनन्द से सुनती थी।

मिसेज़ टंडन ने अन्त में कहा --- हमें आश्रम में ऐसी महिलाओं को लाना अनु- चित है। आप लोग इस प्रश्न पर विचार करें।

मिसेज़ पण्ड्या ने समर्थन किया --- हम आश्रय को आदर्श से गिराना नहीं चाहते। मैं तो कहती हूँ, ऐमी औरत किसी संस्था की प्रिंसिपल बनने के योग्य नहीं।

मिसेज़ बांगड़ा ने फरमाया --- जुगनूबाई ने ठीक कहा था, ऐसी औरत का मुंह देखना भी पाप है। उनसे साफ कह देना चाहिए, आप यहाँ तशरीफ़ न लायें।

अभी यही खिचड़ी एक रही थी कि आश्रम के सामने एक मोटर भाकर को। महिलाओं ने लिए उठा-उठाकर देखा, गाड़ी में मिस खुरशेद और विलियम कि [ २६३ ]जुगनू ने हुँह फैलाकर हाथ से इशारा किया, वही लौंडा है। महिलाओं का सम्पूर्ण समूह विक के सामने आने के लिए विकल हो गया।

मिस खुरशेद ने मोटर से उतरकर हुड बन्द कर दिया और आश्रम के द्वार की भोर चली । महिलाएं भाग-भागकर अपनी-अपनी जगह आ बैठो।

मिस खुरशेद ने कमरे में कदम रखा । किसी ने स्वागत न किया। मिस खुरशेद जुगनू की ओर निस्संकोच आँखों से देखकर मुसकिराते हुए कहा-कहिए बाईजी, रात आपको चोट तो नहीं आई?

जुगनू ने बहुतेरी दीदा-दिलेर स्त्रियाँ देखी थों; पर इस ढिठाई ने उसे चकित कर दिया। चोर हाथ में चोरी का माल लिये, साह को ललकार रहा था।

जुगनू ने ऐंठकर कहा --- जी न भरा हो, तो अब पिटवा दो। सामने ही तो है।

खुरशेद-वह इस वक तुमसे अपना अपराध क्षमा कराने आये हैं। रात वह नशे में थे।

जुगनू ने मिसेज टंडन की ओर देखकर कहा --- और, आप भी तो कुछ कम नशे में नहीं थी।

खुरशेद ने व्यंग्य समझकर कहा --- मैंने आज तक कभी नहीं पी, मुझ पर झूठा इलज़ाम मत लगाओ।

जुगनू ने लाठी मारी-शराब से भी बड़ी नशे की चोज है कोई, वह उसी का नशा होगा। उन महाशय को परदे में क्यों ढंक दिया ? देवियों भी तो उनकी सूरत देखतीं।

मिस खुदशेद ने शरारत को-सूरत तो उनको काख-दो लाख में एक है।

मिसेज टंडन ने आशकित होकर कहा --- नहीं, उन्हें यहाँ लाने की जरूरत नहीं। आश्रम को हम बदनाम नहीं करना चाहते।

मिस. खुरशेद ने आग्रह किया-मुआमले को साफ़ करने के लिए उनका आप लोगों के सामने आना जरूरी है। एकतरफा फैसला आप क्यों करती हैं ?

मिसेज़ टंडन ने टालने के लिए कहा --- यहाँ कोई मुकदमा-थोड़े ही पेश है।

मिस खुरशेद --- बाह ! मेरी इज्जत में बट्टा लगा पा रहा है, और आप कहतो है, कोई मुकदमा नहीं है। मिस्टर किंग आयेंगे और आपको उनका बयान सुनना होगा। [ २६४ ]मिसेज टंडन को छोड़कर और सभी महिलाएं किंग को देखने के लिए उत्सुक यो। किसी ने विरोध किया।

खुरशेद ने द्वार पर साकर ऊँची आवाज से कहा --- तुम जरा यहाँ चले आओ।

हुइ खुला और मिस लीलावती रेशमी साड़ी पहने मुसकिराती हुई निकल आई।

आश्रम में सभाटा छा गया। देवियाँ विस्मित आँखों से लीलावती को देखने लगी।

जुगनू ने माखें चमकाकर कहा --- उन्हें कहाँ छिपा दिया आपने ?

खुरशेद --- छु मन्तर से उड़ गये । आकर गाड़ी देख लो।

जुगनू लपककर गाड़ी के पास गई और खूब देख-भालकर मुंह लटकाये हुए लौटी।

मिस खुरशेद ने पूछा --- क्या हुआ, मिला कोई ?

जुगनू --- मैं यह तिरिया-चरित्र क्या जानें । ( लीलावती को गौर से देखकर ) और मरदों को साड़ी पहनाकर माखों में धूल झोक रही हो ! यही तो है, वह शतवाले साहब!

खुरशेद --- खूब पहचानती हो ?

जुगनू --- हां-हाँ, क्या अन्धी हूँ ?

मिसेज टडन --- क्या पागलौ सी बातें करती हो जुगनू, यह तो डाक्टर लीलावती है।

जुगनू-( उँगली चमकाकर ) चलिए-चलिए, लीलावती हैं ! साड़ी पहनकर औरत बनते लाज भी नहीं आती ! तुम रात को नहीं इनके घर थे ?

लीलावती ने विनोद-भाव से कहा --- मैं कन इनकार कर रही हूँ। इस वक्त लीलावती हूँ ! रात को विलियम किंग बन जाती हूँ। इसमें बात ही क्या है।

देवियों को अब यथार्थ की लालिमा दिखाई दी। चारों तरफ क्रककहे पड़ने लगे। कोई तालियां बजाती थीं, कोई डाक्टर लीलावती की गरदन से लिपटो जाती थी, कोई मिस खुरशेद की पीठ पर थपकियाँ देती थी। कई मिनट तक इ-इक मचता रहा। जुगनू का मुंह उस लालिमा में बिलकुल परा-सा निकल आया । समान बदाहो गई। ऐसा चरका उसने कभी न खाया था । इतनी जलील कभी न हुई थी।

मिसेज मेहरा ने डोट बताई --- अब बोलो दाई, लगी मुँह में कालिख कि नहीं [ २६५ ]मिसेज बांगड़ा --- इसी तरह यह सबको बदनाम करती है।

लीलावती --- आप लोग भी तो जो वह कहती है, उस पर विश्वास कर लेती हैं। इस हरयोग में जुगनू को किसी ने जाते न देखा। अपने सिर पर यह तूफान उठते देखकर उसे चुपके से सरक जाने ही में अपनी कुशल मालूम हुई। पीछे के द्वार से निकली और गलियों-गलियों भागी।

मिस खुरशेद ने कहा --- ज़रा उससे पूछो, मेरे पीछे क्यों पड़ गई थी।

मिसेज़ टंडन ने पर जुगनू कहाँ। तलाश होने लगी। जुगनू गायब !

उस दिन से शहर में फिर किसी ने जुगनू की सूरत नहीं देखी। आश्रम के इतिहास में यह मुआमला आज भी उल्लेख और मनोरजन का विषय बना हुआ है।