यह गली बिकाऊ नहीं/15

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पन्द्रह
 

तीन, दो और एक गिन-गिनकर आखिर वह दिन भी आ ही गया। दोपहर को एक बजे उड़ान थी। सिंगापुर जाने वाले एयर इण्डिया के बोइंग विमान में यात्रा का प्रबंध हुआ था। अब्दुल्ला ने आग्रह किया था कि पहले पिनांग में ही नाटक प्रदर्शन होना चाहिए। इसलिए सिंगापुर में उतरने के बाद, उन तीनों को हवाई जहाज बदलकर पिनांग जाना था। उन्हें लिवा ले जाने के लिए स्वयं अब्दुल्ला 'सिंगापुर हवाई अड्डे पर उपस्थित होनेवाले थे ।

यात्रा के दिन गोपाल बहुत-बहुत खुश था। माधवी. और मुत्तुकुमरन् से किसी प्रकार की तकरार या तनाव न बढ़ाकर सलीके से पेश आ रहा था। [ १०३ ]
बँगले' में आने-जानेवालों का तांता लगा हुआ था। पोर्टिको और बगीचे में जगह न होने से अनेक छोटी-बड़ी कारें बोग रोड में ही खड़ी की गयी थीं।

'जिल जिल' और दूसरे पत्रकार फोटो खींचते अधा नहीं रहे थे। आने-जानेवालों में से किसी को भी गोपाल ने अपनी आँखों से बचने नहीं दिया और हाध मिलाकर विदा ली ! सिने-निर्माता, सह-कलाकार और मित्र-वृन्द बड़ी-बड़ी मालाएँ पहनाकर गोपाल को विदा कर रहे थे और फिर वापस जा रहे थे। पूरे हाल में फर्श पर गुलाब की पंखुरियाँ ऐसी बिखरी थीं, भानो खलिहान में धान की मणियाँ सुखायी गयी हों। एक कोने में गुलदस्तों का अंबार-सा लगा था।

पौने बारह बजे हवाई अड्डे के लिए वहाँ से रवाना हुए तो गोपाल की कार में कुछ फ़िल्म-निर्माता और सहयोगी कलाकार भी चढ़ गये थे। इसलिए मुत्तुकुमरन् और माधवी को एक अलग कार में अकेले चलता पड़ा।

मीनम्बाक्कम में भी कई लोग माला पहनाने आये थे। दर्शकों की अपार भीड़ थी। मुचकुमरन के लिए यह पहला हवाई सफर था। अतः हर बात में उसकी जिज्ञासा बढ़ रही थी।

बिदा देनेवालों की भीड़ गोपाल पर जैसे छायी हुई थी। उनमें से बहुतों को माधवी भी जानती थी! उनसे बात करने और विदा होने के लिए वह गोपाल के पास चली जाती तो वहाँ मुत्तुकुमरन् अकेला रह जाता । इसलिए वह मुत्तुकुमरन् के पास ही खड़ी रही। बीच-बीच में गोपाल उसका नाम लेकर पुकारता और कुछ कहता तो वह जाकर उत्तर देती और वापस आकर मुत्तुकुमरन के पास खड़ी हो जाती।

माधवी को यह अपना कर्तव्य-सा लगा कि वह इस तड़क-भड़क और चहल- पहल बाले माहौल में मुत्तुकुमरन् को अकेला और अनजाना-सा महसूस नहीं होने दे। क्योंकि वह उसकी मानसिकसा से परिचित थी। साथ ही, उसे इस बात की भी आशंका थी कि उसे हमेशा मुत्तुकुमरन के पास देखकर कहीं गोपाल बुरा न मान “जाये। पर उसने उसकी कोई परवाह नहीं की।

'कस्टम्स' की औपचारिकता पूरी करके जब वे विदेश जानेवाले यात्रियों की "लाउंज' में पहुँचे तो मुत्तुकुमरन ने माधवी को छेड़ा, "तुम तो नाटक की नायिका हो और गोपाल नायक । तुम दोनों का जाना जरूरी है। मेरी समझ में नहीं आता कि तुम दोनों के बीच तीसरे व्यक्ति की हैसियत से किस खुशी में सिंगापुर आ रहा हूँ ?"

माधवी ने एक-दो क्षण इसका कोई उत्तर नहीं दिया। हँसकर टाल गयी। कुछ क्षणों के बाद उसके कानों में मुंह ले जाकर बोली, “गोपाल नाटक के कथा- नायक हैं। पर कथानायिका के असली कथानायक तो आप ही हैं !"

यह सुनकर मुत्तुकुमरन के होंठ खिल उठे। उसी समय गोपाल उनके पास [ १०४ ]
आया और पूछा, "उस्ताद के कानों में कौन-सा लतीफ़ा डाल रही हो?"

"कुछ नहीं ! इनकी यह पहली हवाई यात्रा है !"

"हाँ-हाँ ! यह 'माइडेन फ़लाइट'-पहली उड़ान है ! पर लगाकर उड़ेंगे !"

गोपाल आज बेहद खुश था। बोला, "हमें अपनी धाक का ऐसा डंका पिटवाना चाहिए कि मलेशिया भर में इसी बात की चर्चा होती रहे कि वहाँ के लोगों ने ऐसा बढ़िया नाटक आज तक नहीं देखा!"

सिंगापुर जानेवाला एयर-इण्डिया 'बोइंग' विमान बंबई से उड़ता हुआ बड़ी भव्यता के साथ उतरा। ऊँची आवाज भरते हुए उस विमान के उतरने का दृश्य मुत्तुकुमरन् बड़े उत्साह और विस्मय से देख रहा था। उस-जैसे देहाती कवि के लिए ये सब बिल्कुल नये अनुभव' थे । इनसे उसे गर्व अनुभव हो रहा था ।

माधवी भी उस दिन खूब सज-धजकर आयी थी। मुत्तुकुमरन्। को बार-बार यह भ्रम होने लगा कि वह किसी अपरिचित लड़की को देख रहा है । अपना भ्रम दूर करने के बहाने बार-बार उसे देखकर वह पुलकित हो रहा था। थोड़ी देर में इस हवाई जहाज़ के यात्री अन्दर आकर बैठने के लिए बुलाये गये।

माधवी, मुत्तुकुमरन और गोपाल हवाई जहाज की ओर बड़े । हवाई जहाज के अन्दर घुसते ही भीनी-भीनी खुशबू हवा में और मीठी-मीठी स्वर-लहरी कानों में तैरने लगी। मुत्तुकुमरन्, माधवी और गोपाल की सीटें एक ही कतार में एक-के- बाद एक थीं। माधवी बीच में बैठी । मुत्तुकृमरन् इस ओर बैठा और गोपाल उसः ओर।

जब जहाज गंभीर ध्वनि के साथ उड़ने लगा तो जमीन से ऊपर उड़ने का उत्साह तीनों के मन में भर उठा। 'आ हा ! ज़मीन से ऊपर उड़ने में कितना. आनन्द है!'

हवाई जहाज़ के ऊपर और ऊपर उड़ने पर गोपाल ने 'ह्विस्की मँगाकर पी। मुत्तुकुमरन और माधवी ने 'आरेंज जूस'। तीनों ‘एकॉनमी क्लास के थानी थे। अतः गोपाल ने 'ह्विस्की के लिए पैसा भी दिया।

मुत्तुकुमरन् को लगा कि हवाई जहाज के अन्दर एक छोटी-सी दुनिया ही चल रही हैं । गौर से न देखने पर लगा कि इतनी तीनमति से चलनेवाला जहाज भीतर जैसा का तैसा खड़ा है। इस नये अनुभव के सुख में बहते हुए मुत्तुकुमरन् को.माधवी या गोपाल से बातें करने का ख्याल ही नहीं आया ।

हवाई जहाज के अन्दरवाले 'माइक ने प्रसारित किया कि अब हम निकोवार द्वीपों के ऊपर से उड़ रहे हैं। नीचे नारियल के पेड़ और खपरैल घर वाले छोटे- छोटे बिदुओं के रूप में-धुंधली-सी जमीन पर पड़े दिखायी पड़ी।

जिस एम्बार्केशन कार्ड के बँटने पर माधवी ने उनपर हस्ताक्षर करके 'होस्टेस' [ १०५ ]को वापस सौंप दिया। दोपहर का भोजन हवाई जहाज पर ही बाँटा गया।

गोपाल ने खाने के बाद फिर 'ह्विस्की' मँगाकर पी ।

हवाई जहाज़ के नब्बे से अधिक यात्रियों को-परिचारिकाओं ने कितनी फुर्ती से खाना परोसा? किलती मीठी आवाज में यात्रियों के कानों के पास अपने होंठों को ले जाकर उनकी फरमाइशों के बारे में पूछताछ की? मुत्तुकुमरन् यह तमाशा देखकर विस्मय में पड़ गया !

हवाई जहाज में हल्की ठंडक और 'यू-डी-कोलोन' की खुशबू तिर रही थी। मुत्तुकमर ने इस बारे में पूछा तो गोपाल ने कहा कि हर 'उड़ान' के पहले 'एयर क्राफ्ट' के अन्दर खुशबू 'स्प्रे की जाती है ।

नीचे बहुमंजिली इमारतें, समुद्र पर तैरनेवाले जहाज़ आदि दीख पड़े। सिंगापुर का स्थानीय समय सूचित किया गया--भारत और सिंगापुर के समय में लगभग दो घंटे से अधिक का फ़र्क था। यात्रियों ने तुरन्त अपनी-अपनी घड़ियाँ मिला लीं।

हवाई जहाज़ सिंगापुर के हवाई अड्डे पर उतरा। भीनम्बाक्कम से चलते हुए माधवी ने मुत्तुकुमरन् की जिस तरह से बाँधने में मदद की थी, वैसी ही मदद जहाज़ से उतरते वक्त भी 'सीट बेल्ट' खोलने में की।

हवाई अड्डे के "रन-वे' में छोटे-बड़े कई हवाई जहाजों को खड़े पाकर मुत्तुकुमरन् एकदम विस्मय में पड़ गया। अपने प्रिय कलाकारों को देखने के लिए हवाई अड्डे के बाहर-भीतर और बालकनियों में खचाखच भीड़ भरी थी। . अब्दुल्ला ने आगे बढ़कर सबका स्वागत किया। मालाओं के पहाड़ ही लग गये। हवाई अड्डे के 'लाउंज में ही माधवी और गोपाल ने टेलिविजन के लिए “इन्टरव्यू' दिया । उत्सुक भीड़ 'ऑटोग्राफ' के लिए जैसे उमड़ पड़ी।

मुत्तुकुमरन् के नाम-यश या आगमन का अधिक विज्ञापन नहीं किया गया था। अत: माधवी और गोपाल के इर्द-गिर्द ही स्वागत की रौनक थी; मालाओं का 'अंबार लगा था।

मुत्कुमरन ने इसका बुरा नहीं माना। उसने दुनिया के सामने अपना ढिंढोरा ही कहाँ पीटा था कि उसका भी ठाठ-बाट से स्वागत हो ! सिने-सितारों की हैसियत पर पहुँचनेवालों का जो 'ग्लैमर होता है, वह मुत्तुकुमरन जैसे कलाकारों को आसानी से कहाँ से मिलेगा? अभी-अभी तो वह मद्रास आया है और गोपाल की मेहरबानी से एक नाटककार बनने का उपक्रम कर रहा है। जो अपने देश में ही नसीब नहीं, वह सम्मान दूसरे देशों में क्यों कर मिलेगा? मुत्तुकुमरन् को अपनी . इस हैसियत का खूब पता था। फिर भी, लोगों ने उसके सुदर्शन व्यक्तित्व को यों देखा, मानो किसी कलाकार को देख रहे हों। इसपर वह दिल-हो-दिल में खुश हो रहा था। [ १०६ ]अब्दुल्ला जिस तरह माधवी और गोपाल से पेश आये, वैसे मुत्तुकुमरन के साथ पेश नहीं आये। हो सकता है , इसके मूल में मद्रास में उनके साथ हुई घटनाएँ हों। माधवी से भुत्तुकुमरन् ने कहा, “मुझे डर लग रहा है कि भीड़ में मैं कहीं खो न जाऊँ और तुम लोग भी इस चहल-पहल में मुझे भूल न जाओ। फिर मैं इस नये देश में क्या कर पाऊँगा?"

"वैसा कुछ नहीं होगा। मेरी आँखें चोरी-छिपे लेकिन हमेशा आपकी निगरानी कर रही हैं !"

"जब सबकी आँखें तुम्हारी ओर लगी हैं, तब तुम मुझे कहाँ से देख पाओगी?"

"मैं तो देख पा रही हूँ। पाओगी का सवाल ही नहीं उठता। न जाने आपने मुझपर कौन-सा टोना-टोटका कर दिया कि मैं आपके सिवा और किसी को देख ही नहीं पा रही !"

माधवी की बात सुनकर वह फूला न समाया।

सिंगापुर के हवाई अड्डे के 'लाउंज' में पौन घंटा बिताने के बाद, वे एक-दूसरे ह्वाई जहाज पर पिनांग के लिए रवाना हुए। पिनांग जानेवाले 'मलेशियन एयरवेज़' के हवाई जहाज पर अब्दुल्ला और गोपाल केबिन के पासवाली अगली सीट पर अकेले बैठकर बातें करने लग गये। उनके चार सीट पीछे मुत्तुकुमरन् और माधवी भी साथ बैठकर बातें करने लगे । जहाज पर कोई विशेष भीड़ नहीं थी।

माधवी बड़े प्यार से बोली, "जहाँ देखो, इस देश में, हरियाली-ही-हरियाली नज़र आती है ! यह जगह सचमुच बहुत अच्छी है !"

"हाँ, यह देश ही क्यों ? इस देश में तुम भी इतनी प्यारी लग रही हो कि बिलकुल परी-सी लगती हो !

"आम तो खुशामद कर रहे हैं।"

"तभी तो कुछ मिलेगा?"

सचमुच, माधवी का दाहिना हाथ उसकी पीठ के पीछे से माला की तरह बढ़ा और उसका दाहिना कंधा सहलाने लगा। "बड़ा सुख मिल रहा है !"

"यह हवाई जहाज़ है। आपका 'आउट हाउस' नहीं। अपनी मर्जी यहाँ नहीं चल सकती "तुम्हारी बातों से तो ऐसा लगता है कि जब कभी तुम 'आउट हाउस में भायीं, मैंने अपनी मर्जी पूरी कर ली !"

"सोबा ! तोबा ! इसमें मेरी मर्जी भी शामिल हैं, मेरे राजा !" माधवी ने उसके कानों में फुसफुसाया। [ १०७ ]मुत्तकुमरन् ने उससे पूछा, "जो समुद्री जहाज़ से चले थे, वे आज पिनांग पहुँच गये होंगे न?"

"नहीं, कल सवेरे ही पहुँचेंगे । कल उनका पूरा रेस्ट' है। पहले हम तीनों का प्रोग्राम है-'साइट सीइंग' का ! पहला नाटक परसों है।"

"कहाँ-कहाँ नाटक खेलने का आयोजन हुआ है ?"

"पहले के चार दिन पिनांग में नाटक का मंचन है । बाद के दो दिन ईप्पो में हैं। उसके बाद एक हफ्ते के लिए क्वालालम्पुर में है। बाद के दो दिनों में फिर 'साइट सीइंग', रेडियो और टेलिविज़न के लिए साक्षात्कार बगैरह हैं। अंतिम सप्ताह सिंगापुर में नाटक है। फिर वहीं से मद्रास के लिए हवाई उड़ान है।"

माधवी ने उसे पूरा कार्य-क्रम बता दिया। मुत्तुकुमरन् को उसके साथ बातें करते रहने का जी हुआ तो बोला, "आज तुम्हारे होंठ इतने लाल क्यों हैं ?"

"बोलो न!"

"इसलिए कि आपसे मुझे बड़ा प्यार है !"

"गुस्से में भी औरतों के होंठ लाल हो जाते हैं न ?"

"हाँ हाँ ! हो जाते हैं। थोड़ी देर पहले सिंगापुर के हवाई अड्डे पर आप जैसे महान व्यक्ति का स्वागत न कर, हम जैसे नाचीज़ खिलाड़ियों का जब अब्दुल्ला ने दौड़-दौड़कर और सिर पर उठाकर स्वागत किया था, तब मुझे इस दुनिया पर बड़ा गुस्सा आ रहा था।"

"तुम्हें गुस्सा आया होगा; पर मुझे नहीं। मेरा दिल तो उस वक्त बल्लियों उछलने लगा था। हाँ, मुझे इस बात से अवश्य गर्व ही हो रहा था कि मेरी माधवी का कितना मान-सम्मान हो रहा है। उतनी बड़ी भीड़ में, महल जैसे हवाई अड्डे के 'लाउंज' में, हाथों में भारी-भरकम फूलों की मालाएँ लिये हुए तुम तितली की तरह खड़ी थी और मेरा दिल बुलबुल की तरह फुदक रहा था !"

"अगल-बग़ल में न जाने कौन खड़े थे ! और मेरा दिल तड़प रहा था कि आप खड़े हों तो कितना अच्छा रहे ?"

"हाँ, मुझे इसका पता है ! क्योंकि अब हम दो दिल नहीं, एक-दिल हैं !"

"आपके मुंह से यह सब सुनते हुए बड़ी खुशी हो रही है ! जैसे वसिष्ठ के मुंह से ब्रह्मर्षि सुनना ।”

"क्या कहती हो. "आपके मुंह से आख़िर निकल गया न कि हम दोनों एक हैं !"

मुत्तुकुमरन् के मन में आया कि बातें बंदकर माधवी को आलिंगन में भरकर तुम?" एक हो जाये। [ १०८ ]इसी वक्त गोपाल और अब्दुल्ला वहाँ आये ।

"माधवी ! अब्दुल्ला साहब तुमसे कुछ कहना चाहते हैं। जरा उस तरफ़ अगली 'सीट' पर चली जाओ न !” गोपाल ने आँखें मटकाकर कहा तो माधवी की आँखें आप-ही-आप मुत्तुकुमरन पर ठहर गयीं।

"माफ़ करना उस्ताद !" गोपाल ने मुत्तकुमरन् से ही प्रार्थना की, मानो उसकी धरोहर को एक पल के लिए माँग रहा हो । मुत्तुकुमरन् को आश्चर्य हो रहा था कि वह उससे क्यों अनुमति चाह रहा है ? साथ ही, उसका आँखें मटकाकर माधवी को बुलाने पर क्रोध भी आ रहा था।

गोपाल के कहने पर भी, माधवी मुत्तुकुमरन को देखती हुई यों बैठी रही कि बिना उसकी अनुमति के, उठने का नाम नहीं लेगी।

अब्दुल्ला का चेहरा कठोर हो गया। वह भारी आवाज में अंग्रेज़ी में चीखे, "हू इज ही टु ऑर्डर हर ? ह्वाय आर यू अननेसेसरिली आस्किग हिम् ?"

"जाओ ! अंग्रेजी में वह कुछ चिल्ला रहा है ।" मुत्तुकुमरन ने माधवी के कानों में कहा।"

अगले क्षण माधवी ने जो किया, उसे देखकर मुत्तुकुमरन् को ही विस्मय होने लगा।

"आप जाइए ! मैं थोड़ी देर में वहाँ आती हूँ ! इनसे जो बातें हो रही थीं, उन्हें पूरा करके आऊँगी !"-माधवी ने अब्दुल्ला को वहीं से उत्तर दिया।

गोपाल का चेहरा कटु और कठोर हो गया । दोनों 'केबिन' की ओर बढ़े और पहली कतार की अपनी सीटों पर गये तो मुत्तुकुमरन् बोला, "हो आओ नः ! बिदेश आकर व्यर्थ की बला मोल क्यों ले रही हो ?"

माधवी के होंठ फड़क उठे। बोली, "मैं चली गयी होती । पर उसने अंग्रेजी में क्या कहा, मालूम?"

"कहो तो सही।"

"आपके बारे में गोपाल से उसने कहा कि इसे हुक्म देनेवाला यह कौन होता है ? उससे जाकर क्यों पूछते हो?"

"उसने तो कुछ ग़लत नहीं कहा । ठीक ही तो. कहा उसके होंठ आरक्त पुष्प बनकर फड़कने लगे । आँखों में आँसू भर आये। दोनों का भेद यद्यपि मुत्तुकुमरन् ने कौतुक के लिए किया था, फिर भी माधवी उसे बर्दाश्त नहीं कर सकी।

अब्दुल्ला के पास नहीं जाऊँगी, नहीं जाऊँगी।" कहकर फड़कते होंठों वह हाथ बांधे बैठ गयी।

हवाई जहाज किसी अड्डे पर उतरा। नीचे ज़मीन पर 'कोत्तपारु एयरपोर्ट' लिखा हुआ दिखायी दिया। [ १०९ ]
मालूम हुआ कि वह जहाज़ कोत्तपार, कुवान्तान, क्वालालम्पुर, ईप्पो आदि जगहों में उतरने के बाद अन्त में पिनांग को जाएगा।

धीरे-धीरे अँधेरा छा रहा था। शाम के झुटपुटे में वह हवाई अड्डा और चारों ओर के हरे-भरे पर्वत-प्रदेश बहुत सुन्दर दिखायी दिये ।

जहाँ देखो, मरकत की हरीतिमा छायी थी । पहाड़ों पर रबर के बगीचे ऐसे दिखायी दे रहे थे, मानो 'कलिंग' करके केश कुन्तल-से बनवाये गये हों। केले और रम्बुत्तान के पेड़ झुंड-के-झुंड खड़े थे। वहाँ को पर्वतस्थली वनस्थली जैसी थी।

रम्वुत्तान, डोरियान जैसे मलेशियाई फलों के बारे में स्वदेश में ही मुत्तुकुमरन् ने चेट्टिनाडु के एक मित्र के मुंह से सुन रखा था।

एक मलाय स्त्री, जो उस हवाई जहाज की होस्टस बी, हाथ में लिये केबिन से निकलकर आखिरी सिरे तक आती-जाती रही । उसका डील-डौल ऐसा था कि पीठ और छाती का फ़र्क ही मालूम नहीं पड़ता था। लेकिन उसकी आँखें ऐसी सुन्दर थीं, मानो सफ़ेद मखमल पर काले जामुन लुढ़क गये हों।

हवाई जहाज़ उस अड्डे से रवाना हुआ तो सिर्फ गोपाल उनके पास आया और बोला, "माधवी ! तुम्हारा वर्ताव अगर तुम्हें ठीक लगे तो ठीक है।"

माधवी ने आँखें पोंछी और सीट की बेल्ट खोलकर उठी। इस बार मुत्तुकूमरन् से कुछ कहे और उसका मुंह देखे बिना अब्दुल्ला की सीट की ओर बढ़ी। मुत्तुकुमरन् अपने को अकेला महसूस न करे—इस विचार से गोपाल माधवी. की सीट पर बैठकर उससे बातें करने लगा।

"बात यह है उस्ताद ! अब्दुल्ला जरा शौकीन किस्म का आदमी है। काफ़ी बड़ा रईस। एक तारिका के पास बैठने-बोलने को लालायित है। औरतों का दीवाना भी है। उसके पास बैठकर जरा देर बातचीत करने में क्या बुराई है ? उसी की 'कांट्रेक्ट' पर ही तो हम इस देश में आये हैं। ये बातें माधवी की समझ में नहीं आतीं। ऐसा तो नहीं कि वह बिलकुल नहीं समझती । वह बड़ी होशियार है और अक्लमंद भी । आँखों के इशारे समझनेवाली है। वैसे उस्ताद तुम्हारे आने के बाद वह एकदम बदल गयी है। जिद पकड़ लेना, गुस्सा उतारना, उदासीनता बरतनान जाने क्या-क्या बदलाव आ गये?"

"यह सब मेरी ही वजह से आये हैं न?"

"ऐसा कैसे कहूँ ? फिर तुम्हारे गुस्से का कौन सामना करे?"

"तो फिर किस मतलब से तुमने यह बताया गोपाल ?"

मुत्तुकुमरन् की आवाज को ऊँचा पड़ते देखकर गोपाल दिल-ही-दिल में डर गया। मुत्तुकुसरन् आग उगलते हुए बोला-"औरत औरत है। कोई व्यापार की

चीज़ नहीं। उसकी इज्जत का ख्याल रखना चाहिए। तुम्हारा यह काम मुझे

कलाकार का काम नहीं लगता। ऐसे काम करनेवाले तो दूसरे होते हैं । मुझे इतना [ ११० ]तो जरूर पता चल गया है कि अब तुम पहले के नाटक कंपनीवाले गोपाल नहीं ! अब्दुल्ला या ऐरा-गैर कोई तुम्हारी कद्र करे तो इसलिए करे कि तुम एक कला- कार हो। इसलिए नहीं कि तुम्हारे साथ चार-पाँच लड़कियाँ हैं, जो तुम्हारे इशारे पर चल सकती हैं। क्या तुम ऐसी ही कद्र की खोज में हो ? बड़े अफ़सोस की बात है।"

इस गहमा-गहमी के बीच, दोनों को इस बात का खयाल नहीं रहा कि हबाई जहाज कहाँ-कहाँ उतरा और फिर उड़ान भरता रहा ।

जंब हवाई जहाज क्वालालम्पुर के सुबाङ इन्टरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा तो अब्दुल्ला ने आकर कहा, "यहाँ कुछ लोग माला पहनाने आये होंगे। ज़रा आइए । लाउंज तक हो आयें।"

गोपाल गया। माधवी संकोचवश खड़ी रही। मुत्तुकुमरन् तो अपने आसन से उठा ही नहीं। वह माधवी से बोला, "मैं नहीं आता। मेरे लिए कोई माला नहीं लाया होगा । तुम हो आओ!"

"तो मैं भी नहीं जाती।"

अब्दुल्ला ने फिर हवाई जहाज़ के अन्दर आकर अनुरोध किया, "डोंट क्रिएट ए सीन हियर, प्लीज़ डू कम ।"

माधवी उनके पीछे चली। उसने भी तो सिर्फ माधवी को ही बुलाया था।

अब्दुल्ला ने मुत्तुकुमरन् की ओर तो आँखें उठाकर देखा तक नहीं। क्वालालम्पुर में आये हुए लोगों की मान-मर्यादा और गुलदस्ते स्वीकार कर गोपाल, अब्दुल्ला और माधवी-तीनों हवाई जहाज पर चढ़ आये। "अरे रे ! उस्ताद नीचे उतरकर नहीं आये क्या?" गोपाल ने ऐसी नकली हमदर्दी-सी जतायी, मानो मुत्तुकुमरन् के. हवाई जहाज़ के अंदर ही ठहर जाने की बात का उसे अभी- अभी पता चला हो । मुत्तुकुमरन ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया।

हवाई जहाज फिर उड़ान भरने लगा तो पहले की तरह अब्दुल्ला और गोपाल अगली पंक्ति में बैठकर बातें करने चले गये। माधवी भी मुत्तुकुमरन के पास आकर, पहले जहाँ बैठी थी, वहीं बैठ गयी और रूमाल से मुंह ढक लिया, मानो बहुत थक गयी हो।

थोड़ी देर वे दोनों एक-दूसरे से कुछ नहीं बोले। अचानक किसी के सिसकने की आवाज़ आयी तो मुत्तुकुमरन ने आसपास की सीटों की ओर मुड़कर देखाः । आगे-पीछे की ही नहीं, अगल-बगल की सीटें भी खाली थीं। उसके मन में कुछ सन्देह हुआ तो उसने माधवी के चेहरे पर से रूमाल हटाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया । माधवी ने वह हाथ रोक लिया। लेकिन फिर उसने जबरदस्ती रूमाल खींच लिया तो देखा कि माधवी आँसू बहाती हुई सिसक रही है।

"यह क्या कर रही हो ? यहाँ आकर जगहँसाई करने पर तुली हो?" [ १११ ]"मेरा दिल खौल रहा है !"

"क्यों? क्या हुआ?"

"उस उल्लू के पट्ठे को इतना भी लिहाज़ नहीं रहा कि आपको भी बुला ले !"

"वह कौन होता है, मुझे बुलानेवाला ?" पूछते हुए उसने रूमाल से उसकी आँखें पोंछी और बड़े प्यार से उसके सिर के बाल सहलाये। "मेरा इसी क्षण मर जाने को जी कर रहा है। क्योंकि इस क्षण में आप मुझपर प्रेम बरसा रहे हैं। अगले क्षण कौन जाने, आपका गुस्सा उभारने का कोई ग़लत काम हो जाये ! इससे अच्छा तो प्यार के क्षणों में ही मर जाना है न।"

"सुनो! पागल की तरह बको मत ! और कोई दूसरी बातें करो हाँ, अब्दुल्ला के पास गयी थी न तुम ! वह क्या बोल-बक रहा था?

"कुछ नहीं, बेहूदी बातें बकता रहा। दस मिनट से भी ज्यादा देर तक उसकी बकवास सुननी पड़ी। कह रहा था कि 'आइ एम ए मैन ऑफ़ फैशन्स अंड फ़ैन्सीज़!"

"इसका क्या मतलब?"

माधवी ने मतलब भी बता दिया और इसके साथ ही, मुत्तुकुमरन भी बोलना बंद कर किसी सोच में पड़ गया।

हवाई जहाज़ ईप्पो में उतरा। वहां भी माला पहनाने के लिए कई प्रशंसक तैयार खड़े थे। सिर्फ गोपाल ही अब्दुल्ला के साथ उतरकर गया । माधवी सिर-दर्द का बहाना बनाकर इस सिर-दर्द से बच गयी।