रामनाम/१८

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राम कौन?

स॰—आप कहा करते है कि प्रार्थनामे प्रयुक्त रामका आशय दशरथके पुत्र रामसे नही। आपका आशय जगन्नियतासे होता है। हमने भलीभाति देखा है कि रामधुनमे 'राजाराम, सीताराम', 'राजाराम, सीताराम' का कीर्तन होता है। और जयकार भी 'सीतापति रामचन्द्रकी जय' का लगता है। मै विनम्र भावसे पूछता हू कि ये सीतापति राम कौन है? ये राजाराम कौन है? क्या ये दशरथके सुपुत्र राम नही है?

ज॰—रामधुनमे 'राजाराम', 'सीताराम' अवश्य रटा जाता है। वह दशरथ-नन्दन राम नही तो कौन है? तुलसीदासजीने तो अिसका अुत्तर दिया ही है, तो भी मुझे कहना चाहिये कि मेरी राय कैसे बनी है। रामसे रामनाम बडा है। हिन्दू धर्म महासागर है। अुसमे अनेक रत्न भरे है। जितना गहरे पानीमे जाओ, अुतने ज्यादा रत्न मिलते है। हिन्दू धर्ममे अीश्वरके अनेक नाम है। सैकडो लोग राम-कृष्णको अैतिहासिक व्यक्ति मानते है, और मानते है कि जो राम दशरथके पुत्र माने जाते है, वही अीश्वरके रूपमे पृथ्वी पर आये और अुनकी पूजासे आदमी मुक्ति पाता है। अैसा ही कृष्णके लिअे है। अितिहास, कल्पना और शुद्ध सत्य आपसमे अितने ओतप्रोत है कि अुन्हे अलग करना लगभग असभव है। मैने अपने लिअे अीश्वरकी सब सज्ञाये रखी है। और अुन सबमे मै निराकार, सर्वस्थ रामको ही देखता हू। मेरे लिअे मेरा राम सीतापति दशरथ-नन्दन कहलाते हुए भी वह सर्वशक्तिमान अीश्वर ही है, जिसका नाम हृदयमें होनेसे मानसिक, नैतिक और भौतिक सब दुखोका नाश हो जाता है।

गाधीजीने आगे कहा "जिस रामके नामको मै सब बिमारियोकी रामबाण दवा कहता हू, वह राम न तो अैतिहासिक राम है, और न अुन लोगो का राम है, जो अुसका अिस्तेमाल जादू-टोनेके लिअे करते है। सब रोगोकी रामबाण दवाके रूपमे मै जिस रामका नाम सुझाता हू, वह तो खुद अीश्वर ही है, जिसके नामका जप करके भक्तोने शुद्धि और शान्ति [ २८ ]पाअी है। और मेरा यह दावा है कि रामनाम सभी बीमारियोकी, फिर वे तनकी हो, मनकी हो या रूहानी हो, अेक ही अचूक दवा है। अिसमें शक नही कि डॉक्टरो या वैद्योसे शरीरकी बीमारियोका अिलाज कराया जा सकता है। लेकिन रामनाम तो आदमीको खुद ही अपना वैद्य या डॉक्टर बना देता है, और अुसे अपनेको अन्दरसे नीरोग बनानेकी सजीवनी हासिल करा देता है। जब कोअी बीमारी अिस हद तक पहुच जाती है कि अुसे मिटाना मुमकिन नही रहता, अुस वक्त भी रामनाम आदमीको अुसे शान्त और स्वस्थ भाव से सह लेनेकी ताकत देता है।" अुन्होंने और कहा "जिस आदमी को रामनाममे श्रद्धा है, वह जैसे-तैसे अपनी जिन्दगी के दिन बढानेके लिअे नामी-गरामी डॉक्टरो और वैद्योके दरकी खाक नही छानेगा और यहासे वहा मारा-मारा नही फिरेगा। रामनाम डॉक्टरो और वैद्योके आगे हाथ टेक देनेके बाद लेनेकी चीज भी नही। वह तो आदमीको डॉक्टरो और वैद्योके बिना भी अपना काम चला सकनेवाला बनानेकी चीज है। रामनाममे श्रद्धा रखनेवाले के लिअे वही अुसकी पहली और आखिरी दवा है।"

हरिजनसेवक, २-६-१९४६

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दशरथ-नन्दन राम

अेक आर्यसमाजी भाअी लिखते हैं

"जिन अविनाशी रामको आप अीश्वर-स्वरूप मानते है, वे दशरथ-नन्दन सीतापति राम कैसे हो सकते है? अिस दुविधा का मारा मै आपकी प्रार्थनामे बैठता तो हू, लेकिन रामधुनमे हिस्सा नही लेता। यह मुझे चुभता है। क्योकि आपका कहना तो यह है कि सब हिस्सा ले, और यह ठीक भी है। तो क्या आप अैसा कुछ नही कर सकते, जिससे सब हिस्सा ले सके?"

सबके मानी मै बता चुका हू। जो लोग दिलसे हिस्सा ले सके, जो अेक सुरमे गा सके, वे ही अिसमे हिस्सा ले, बाकी शान्त रहे। लेकिन यह तो छोटी बात हुअी। बड़ी बात तो यह है कि दशरथ-नन्दन राम अविनाशी कैसे हो सकते है? यह सवाल खुद तुलसीदास जी ने अुठाया था और अुन्होने