रामनाम/३६
आपकी क्षयकी बीमारीके कअी कारण हो सकते है। यह भी कौन कह सकता है कि पच महाभूतोका आपने जरूरतके मुताबिक अुपयोग किया या नही? अिसीलिअे जहा तक मै कुदरतके नियमोको जानता हू और अुन्हें सही मानता हू, वहा तक मै तो आपसे अही कहूगा कि कही-न-कही पच महाभूतोका अुपयोग करनेमे आपने भूल की है। महादेव और रामकृष्ण परमहसके बारेमे आपने जो शका अुठाअी, अुसका जवाब भी मेरी अुपरकी बातमे आ जाता है। कुदरतके नियमको गलत कहनेके बजाय यह कहना ज्यादा युक्तिसगत मालूम होता है कि अिन्होने भी कही-न-कही भूल की होगी। नियम कोई मेरा बनाया हुआ नहीं है, वह तो कुदरतका नियम है, कई अनुभवी लोगोने अिसे कहा है। और अिसी बातको मानकर मै चलनेकी कोशिश करता हू। आखिरकार मनुष्य अपूर्ण प्राणी है। और कोअी अपूर्ण मनुष्य इसे कैसे जान सकता है? डॉक्टर अिसे नही मानते। मानते भी है तो उसका दूसरा अर्थ करते है। इसका मुझ पर कोई असर नही होता। नियमकी अैसी ताअीद करने पर भी मेरे कहनेका यह मतलब नही होता, न निकाला जाना चाहिये कि इससे अूपरके किसी व्यक्तिका महत्त्व कम होता है।
हरिजनसेवक, ४-८-१९४६
३३
विश्वास-चिकित्सा[१] और रामनाम
एक दोस्त अुलाहना देते हुए लिखते है
"क्या आपका कुदरती अिलाज और विश्वास-चिकित्सा कुछ मिलती-जुलती चीजे है? बेशक मरीजको अिलाजमे श्रद्धा तो होनी चाहिये, लेकिन कअी अैसे अिलाज है जो सिर्फ विश्वाससे ही रोगीको अच्छा कर देते है, जैसे, माता (चेचक), पेटका दर्द वगैरा बीमारियोके। शायद आप जानते हो कि माताका, खासकर दक्षिणमे[२], 'कोई इलाज नही किया जाता। इसे सिर्फ ईश्वरकी माया-मान लिया जाता है। हम मरिअम्मा देवीकी पूजा करते है और बहुतसे रोगी अच्छे हो जाते है। यह चीज अेक करामात-सी लगती है। जहा तक पेट-दर्दकी बात है, बहुतसे लोग तिरुपतिमे देवीकी मन्नते मानते है। अच्छे होने पर अुसकी मूर्तिके हाथ-पाव धोते है, और दूसरी मानी हुई मन्नते पूरी करते है। मेरी ही माकी मिसाल लीजिये। अुनको पेटमे दर्द रहता था। पर तिरुपति हो आनेके बाद अुनकी वह तकलीफ दूर हो गअी।
"कृपा करके अिस बात पर रोशनी डालिये और यह भी कहिये कि कुदरती अिलाज पर भी लोग अैसा ही विश्वास क्यो न रखे? अिससे डॉक्टरोका बार-बारका खर्च बच जायगा, क्योकि चॉसरके कहनेके मुताबिक डॉक्टरका तो काम ही है कि वह दवाअी बेचनेवालेसे मिलकर बीमारको हमेशा बीमार बनाये रखे।"
जो मिसाले अूपर दी गअी है, वे न तो कुदरती अिलाजकी ही है, और न रामनामकी ही, जिसको मैने अिसमे शामिल किया है। अुनसे यह पता जरूर चलता है कि कुदरत बहुतसे रोगियोको बिना किसी अिलाजके भी अच्छा कर देती है। ये मिसाले यह भी दिखाती है कि हिन्दुस्तानमे वहम हमारी जिन्दगीका कितना बडा हिस्सा बन गया है। कुदरती अिलाजका मध्यबिन्दु यानी रामनाम तो वहमका दुश्मन है। जो बुराअी करनेसे झिझकते नही, वे रामनामका नाजायज फायदा अुठायेगे। पर वे तो हर चीज या हर अुसूलके साथ अैसा ही करेगे। खाली जबानसे रामनाम रटनेसे अिलाजका कोअी सम्बन्ध नही। अगर मै ठीक समझा हू, तो जैसा कि लेखकने बताया है, विश्वास-चिकित्सामे यह माना जाता है कि रोगी अन्ध-विश्वाससे अच्छा हो जाता है। यह मानना तो अीश्वरके नामकी हसी अुडाना है। रामनाम सिर्फ कल्पनाकी चीज नही, की अुसे तो दिलसे निकलना है। परमात्मामें ज्ञानके साथ विश्वास हो और उसके साथ-साथ कुदरतके नियमोका पालन किया जाय, तभी किसी दूसरी मददके बिना रोगी बिलकुल अच्छा हो सकता है। अूसूल यह है कि शरीरकी सेहत तभी बिलकुल अच्छी हो सकती है, जब मनकी सेहत पूरी-पूरी ठीक हो। और मन पूरा-पूरा ठीक तभी होता है, जब दिल पूरा-पूरा ठीक हो। यह वह दिल नही, जिसे डॉक्टर छाती जाचनेके यत्र (स्टेथोस्कोप) से देखते है, बल्कि वह दिल है जो ईश्वरका घर है। कहा जाता है कि अगर कोअी अपने अन्दर परमात्माको पहचान ले, तो अेक भी गन्दा या फजूल खयाल मनमे नही आ सकता। जहा विचार शुद्ध हो, वहा बीमारी आ ही नहीं सकती। अैसी हालतको पहुचना शायद कठिन हो, पर अिस बात को समझ लेना सेहत की पहली सीढी है। दूसरी सीढी है, समझने के साथ-साथ कोशिश भी करना। जब किसी के जीवन में यह बुनियादी परिवर्तन आता है, तो अुसके लिअे स्वाभाविक हो जाता है कि वह अुसके साथ-साथ कुदरत के अुन तमाम कानूनों का पालन भी करे, जो आज तक मनुष्य ने ढूढ निकाले है। जब तक अुनकी अुपेक्षा की जाय, तब तक कोअी यह नहीं कह सकता कि अुसका हृदय पवित्र हैं। यह कहना गलत न होगा कि अगर किसी का हृदय पवित्र है, तो अुसकी सेहत रामनाम न लेते हुए भी अुतनी ही अच्छी रह सकती है। बात सिर्फ यह है कि सिवा रामनाम के पवित्रता पाने का और कोअी तरीका मुझे मालूम नहीं। दुनिया में हर जगह पुराने ऋषि भी अिसी रास्ते पर चले है। और वे तो भगवान के बन्दे थे, कोअी वहमी या ढोगी आदमी नहीं।
अगर अिसीका नाम 'ऋिश्चियन सायन्स' है, तो मुझे कुछ कहना नहीं है। मै यह थोडी ही कहता हू कि रामनाम मेरी ही शोध है। जहा तक मै जानता हू, रामनाम तो अीसाअी धर्मसे भी पुराना है।
अेक भाअी पूछते है कि क्या रामनाममे ऑपरेशनकी अिजाज़त नहीं? क्यो नहीं? अेक टाग अगर दुर्घटना में कट गअी है, तो रामनाम अुसे थोडे ही वापस ला सकता है। लेकिन बहुतसी हालतोमे ऑपरेशन जरूरी नहीं होता। मगर जहा जरूरी हो वहा करवा लेना चाहिये। सिर्फ अितनी बात है कि अगर भगवानके किसी बन्देका हाथ-पाव जाता रहे, तो वह अिसकी चिन्ता नहीं करेगा। रामनाम कोअी अटकलपच्चू तजवीज नहीं है, और न कोअी कामचलाअू चीज ही।
हरिजनसेवक, ९-६-१९४६