रामनाम/३७
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रामनामके बारेमें भ्रम
अेक मित्र लिखते है
"आपने रामनामसे मलेरियाका अिलाज सुझाया। मेरी मुश्किल यह है कि जिस्मानी बिमारियोंके लिअे रूहानी ताकत पर भरोसा करना मेरी समझसे बाहर है। मैं पक्की तरहसे यह भी नहीं जानता कि आया मुझे अच्छा होनेका हक भी हैं या नहीं। और क्या अैसे वक्त जब मेरे देशवाले अितने दुखमे पडे हैं, मेरा अपनी मुक्तिके लिअे प्रार्थना करना ठीक होगा? जिस दिन मैं रामनाम समझ जाअूगा, अुस दिन मैं अुनकी मुक्तिके लिए प्रार्थना करूँगा। नहीं तो मैं अपने-आपको आजसे ज्यादा खुदगरज महसूस करूँगा।"
मैं मानता हू कि यह दोस्त सत्यके सच्चे तलाश करनेवाले है। अुनकी अिस मुश्किल की खुल्लमखुल्ला चर्चा मैंने अिसलिअे की है कि अुन जैसे बहुतोंकी मुश्किले इसी तरहकी है।
दूसरी ताकतोकी तरह रूहानी ताकत भी मनुष्यकी सेवाके लिअे है। सदियोसे थोडी-बहुत सफलताके साथ शारीरिक रोगोको ठीक करनेके लिअे अुसका अुपयोग होता रहा है। अिस बातको छोड भी दे, तो भी अगर जिस्मानी बीमारियोके अिलाजके लिअे कामयाबीके साथ अुसका अिस्तेमाल हो सकता हो, तो अुसका अुपयोग न करना बहुत बडी गलती है। क्योकि आदमी जड तत्त्व भी हैं और आ मा भी है। और, अिन दोनोका अेक-दूसरे पर असर होता है। अगर आप मलेरियासे बचने के लिअे कुनैन लेते है, और अिस बातका खयाल भी नही करतेकि करोडोको कुनैन नही मिलती, तो आप उस इलाजके इस्तमालसे क्यो अिनकार करते है जो आपके अन्दर है? क्या सिर्फ अिसलिअे कि करोडो अपने अज्ञान के कारण उसका अिस्तेमाल नही करते? अगर करोडो अनजाने या हो सकता है जान-बूझकर भी गन्दे रहे, तो क्या आप अपनी सफाअीयों और सेहत का ध्यान छोड देंगे? सखावतकी गलत कल्पनाके कारण अगर आप साफ नहीं रहेंगे, तो गन्दे और बीमार रहकर आप अुनहीं करोडोंकी सेवाका फर्ज भी अपने अूपर नहीं ले सकेंगे। और यह बात तो पक्की है कि आत्माका रोगी या गन्दा होना (अुसे अच्छी और साफ रखनेसे अिनकार करना) बीमार और गन्दा शरीर रखनेसे भी बुरा है। मुक्तिका अर्थ यही है कि आदमी हर तरहसे अच्छा रहे। फिर आप अच्छे क्यों न रहे? अगर अच्छे रहेंगे, तो दूसरोको अच्छा रहनेका रास्ता दिखा सकेंगे, और अिससे भी बढकर अच्छे होनेके कारण आप दूसरोंकी सेवा कर सकेंगे। लेकिन अगर आप अच्छे होनेके लिअे पेनिसिलिन लेते है, हालाकि आप जानते है कि दूसरोंको वह नही मिल सकती, तो जरूर आप सरासर खुदगरज बनते है।
मुझे पत्र लिखनेवाले अिन दोस्तकी दलीलमें जो गड़बडी है वह साफ है।
हा, यह ज़रूर है कि कुनैनकी गोली या गोलिया खा लेना रामनामके अुपयोगके ज्ञानको पानेसे ज्यादा आसान है। कुनैनकी गोलिया खरीदनेकी कीमतसे अिसमें कही ज्यादा मेहनत पड़ती है। लेकिन यह मेहनत अुन करोडों के लिअे अुठानी चाहिए, जिनके नाम पर और जिनके लिए लेखक रामनामको अपने हृदय से बाहर रखा चाहते है।
हरिजनसेवक, १-९-१९४६
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बेचैन बना देनेवाली बात
जब कुछ महीनोकी गैरहाजिरीके बाद गाधीजी सेवाग्राम-आश्रममे लौटे, तो देखा कि आश्रमके एक सेवक की दिमागी हालत खराब हो गअी है। जब वे पहली बार आश्रम मे आये थे, तब भी अुनकी हालत ऐसीही थी। यह पागलपनका दूसरा हमला था। उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि उन्हे संभालना मुश्किल हो गया, इसलिए उनके बारे मे फौरन ही कुछ फैसला कर लेने की ज़रूरत पैदा हो गई। इसलिए वधकेि सरकारी अस्पताल के बडे डॉक्टर की यानी सिविल सर्जन की सलाह पूछी गई। उन्होने कहा कि वे वर्धाके सरकारी सिविल अस्पताल में तो बीमार को रख नही सकेंगे, लेकिन अगर उन्हें जेल के अस्पताल में रखा जाय, तो वे उनकी सार-संभाल कर सकेंगे और थोडा-बहुत इलाज भी करेंगे। इसलिए बीमार की और आश्रम की भलाई के खयाल से उनको जेल भेजना पडा। गांधीजी के लिए यह चीज़ बहुत ही दुखदायी हो गअी। अिसने अुन्हे