रामनाम/४४

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[ ६४ ] खडा हो गया—अितना नजदीक खडा था कि पिस्तोलसे निकली हुअी गोलीका खोल बादमे बापूके कपडोकी पर्तमे अुलझा हुआ मिला। सात कारतूसोवाली ऑटोमेटिक पिस्तोलसे जल्दी-जल्दी तीन गोलिया छूटी। पहली गोली नाभीसे ढाअी अिंच अूपर और मध्यरेखासे साढे तीन अिच दाहिनी तरफ पेटकी दाहिनी बाजूमे लगी। दूसरी गोली मध्यरेखासे अेक अिचकी दूरी पर दाहिनी तरफ घुसी और तीसरी गोली छातीकी दाहिनी तरफ लगी। पहली और दूसरी गोली शरीरको पार करके पीठ पर बाहर निकल आअी। तीसरी गोली अुनके फेफडेमे ही रुकी रही। पहले वारमे अुनका पाव, जो गोली लगनेके वक्त आगे बढ रहा था, नीचे आ गया। दूसरी गोली छोडी गअी, तब तक वे अपने पावो पर ही खडे थे। और अुसके बाद वे गिर गये। अुनके मुहसे आखिरी शब्द "राम! राम!" निकले।

हरिजनसेवक, १५-२-१९४८

४१
प्रार्थना-प्रवचनोंमें से

रामनाम––अुसके नियम और अनुशासन

गाधीजीने कहा रामनाम आदमीको बीमारीमे मदद कर सकता है, लेकिन अुसके कुछ नियम और अनुशासन है। कोअी जरूरतसे ज्यादा खाना खाकर 'रामनाम' जपे और फिर भी अुसे पेटका दर्द हो, तो वह गाधीको दोष नही दे सकता। रामनामका अुचित ढगसे अुपयोग किया जाय तभी अुससे लाभ होता है। कोअी आदमी रामनाम जपे और लूटपाट मचावे, तो वह मोक्षकी आशा नहीं कर सकता। वह सिर्फ अुन्हींके लिअे है, जो आत्मशुद्धि के लिअे अुचित अनुशासन पालनेके लिअे तैयार है।

––बम्बअी, १५-३-४६

सबसे असरकारक इलाज

अुरुळीकाचनकी प्रार्थना-सभामे भाषण करते हुअे गाधीजी ने कहा—रामधुन शारीरिक और मानसिक बीमारियोंके लिअे सबसे असरकारक इलाज है। कोअी डॉक्टर या वैद्य दवा देकर बीमारी अच्छी करनेका वचन नही [ ६५ ] दे सकता। लेकिन अगर आप भगवानसे प्रार्थना करे, तो वह आपके दुखो और चिंताओको जरूर मिटा सकता है। लेकिन प्रार्थनाको असरकारक बनानेके लिअे हमे सच्चे दिलसे रामधुनमे भाग लेना चाहिये, और तभी हमे शाति और सुखका अनुभव हो सकता है।

अिसके अलावा, दूसरी शर्ते भी है, जिन्हे पूरा करना जरूरी है। हमें अुचित खुराक लेना चाहिये, काफी सोना चाहिये और कभी गुस्सा नही करना चाहिये। सबसे पहली बात तो यह है कि हमे कुदरतके साथ मेल साध कर रहना चाहिये और अुसके नियमोका पालन करना चाहिये।

––पूना, २२-३-'४६

तैयारी जरूरी

प्रार्थनाके बाद सभामे भाषण करते हुअे गाधीजीने कहा अीमानदार स्त्री-पुरुषोने मुझे कहा है कि पूरी-पूरी कोशिश करने पर भी वे यह नही कह सकते कि वे दिलसे रामनाम लेते है। अुन्हे मेरा जवाब यह है कि वे कोशिश करते रहे और अपार धीरज रखे। अेक लडकेको डॉक्टर बननेके लिअे कम-से-कम १६ सालका कठिन अभ्यास जरूरी होता है। तब फिर रामनामको दिलमे बसानेके लिअे कितना ज्यादा समय जरूरी होना चाहिये।

––नअी दिल्ली, २०-४-'४६

भीतरी और बाहरी पवित्रता

जो आदमी रामनाम जपकर अपनी अन्तरात्माको पवित्र बना लेता है, वह बाहरी गन्दगीको बरदाश्त नही कर सकता। अगर लाखो-करोडो लोग सच्चे हृदयसे रामनाम जपे, तो न तो दगे—जो सामाजिक रोग है—हो। और न बीमारी हो। दुनियामे रामराज्य कायम हो जाय।

––नअी दिल्ली, २१-४-'४६

रामनामका दुरुपयोग

आज प्रार्थनाके बादके भाषणमे गाधीजीने कुदरती अिलाजका जिक्र किया। यानी तन, मन और आत्माकी बीमारियोको खास तौर पर रामनामकी मददसे मिटानेके बारेमे समझाया। अेक भाअीने लिखा था कि कुछ लोग अन्ध-विश्वासकी वजहसे कपडो पर रामनाम छपवा लेते है, और अुन्हे अपने [ ६६ ] बदन पर, खासकर छाती पर पहनते-ओढते है। दूसरे कुछ लोग कागजके टुकडो पर बारीक अक्षरोमे करोडोकी तादादमे रामनाम लिखते है और अुन्हे काट-काटकर अुनकी छोटी-छोटी गोलिया अिस खयालसे निगल जाते है कि अिस तरह वे यह दावा कर सकेगे कि रामनाम अुनके दिलमे छप गया है। अेक और भाअीने अुनसे पूछा था कि क्या अुन्होने रामनामको सब तरहकी बीमारियोका अेक ही रामबाण अिलाज कहा है? और क्या अुनके ये राम अीश्वरके अवतार और अयोध्याके राजा दशरथके पुत्र थे? कुछ अैसे भी लोग है, जो मानते है कि गाधीजी खुद भुलावेमे पडे हुअे है और अन्ध-विश्वासोसे भरे अिस देशके हजारो अन्ध-विश्वासोमे अेक और अन्ध-विश्वास बढाकर दूसरोको भी भुलावेमे डालनेकी कोशिश कर रहे है। गाधीजीने कहा "अिस तरहकी टीकाका मेरे पास कोअी जवाब नहीं है। मै तो अपने दिलसे यह कहता हू कि अगर लोग सचाअीका दुरुपयोग करते है और धोखा-धडीसे काम लेते है, तो मै अुसकी परवाह क्यो करू? जब तक मुझे अपनी सचाअीका पक्का भरोसा है, मै अिस डरसे अुसका अैलान करनेसे रुक कैसे सकता हू कि लोग अुसे गलत समझेगे या अुसका गलत अिस्तेमाल करेगे? अिस दुनियामे अैसा कोअी नही है, जिसने पूरी-पूरी सचाअीको जाना हो। यह तो सिर्फ अेक अीश्वरका ही विशेषण है। हम सब तो सिर्फ सापेक्ष सत्यको ही जानते है । अिसलिअे जिसे हम जानते है, अुसीके मुताबिक हम अपना बरताव रख सकते है। अिस तरह सचाअीका पालन करनेसे कोअी कभी गुमराह नही हो सकता।"

—नअी दिल्ली, २४-५-'४६

रामनाम कैसे लें?

आजके अपने भाषण मे गाधीजीने बताया कि किस तरह अिन्सानको सतानेवाली तीनो तरहकी बीमारियोके लिअे अकेले रामनामको ही रामबाण इलाज बनाया जा सकता है। अुन्होने कहा "अिसकी पहली शर्त तो यह है कि रामनाम दिलके अन्दरसे निकलना चाहिये। लेकिन अिसका मतलब क्या? लोग अपनी शारीरिक बीमारियोका अिलाज खोजनेके लिअे दुनियाके आखिरी छोर तक जानेसे भी नही थकते, जब कि मन और आत्माकी बीमारियोके सामने ये शारीरिक बीमारिया बहुत कम महत्त्व रखती है। मनुष्यका भौतिक [ ६७ ] शरीर तो आखिर अेक दिन मिटने ही वाला है। अुसका स्वभाव ही है कि वह हमेशाके लिअे रह ही नही सकता। और तिस पर भी लोग अपने अन्दर रहनेवाली अमर आत्माको भुलाकर अुसीका ज्यादा प्यार-दुलार करते है। रामनाममे श्रद्धा रखनेवाला आदमी अपने शरीरको अैसे झूठे लाड नही लडायेगा, बल्कि अुसे अीश्वरकी सेवा करनेका अेक जरिया-भर समझेगा। अुसको अिस तरहका माकूल जरिया बनानेके लिअे रामनामसे बढकर दूसरी कोअी चीज नही।

"रामनामको हृदयमे अकित करनेके लिअे अनन्त धीरजकी जरूरत है। अिसमे युग-के-युग लग सकते है, लेकिन यह कोशिश करने जैसी है। अिसमे कामयाबी भी भगवानकी कृपासे ही मिल सकती है।

"जब तक आदमी अपने अन्दर और बाहर सचाअी, अीमानदारी और पवित्रताके गुणोको नही बढाता, तब तक अुसके दिलसे रामनाम नही निकल सकता। हम लोग रोज शामकी प्रार्थनामे स्थितप्रज्ञका वर्णन करनेवाले श्लोक पढते है। हममे से हरअेक आदमी स्थितप्रज्ञ बन सकता है, बशर्ते कि वह अपनी अिन्द्रियोको अपने काबूमे रखे और जीवनको सेवामय बनानेके लिअे ही खाये, पीये और मौज-शौक या हसी-विनोद करे। मसलन्, अगर अपने विचारो पर आपका कोअी काबू नही है और अगर आप अेक तग अधेरी कोठरीमे अुसकी तमाम खिडकिया और दरवाजे बन्द करके सोनेमे कोअी हर्ज नहीं समझते और गन्दी हवा लेते है या गन्दा पानी पीते है, तो मै कहूगा कि आपका रामनाम लेना बेकार है।

"लेकिन अिसका यह मतलब नही कि चूकि आप जितने चाहिये अुतने पवित्र नही है, अिसलिये आपको रामनाम लेना छोड देना चाहिये। क्योकि पवित्र बननेके लिअे भी रामनाम लेना लाभकारी है। जो आदमी दिलसे रामनाम लेता है, वह आसानीसे अपने-आप पर काबू रख सकता है और अनुशासनमे रह सकता है। अुसके लिअे तन्दुरुस्ती और सफाअीके नियमोका पालन करना सहल हो जायगा। अुसकी जिन्दगी सहज भाव से बीत सकेगी—अुसमे कोअी विषमता न होगी। वह किसीको सताना या दुःख पहुचाना पसन्द नही करेगा। दूसरोके दु:खोको मिटानेके लिअे, अुन्हें राहत पहुचानेके लिअे, खुद तकलीफ अुठा लेना अुसकी आदत मे आ जायगा और अुसको हमेशाके लिअे अेक अमिट सुख का लाभ मिलेगा—अुसका मन अेक शाश्वत और अमर सुखसे भर जायगा। [ ६८ ] अिसलिअे मै कहता हू कि आप अिस कोशिशमे लगे रहिये और जब तक काम करते है तब तक सारा समय मन-ही-मन रामनाम लेते रहिये। अिस तरह करनेसे अेक दिन अैसा भी आयेगा, जब रामनाम आपका सोते-जागतेका साथी बन जायगा और अुस हालतमे आप अीश्वरकी कृपासे तन, मन और आत्मासे पूरे-पूरे स्वस्थ और तन्दुरुस्त बन जायगे।"

––नअी दिल्ली, २५-५-'४६

मौन विचारकी शक्ति

आजकी प्रार्थना-सभामे गाधीजीने कहा "आप सब मेरे साथ रामनाम लेने या रामनाम लेना सीखनेके लिअे रोज रोज अिन प्रार्थना-सभाओमे आते रहे है। लेकिन रामनाम सिर्फ जबानसे नही सिखाया जा सकता। मुहसे निकले बोलके मुकाबले दिलका मौन विचार कही ज्यादा ताकत रखता है। अेक सच्चा विचार सारी दुनिया पर छा सकता है––अुसे प्रभावित कर सकता है। वह कभी बेकार नही जाता। विचारको बोल या कामका जामा पहनानेकी कोशिश ही अुसकी ताकतको सीमित कर देती है। अैसा कौन है जो अपने विचारको शब्द या कार्यमे पूरी तरह प्रकट करनेमे कामयाब हुआ हो?"

आगे चलकर गाधीजीने कहा "आप यह पूछ सकते है कि अगर अैसा है, तो फिर आदमी हमेशाके लिअे मौन ही क्यो न ले ले? अुसूलकी दृष्टिसे तो यह सभव है, लेकिन जिन शर्तोंके मुताबिक मौन विचार पूरी तरह क्रियाकी जगह ले सकते है, अुन शर्तोंको पूरा करना बहुत मुश्किल है। मै खुद अपने विचारो पर अिस तरहका पूरा-पूरा काबू पा लेनेका कोअी दावा नही कर सकता। मै अपने मनसे बेमतलब और बेकारके खयालोको पूरी तरह दूर नही रख सकता। अिस हालतको पाने या अिस तक पहुचनेके लिअे तो अनन्त धीरज, जागृति और तपश्चर्याकी जरूरत है।

"कल जब मैने आपसे यह कहा था कि रामनामकी शक्तिका कोअी पार नही है, तब मै किसी आलकारिक भाषामे नही बोल रहा था, बल्कि सचमुच यही कहना भी चाहता था। मगर अिस चीजको महसूस करनेके लिए बिलकुल शुद्ध और पवित्र हृदयसे रामनामका निकलना जरूरी है। मै खुद अिस हालतको पानेकी कोशिशमे लगा हुआ हू। मेरे दिलमे तो अिसकी अेक तसवीर खिच गई है, लेकिन मै अिसे पूरी तरह अमलमे [ ६९ ] नही ला सका हू। जब वह हालत पैदा हो जायगी, तब तो रामनाम रटना भी जरूरी न रह जायगा।[१]

"मुझे अुम्मीद है कि मेरी गैरहाजिरीमे भी आप अपने घरोमे अलग-अलग और अेक साथ बैठकर रामनाम लेते रहेगे। सबके साथ मिलकर, सामूहिक रूपमे, प्रार्थना करनेका रहस्य यह है कि अुसका अेक-दूसरे पर जो शान्त प्रभाव पडता है, वह आध्यात्मिक अुन्नतिकी राहमे मददगार हो सकता है।"

––नअी दिल्ली, २६-५-'४६

रामनाम जैसा कोअी जादू नहीं

आजकी प्रार्थना-सभामे गाधीजीने कहा "रामनाम सिर्फ कुछ खास आदमियोके लिअे ही नहीं है, वह सबके लिअे है। जो रामका नाम लेता है, वह अपने लिअे अेक भारी खजाना जमा करता जाता है। और यह तो अेक अैसा खजाना है, जो कभी खूटता ही नही। जितना अिसमे से निकालो, अुतना बढता ही जाता है। अिसका अन्त ही नहीं है। और जैसा कि अुपनिषद् कहता है 'पूर्णमे से पूर्ण निकालो, तो पूर्ण ही बाकी रहता है', वैसे ही रामनाम तमाम बीमारियोका अेक शर्तिया अिलाज है, फिर चाहे वे शारीरिक हो, मानसिक हो, या आध्यात्मिक हो।

"लेकिन शर्त यह है कि रामनाम दिलसे निकले। क्या बुरे विचार आपके मनमे आते है? क्या काम या लोभ आपको सताते है? अगर अैसा है तो रामनाम जैसा कोअी जादू नही" और अुन्होने अपना मतलब अेक मिसाल देकर समझाया "फर्ज कीजिये कि आपके मनमे यह लालच पैदा होता है कि बगैर मेहनत किये, बेईमानीके तरीकेसे, आप लाखो रुपये कमा लें। लेकिन अगर आपको रामनाम पर श्रद्धा है, तो आप सोचेगे कि अपने बीबी-बच्चोके लिअे आप अैसी दौलत क्यो अिकट्ठी करे जिसे वे शायद अुडा दे? अच्छे चाल-चलन और अच्छी तालीम और ट्रेनिगके रूपमे अुनके [ ७० ] लिअे अैसी विरासत क्यो न छोड जाय, जिससे वे अीमानदारी और मेहनतके साथ अपनी रोटी कमा सके? आप यह सब सोचते तो है, लेकिन कर नही पाते। मगर रामनामका निरतर जप चलता रहे, तो अेक दिन वह आपके कण्ठसे हृदय तक अुतर आयेगा, और रामबाण अुपाय साबित होगा। वह आपके सब भ्रम मिटा देगा, आपके झूठे मोह और अज्ञानको छुडा देगा। तब आप समझ जायगे कि आप कितने पागल थे, जो अपने बाल-बच्चोके लिअे करोडोकी अिच्छा करते थे, बजाय अिसके कि अुन्हे रामनामका वह खजाना देते, जिसकी कीमत कोअी पा नही सकता, जो हमे भटकने नही देता, जो मुक्तिदाता है। और आप खुशीसे फूले नही समायेगे। आप अपने बाल-बच्चोसे और अपनी पत्नीसे कहेगे 'मै करोडो कमाने गया था, मगर वह कमाना तो भूल गया। दूसरे करोड लाया हू।' वे पूछेगे कहा है वह हीरा, जरा देखे तो!' जवाबमे आपकी आखे हसेगी, मुह हसेगा और धीरेसे आप जवाब देगे 'जो करोडोका पति है, अुसे हृदयमे रखकर लाया हू। तुम भी चैनसे रहोगे, मै भी चैनसे रहूगा।"

––मसूरी, ८-६-'४६

सारी प्रार्थनाओका सार

शामकी प्रार्थनाके बादके अपने भाषणमे गाधीजीने कहा मै आशा करता हू कि आप अपने घरोमे सुबह-शाम नियमसे प्रार्थना करेंगे। अगर आप न चाहे तो आपके लिए संस्कृत श्लोक सीखना कोअी जरूरी नही। रामधुन ही काफी है। सारी प्रार्थनाओका सार यही है कि आप अपने दिलोमे अीश्वरको बसा ले। अगर आप अिसमे सफल हो जाय, तो आपका, समाजका और सारी दुनियाका भला होगा।

––मसूरी, ८-६-'४६

सरासर धोखा

रामका नाम लेना और रावणका काम करना निकम्मीसे निकम्मी चीज है। हम अपने-आपको धोखा दे सकते है, सारी दुनियाको धोखा दे सकते है, लेकिन रामको धोखा नही दे सकते।

––नअी दिल्ली, १८-६-'४६

[ ७१ ]

अीश्वरके नामका अमृत

प्रार्थनामे गाये हुअे मीराबाईके भजनकी व्याख्या करते हुअे गाधीजीने कहा अिस भजनमे भक्त आत्मासे जी भरकर अीश्वर-नामका अमृत पीनेको कहता है। मामूली खान-पानसे आदमीका दिल अूब जाता है और जरूरतसे ज्यादा खाने-पीनेसे बीमारी होती है। लेकिन अीश्वर-नामके अमृतकी अैसी कोअी सीमा नही है। आदमी जितना ज्यादा अुसे पीता है, अुतनी ही अुसके लिअे अुसकी प्यास बढती है––लेकिन वह हृदयमे गहरा पैठ जाना चाहिये। जब अैसा होता है तब हमारा सारा भ्रम और आसक्ति, सारी वासना और द्वेष दूर हो जाते हैं। शर्त यही है कि हम अिस कोशिशमे लगे रहे और धीरज रखे। अैसे प्रयत्नका अनिवार्य नतीजा सफलता है।

––नअी दिल्ली, १८-६-'४६

श्रद्धाका चमत्कार

आजकी प्रार्थना-सभामे गाधीजीने कहा "प्रार्थनामे श्रद्धा रखनेवालेके लिअे निराशा नामकी कोअी चीज नही होनी चाहिअे, क्योकि वह जानता है कि समय अुस सर्वशक्तिमान भगवानके हाथमें है। वही समय पर सब कुछ करता है। अिसलिअे भक्त हमेशा श्रद्धा और धीरजके साथ किसी भी कामके होनेका रास्ता देखता है।"

गजेन्द्र-मोक्षकी कथा पर टीका करते हुअे अुन्होने कहा "अिस कथाका निचोड यह है कि परीक्षाके समय अीश्वर हमेशा अपने भक्तकी मदद करता है। शर्त यही है कि अुस पर मनुष्यकी जीती-जागती श्रद्धा हो और उसीका मनुष्य आसरा ले। श्रद्धाकी कसौटी यह है कि अपना फर्ज अदा करनेके बाद अुसका जो कुछ भी भला या बुरा नतीजा हो अुसे मनुष्य मान ले। सुख आये या दुख, अुसके लिअे दोनो बराबर होने चाहिए। जनक राजाके बारे मे कहा जाता है कि अेक बार अुन्हे किसीने आकर कहा 'महाराज! आपकी राजधानी मिथिला जल रही है।' अुन्होंने जवाब दिया 'मिथिलाया प्रदग्धाया न मे दह्यति कश्चन'–– मिथिलाको आग लगी है तो मुझे अुससे क्या? अुनके अिस धीरज और शान्तिका रहस्य यह था कि वे हमेशा जाग्रत रहते थे, हमेशा अपना फर्ज अदा करते थे। अिसलिअे बाकी सब कुछ वे अीश्वर पर छोड सकते थे। [ ७२ ]

"तो आप यह जान ले कि पहले तो अीश्वर अपने भक्तको मुसीबतोसे बचा ही लेता है, और अगर मुसीबत आ ही पडे, तो भक्त शान्तिसे अीश्वर की मरजीके सामने सिर झुकाकर खुशी-खुशी अुसे सह लेता है।"

––नअी दिल्ली, २०-६-'४६

रामनामका महत्त्व

आजकी प्रार्थना-सभामे गाधीजीने पूछा "क्या मै अेक नअी किस्मके अन्ध-विश्वासका प्रचार कर रहा हू? अीश्वर कोअी व्यक्ति नही। वह सब जगह मौजूद है और सर्वशक्तिमान है। जो भी कोअी अुसे अपने दिलमे जगह देता है, वह अुसी अजीब आशाओं और अुमगोसे भर जाता है, जिनकी ताकतका मुकाबला भाप और बिजलीकी ताकतसे नही किया जा सकता। वह ताकत तो अुससे भी ज्यादा सूक्ष्म होती है। रामनाम कोअी जादू-टोना नही है। वह तो अपने समूचे अर्थके साथ ही लिया जाना चाहिये। रामनाम गणितका एक अैसा सूत्र या फॉर्मूला है, जो थोडेमे बेहिसाब खोज और तजरबे (प्रयोग) को जाहिर कर देता है। सिर्फ मुहसे रामनाम रटनेसे कोई ताकत नही मिलती। ताकत पानेके लिअे यह जरूरी है कि सोच-समझकर नाम जपा जाय और जपकी शतोंका पालन करते हुअे जिन्दगी बिताअी जाय। अीश्वरका नाम लेनेके लिअे मनुष्यको अीश्वरमय या खुदाकी जिन्दगी बितानी चाहिये।"

––पूना, २-७-'४६

भीतरी और बाहरी सफाअी

आजकी प्रार्थना-सभा मे गाधीजी ने हरिजन-बस्तीके आसपासकी गन्दगीका ज़िक्र किया, जिसमे वे रहते थे। अुन्होने कहा "यहा मैं अेक ओवरसीयरके मकानमे रहता हू। मेरी समझमे नही आता कि क्यो ये ओवरसीयर और यहाकी सफाअी का अिन्तजाम करनेवाले यानी म्युनिसिपैलिटी और पी॰ डब्ल्यु॰ डी॰ के लोग अिस सारी गन्दगीको बरदाश्त करते है। मेरे यहा आने और रहनेसे फायदा ही क्या, अगर मैं अिस जगह को साफ और स्वास्थ्यप्रद बनानेके लिअे अुन्हे समझा न सकू? [ ७३ ]है। लेकिन मेरा यह भी विश्वास है कि रामनाम ही सारी बीमारियोका सबसे बड़ा अिलाज है। अिसलिए वह सारे अिलाजोसे अूपर है। चारो तरफसे मुझे घेरनेवाली आग की लपटोके बीच तो भगवानमे जीती-जागती श्रद्धाकी मुझे सबसे बड़ी जरूरत है। वही लोगोको इस आगको बुझानेकी शक्ति दे सकता है। अगर भगवानको मुझसे काम लेना होगा, तो वह मुझे जिन्दा रखेगा, वर्ना मुझे अपने पास बुला लेगा।

"आपने अभी जो भजन सुना है, अुसमे कविने मनुष्यको कभी रामनाम न भूलनेका उपदेश दिया है। भगवान ही मनुष्यका एक आसरा है। अिसलिअे आजके सकटमे मै अपने-आपको पूरी तरह भगवानके भरोसे छोड़ देना चाहता हूँ और शरीर की बीमारीके लिअे किसी तरहकी डॉक्टरी मदद नही लेना चाहता।"

––नअी दिल्ली, १८-१०-४७

४२

रोजके विचार

बीमारी मात्र मनुष्यके लिअे शरमकी बात होनी चाहिये। बीमारी किसी भी दोषकी सूचक है। जिसका तन और मन सर्वथा स्वस्थ है, अुसे बीमारी होनी ही नही चाहिये।

––सेवाग्राम, २६-१२-'४४

विकारी विचार भी बीमारीकी निशानी है। अिसलिअे हम सब विकारी विचारसे बचते रहे।

––सेवाग्राम, २७-१२-'४४

विकारी विचारसे बचनेका एक अमोघ अुपाय रामनाम है। नाम कंठसे ही नही, किन्तु हृदय से निकलना चाहिये।

––सेवाग्राम, २८-१२-'४४

व्याधि अनेक है, वैद्य अनेक है, अुपचार भी अनेक है। अगर सारी व्याधिको अेक ही माने और उसका मिटानेहारा वैद्य अेक राम ही है अैसा समझे, तो हम बहुत-सी झंझटोसे बच जाय।

––सेवाग्राम, २९-१२-'४४

  1. मै अपने जीवनमे अैसे समयकी जरूर आशा करता हू, जब रामनामका जप भी अेक रुकावट हो जायगा। जब मै यह समझ लूगा कि राम वाणीसे परे है, तब मुझे अुसका नाम दोहरानेकी जरूरत नही रह जायगी।
    ––यग अिंडिया, १४-८-'२४