रामनाम/४५

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[ ७३ ]है। लेकिन मेरा यह भी विश्वास है कि रामनाम ही सारी बीमारियोका सबसे बड़ा अिलाज है। अिसलिए वह सारे अिलाजोसे अूपर है। चारो तरफसे मुझे घेरनेवाली आग की लपटोके बीच तो भगवानमे जीती-जागती श्रद्धाकी मुझे सबसे बड़ी जरूरत है। वही लोगोको इस आगको बुझानेकी शक्ति दे सकता है। अगर भगवानको मुझसे काम लेना होगा, तो वह मुझे जिन्दा रखेगा, वर्ना मुझे अपने पास बुला लेगा।

"आपने अभी जो भजन सुना है, अुसमे कविने मनुष्यको कभी रामनाम न भूलनेका उपदेश दिया है। भगवान ही मनुष्यका एक आसरा है। अिसलिअे आजके सकटमे मै अपने-आपको पूरी तरह भगवानके भरोसे छोड़ देना चाहता हूँ और शरीर की बीमारीके लिअे किसी तरहकी डॉक्टरी मदद नही लेना चाहता।"

––नअी दिल्ली, १८-१०-४७

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रोजके विचार

बीमारी मात्र मनुष्यके लिअे शरमकी बात होनी चाहिये। बीमारी किसी भी दोषकी सूचक है। जिसका तन और मन सर्वथा स्वस्थ है, अुसे बीमारी होनी ही नही चाहिये।

––सेवाग्राम, २६-१२-'४४

विकारी विचार भी बीमारीकी निशानी है। अिसलिअे हम सब विकारी विचारसे बचते रहे।

––सेवाग्राम, २७-१२-'४४

विकारी विचारसे बचनेका एक अमोघ अुपाय रामनाम है। नाम कंठसे ही नही, किन्तु हृदय से निकलना चाहिये।

––सेवाग्राम, २८-१२-'४४

व्याधि अनेक है, वैद्य अनेक है, अुपचार भी अनेक है। अगर सारी व्याधिको अेक ही माने और उसका मिटानेहारा वैद्य अेक राम ही है अैसा समझे, तो हम बहुत-सी झंझटोसे बच जाय।

––सेवाग्राम, २९-१२-'४४

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आश्चर्य है कि वैद्य मरते है, डॉक्टर मरते है, फिर भी अुनके पीछे हम भटकते है। लेकिन जो राम मरता नहीं है, हमेशा जिन्दा रहता है और अचूक वैद्य है, अुसे हम भूल जाते है।

––सेवाग्राम, ३०-१२-'४४

इससे भी ज्यादा आश्चर्य यह है कि हम जानते है कि हम भी मरनेवाले तो है ही, बहुत करे तो वैद्यादिकी दवासे शायद हम थोड़े दिन और काट सकते है और अिसलिअे ख्वार होते है।

––सेवाग्राम, ३१-१२-'४४

इसी तरह बूढ़े, बच्चे, जवान, धनिक, गरीब, सबको मरते हुअे पाते है, तो भी हम संतोषसे बैठना नही चाहते और थोड़े दिन जीनेके लिअे रामको छोड़ सब प्रयत्न करते है।

––सेवाग्राम, १-१-'४५

कैसा अच्छा हो कि अितना समझकर हम रामके भरोसे रहकर जो भी व्याधि आवे, अुसे बरदाश्त करे और अपना जीवन आनन्दमय बनाकर व्यतीत करे!

––सेवाग्राम, २-१-'४५

अगर धार्मिक माना जानेवाला मनुष्य रोगसे दुखी हो, तो समझना चाहिअे कि उसमे किसी-न-किसी चीज की कमी है।

––सेवाग्राम, २२-४-'४५

अगर लाख प्रयत्न करने पर भी मनुष्यका मन अपवित्र रहे, तो रामनाम ही उसका अेकमात्र आधार होना चाहिये।

––मद्रासके नजदीक पहुचते हुअे, २१-१-'४६

मै जितना ज्यादा विचार करता हूँ, अुतना ही ज्यादा यह महसूस करता हूँ कि ज्ञानके साथ हृदयसे लिया हुआ रामनाम सारी बीमारियोकी रामबाण दवा है।

––अुरुळी, २२-३-'४६

आसक्ति, घृणा वगैरा भी रोग है और वे शारीरिक रोगोसे ज्यादा बुरे है। रामनामके सिवा अुनका कोअी इलाज नही है।

––उरुळी, २३-३-'४६

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मनकी गन्दगी शरीरकी गन्दगीसे ज्यादा खतरनाक है, बाहरी गन्दगी आखिरकार भीतरी गन्दगीकी ही निशानी है।

––उरुळी, २४-३-'४६

अीश्वरकी शरणमे जानेसे किसीको जो आनन्द और सुख मिलता है, अुसका कौन वर्णन कर सकता है?

––उरुळी, २५-३-'४६

रामनाम अुन्हीकी मदद करता है, जो अुसे जपनेकी शर्ते पूरी करते है।

––नअी दिल्ली, ८-४-'४६

रामनाम जपके साथ-साथ अगर रामके योग्य सेवा न की जाय, तो वह व्यर्थ जाता है।

––नअी दिल्ली, २१-४-'४६

बीमारीसे जितनी मौते नही होती, अुससे ज्यादा बीमारीके डरसे हो जाती है।

––शिमला, ७-५-'४६

तीन तरहके रोगोके लिअे रामनाम ही यकीनी इलाज है।

––नअी दिल्ली, २४-५-'४६

जो रामनामका आसरा लेता है, अुसकी सारी अिच्छाअे पूरी होती हैं।

––नअी दिल्ली, २५-५-'४६

अगर कोअी रामनामका अमृत पीना चाहता है, तो यह जरूरी है कि वह काम, क्रोध वगैराको अपने पास से भगा दे।

––नअी दिल्ली, २०-६-'४६

जब सब कुछ अच्छा होता है, तब तो सब कोअी अीश्वरका नाम लेते ही है, लेकिन सच्चा भक्त तो वही है, जो सब कुछ बिगड़ जाने पर भी अीश्वरको याद करता है।

––बम्बअी, ६-७-'४६

रामनामका रसायन आत्माको आनन्द देता है और शरीरके रोग मिटाता है।

––पूना, ९-७-'४६