विकिस्रोत:आज का पाठ-२५ अक्टूबर २०२०
अकबर महान प्रेमचंद के पन्द्रह महापुरुषों के जीवन-चरितों का संग्रह है जिसका पहला संस्करण १९३९ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।
"उसी तरह तारीख ५ रजब सन् ५४४ हिज्री (१४ अक्तूबर १५४२ ई॰) रविवार की रात्रि में उस मंगल नक्षत्र का उदय हुआ जो अन्त में दुनिया पर सुरज बनकर चमका।...
राज्य-प्रबन्ध की उत्तमता इन्हीं दो-चार बातों पर अवलंबित होती है---वैयक्तिक स्वाधीनता, शान्ति और व्यवस्था, करों का नरम होना और बँधी दर से लिया जाना, रास्तों का अच्छी हालत में रहना आदि। और इस दृष्टि से अकबर के राज्य-काल पर विचार किया जाये तो वह किसी से पीछे न दिखाई दे। वैयक्तिक स्वाधीनता की तो यह स्थिति थी कि हर आदमी को अख्तियार था कि जो धर्मं चाहे स्वीकार करे। इस विषय में यहाँ तक व्यवस्था थी कि कोई हिन्दू बालक बचपन में मुसलमान हो जाय, बालिग़ होने पर अपने पैतृक धर्म को पुनः गृहण कर सकता था। और कोई हिन्दू स्त्री किसी मुसलमान के घर में पाई जाय, तो अपने वारिसों के पास पहुँचाई जाय।...
आखिरी उम्र में कपूत बेटों ने इस देश-भक्त बादशाह को बहुत-से दगा़ दिये और इसी दुःख मैं वह २० जमादो-उल-आखिर (:: सितम्बर सन् १६०५ ई०) को इस नाशवान् जगत्, को छोड़कर परलोक सिधारा और सिकन्दर के शानदार मक़बरे में अपने उज्ज्वल कीर्ति-कलाप का अमर स्मारक छोड़कर, दफन हुआ।..."(पूरा पढ़ें)