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प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के लमही ग्राम में जन्मे प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था। आरंभ में वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे। पहले कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ (१९०७) के अंगरेज सरकार द्वारा जब्त किए जाने तथा लिखने पर प्रतिबंध लगाने के बाद वे प्रेमचंद के नए नाम से लिखने लगे। सेवासदन (१९१८) उनका हिंदी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था। इसकी बेहद लोकप्रियता ने प्रेमचंद को हिंदी का कथाकार बना दिया। हालाँकि प्रायः उनकी सभी रचनाएं हिंदी और उर्दू दोनों में प्रकाशित होती रहीं। उनका अंतिम पूर्ण उपन्यास गोदान (१९३६) किसान जीवन पर लिखी अद्वितीय रचना है। प्रेमचंद ने लगभग तीन सौ कहानियां भी लिखीं जिनमें उनके रचना काल का सामाजिक सांस्कृतिक तथा राजनीतिक इतिहास सुरक्षित हो गया है। उन्होंने 'जागरण' नामक समाचार पत्र तथा 'हंस' नामक मासिक साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया था। उन्होंने सरस्वति प्रेस भी चलाया था। वे भारत में स्थापित प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम सभापति बनाए गए थे। उनके रचनात्मक योगदान के कारण ही १९१८ से १९३६ तक के हिंदी कहानी एवं उपन्यास के कालखंड को प्रेमचंद युग कहा जाता है।
13429Q174152प्रेमचंदप्रेमचंदप्रेमचंद
प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के लमही ग्राम में जन्मे प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था। आरंभ में वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे। पहले कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ (१९०७) के अंगरेज सरकार द्वारा जब्त किए जाने तथा लिखने पर प्रतिबंध लगाने के बाद वे प्रेमचंद के नए नाम से लिखने लगे। सेवासदन (१९१८) उनका हिंदी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था। इसकी बेहद लोकप्रियता ने प्रेमचंद को हिंदी का कथाकार बना दिया। हालाँकि प्रायः उनकी सभी रचनाएं हिंदी और उर्दू दोनों में प्रकाशित होती रहीं। उनका अंतिम पूर्ण उपन्यास गोदान (१९३६) किसान जीवन पर लिखी अद्वितीय रचना है। प्रेमचंद ने लगभग तीन सौ कहानियां भी लिखीं जिनमें उनके रचना काल का सामाजिक सांस्कृतिक तथा राजनीतिक इतिहास सुरक्षित हो गया है। उन्होंने 'जागरण' नामक समाचार पत्र तथा 'हंस' नामक मासिक साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया था। उन्होंने सरस्वति प्रेस भी चलाया था। वे भारत में स्थापित प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम सभापति बनाए गए थे। उनके रचनात्मक योगदान के कारण ही १९१८ से १९३६ तक के हिंदी कहानी एवं उपन्यास के कालखंड को प्रेमचंद युग कहा जाता है।