विकिस्रोत:आज का पाठ/१३ मई

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सर्वनाम कामताप्रसाद गुरु द्वारा रचित हिंदी व्याकरण का एक अंश है जिसका प्रकाशन १९४३ ई॰ में इंडियन प्रेस, लिमिटेड "प्रयाग" द्वारा किया गया था।


"सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते हैं जो पूर्वापर संबंध से किसी भी संज्ञा के बदले उपयोग में आता है; मैं (बोलने-वाला), तू (सुननेवाला ), यह (निकटवर्ती वस्तु), वह (दूरवर्ती वस्तु), इत्यादि।
हिंदी के प्रायः सभी वैयाकरण सर्वनाम को संज्ञा का एक भेद मानते हैं। संस्कृत में "सर्व" (प्रातिपदिक) के समान जिन नामों (संज्ञाओं) का रूपांतर होता है उनका एक अलग वर्ग मानकर उसका नाम 'सर्वनाम' रक्खा गया है। 'सर्वनाम' शब्द एक और अर्थ में भी आता है। वह यह है कि सर्व (सब) नामों (सज्ञाओं) के बदले में जो शब्द आता है उसे सर्वनाम कहते हैं। हिदी मे 'सर्वनाम' शब्द से यही (पिछला) अर्थ लिया जाता है और इसीके अनुसार वैयाकरण सर्वनाम को संज्ञा का एक भेद मानते हैं।..."(पूरा पढ़ें)