विकिस्रोत:आज का पाठ/१९ जनवरी
राणा प्रताप प्रेमचंद द्वारा रचित १५ महापुरुषों के जीवन-चरित संग्रह कलम, तलवार और त्याग का एक अध्याय है। इसका पहला संस्करण १९३९ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।
"राणा की टकटकी दीवार की ओर लगी हुई थी और कोई खयाल उसे बेचैन करता हुआ मालूम होता था। एक सरदार ने कहा—महाराज, राम नाम लीजिए। राणा ने मृत्यु-यन्त्रणा से कराहकर कहा—'मेरी आत्मा को तब चैन होगा कि तुम लोग अपनी-अपनी तलवारें हाथ में लेकर कसम खाओ कि हमारा यह प्यारा देश तुर्कों के कब्जे में न जायगा। तुम्हारी रगों में जब तक एक बूँद भी रक्त रहेगा, तुम उसे तुर्कों से बचाते रहोगे। और बेटा अमरसिंह, तुमसे विशेष विनती है कि अपने बाप दादों के नाम पर धब्बा न लगाना और स्वाधीनता को सदा प्राण से अधिक प्रिय मानते रहना। मुझे डर है कि कहीं विलासिता और सुख की कामना तुम्हारे हृदयों को अपने वश में न कर ले और तुम मेवाड़ की उस स्वाधीनता को हाथ से खो दो, जिसके लिए मेवाड़ के वीरों ने अपना रक्त बहाया।' संपूर्ण उपस्थित सरदारों ने एक स्वर से शपथ की कि जब तक हमारे दम में दम है, हम मेवाड़ की स्वाधीनता को कुदृष्टि से बचाते रहेंगे। प्रताप को इतमीनान हो गया और सरदारों को रोता-बिलखता छोड़ उसकी आत्मा ने पार्थिव चोले को त्याग दिया। मानो मौत ने उसे अपने सरदारों से यह कसम लेने की मुहलत दे रखी थी।..."(पूरा पढ़ें)