विकिस्रोत:आज का पाठ/२६ अगस्त
साबरमती आश्रम के दौरे के नोट्स कार्ल मालामुद द्वारा लिखे गए कोड स्वराज का एक अंश है जो प्रसंगवश मदर टेरेसा के व्यक्तित्व का परिचय कराता है।
"मानव हमें रात के खाने के लिए ताज होटल के जापानी रेस्तरां में ले गए। जैसे ही हमने ‘मात्सूतेक (Matsutake) सूप पिया और ‘सुशी' खाया, यकायक ही मदर टेरेसा के विषय पर बात आ गई।
मानव ने टिप्पणी की "ओह! उनमें तो कुछ बात थी!" मैंने पूछा कि क्या वह उनसे मिले थे। मानव मुस्कुराए, और मुझे बताया कि मदर टेरेसा ने उसके नामकरण समारोह की अध्यक्षता की थी। मैंने पूछा कि क्या वह कैथोलिक हैं, और वे हंसने लगे और कहा नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, वह मेरे परिवार की बेहद पुरानी दोस्त थीं। उसने अपना बटुआ निकाला और एक मुस्कुराती हुई मदर टेरेसा के साथ एक बच्चे के रूप में खुद की तस्वीर दिखाई।
मैं बेहद प्रभावित हुआ। फिर सैम ने कहा "हाँ, वे एक अनवरत काम करने वाली महिला थी। मुझे याद है वह एक बार, प्लेन पर मेरे पास आईं, और कहा सैम आपको यह पढ़ना चाहिये", और उन्होंने सैम को एक कार्ड दिया जिसपर बाइबल के कुछ शब्द लिखे हुए थे। उन्होंने ऐसा कई बार बहुत लोगों के साथ किया है, सैम ने कहा। उनके पास आज भी वह कार्ड है।
मैंने टिप्पणी की थी कि यह वास्तव में काफी उल्लेखनीय है, यहां हम चार लोग डिनर कर रहे थे और उनमें से दो लोग मदर टेरेसा को जानते थे। सैम और मानव ने हंसना शुरू कर दिया। दिनेश कोलकाता से सांसद हैं, जहां मदर टेरेसा का मुख्यालय था। दिनेश ने मुस्कुराते हुए समझाया कि वह और उनकी पत्नी अपनी छोटी कार में पूरे शहर में मदर टेरेसा के साथ घूमा करते थे। वह सामने की सीट पर बैठी होती थी, जो दिनेश और उनकी पत्नी को ड्राइव करने और कहाँ ड्राइव करना है, ये निर्देश देती थीं। जब वह नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने के बाद वापस आ गई, तो दिनेश ने उनके साथ दिल्ली से कोलकाता तक की यात्रा की और फिर उन्हें उनके घर तक छोड़ने गए। दिनेश ने टिप्पणी करते हुए कहा, "उनके पास अत्यंत दृढ़ इच्छा शक्ति थी"।
डिनर पर मौजूद चार लोगों में से तीन लोग मदर टेरेसा को व्यक्तिगत रूप से जानते थे। इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ। भारत से मुझे बहुत कुछ सीखना है। इसके चलते इस सत्याग्रह अभियान की संभावित सफलता पर मेरी आशाएं नवीकृत हुईं। अमेरिका और यूरोप के कानूनी आक्रमण के तहत आई घनघोर निराशा के अंधकार में आशा की किरण दिखाई दी, और भारत में मुझे निराशा के सुरंग के अंत में प्रकाश दिख रहा था। भारत में शायद लोग इस बात को सुने, यह सोंच कर मैंने भारत बार बार आने का संकल्प लिया।..."(पूरा पढ़ें)