विकिस्रोत:आज का पाठ/२९ जुलाई
उत्तर-काल/आलम अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।
"आलम रसखानके समानही बड़े ही सरसहृदय कवि थे । कहाजाता है कि ये ब्राह्मण कुल के बालक थे। परंतु प्रेम के फंदे में पड़ कर अपने धर्म को तिलांजली देदी थी। शेख नामक एक मुसल्मान स्त्री सरसहृदया कवि थी । उसके रस से ये ऐसे सिक्त हुये कि अपने धर्म को भी उसमें [ ३६५ ]डुबो दिया । अच्छा होता यदि जैसे मनमोहन की ओर रसखान खिँच गये उसी प्रकार वे शेख को भी उनकी ओर खींच लाते। परंतु उसने ऐसी मोहनी डाली कि वे ही उसकी ओर खिंच गये। जो कुछ हो लेकिन स्त्री- पुरुष दोनों की ब्रजभाषा की रचना ऐसी मधुर और सरस है जो मधु-वर्षण करती ही रहती है । ब्रजभाषा-देवी के चरणों पर इस युगल जोड़ी को कान्त कुसुमावलि अर्पण करते देख कर हम उस वेदना को भूल जाते हैं जो उनके प्रमोन्माद से किसी स्वधर्मानुरागी जन को हो सकती है। इन दोनों में वृन्दावन विहारिणी युगल मूर्ति के गुणगान की प्रवृत्ति देखी जाती है।..."(पूरा पढ़ें)