विकिस्रोत:आज का पाठ/५ सितम्बर

विकिस्रोत से

Download this featured text as an EPUB file. Download this featured text as a RTF file. Download this featured text as a PDF. Download this featured text as a MOBI file. Grab a download!

हाई स्कूलमें

मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग का एक अध्याय है। इस पुस्तक का प्रकाशन नई दिल्ली के सस्ता साहित्य मंडल द्वारा १९४८ ई. में किया गया था।


"संस्कृत मुझे रेखागणितसे भी अधिक मुश्किल मालूम पड़ी। रेखागणितमें तो रटनेकी कोई बात न थी, परंतु संस्कृतमें, मेरी समझसे, सब रटना ही रटना था। यह विषय भी चौथी कक्षासे शुरू होता था। आखिर छठी कक्षामें जाकर मेरा दिल बैठ गया। संस्कृत-शिक्षक बड़े सख्त आदमी थे। विद्यार्थियोंको बहुतेरा पढ़ा देनेका लोभ उन्हें रहा करता। संस्कृत-वर्ग और फारसी-वर्ग में एक प्रकार की प्रतिस्पर्धा रहती। फारसीके मौलवी साहब नरम आदमी थे। विद्यार्थी लोग आपसमें बातें करते कि फारसी बड़ी सरल हैं, और मौलवी साहब भी भले आदमी हैं। विद्यार्थी जितना याद करता है, उतनेही पर वह निभा लेते हैं। सहज होनेकी बातसे मैं भी ललचाया और एक दिन फारसीके दरजेमें जाकर बैठा। संस्कृत शिक्षकको इससे बड़ा दु:ख हुआ। उन्होंने मुझे बुलाया-"यह तो सोचो कि तुम किसके लड़के हो? अपने धर्मकी भाषा तुम नहीं पढ़ना चाहते? तुमको जो कठिनाई हो सो मुझे बताओं। मैं तो सारे विद्यार्थियोंको अच्छी संस्कृत पढ़ाना चाहता हूं। आगे चलकर तो उसमें तुम्हें रसकी घूंटें मिलेंगी। अतः तुमको इस तरह निराश न होना चाहिए। तुम फिर मेरी कक्षामें आकर बैठो।" मैं शरमिंदा हुआ। उन शिक्षक के इस प्रेमकी अवहेलना न कर सका। आज मेरी अंतरात्मा कृष्णशंकर मास्टरका उपकार मानती है, क्योंकि जितनी संस्कृत मैंने उस समय पढ़ी थी, यदि उतनी भी न पढ़ा होता तो आज मैं संस्कृत-शास्त्रोंका जो आनंद ले रहा हूं वह न ले पाता। बल्कि मुझे तो इस बातका पछतावा रहता है कि मैं अधिक संस्कृत न पढ़ सका। क्योंकि आगे चलकर मैंने समझा कि किसी भी हिंदू-बालकको संस्कृतका अच्छा अध्ययन किये बिना न रहना चाहिए।..."(पूरा पढ़ें)