विकिस्रोत:निर्वाचित पुस्तक/दिसम्बर २०२३

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पंचतन्त्र विष्णुशर्मा द्वारा रचित लोक कथा संग्रह है। इसका प्रकाशन दिल्ली के युगान्तर प्रेस द्वारा १९५२ ई. में किया गया था।


"महिलारोप्य नाम के नगर में वर्धमान नाम का एक वणिक्-पुत्र रहता था। उसने धर्मयुक्त रीति से व्यापार में पर्याप्त धन पैदा किया था; किन्तु उतने से सन्तोष नहीं होता था; और भी अधिक धन कमाने की इच्छा थी। छः उपायों से ही धनोपार्जन किया जाता है—भिक्षा, राजसेवा, खेती, विद्या, सूद और व्यापार से। इनमें से व्यापार का साधन ही सर्वश्रेष्ठ है। व्यापार के भी अनेक प्रकार हैं। उनमें से सबसे अच्छा यही है कि परदेस से उत्तम वस्तुओं का संग्रह करके स्वदेश में उन्हें बेचा जाय। यही सोचकर वर्धमान ने अपने नगर से बाहिर जाने का संकल्प किया। मथुरा जाने वाले मार्ग के लिए उसने अपना रथ तैयार करवाया। रथ में दो सुन्दर, सुदृढ़ बैल लगवाए। उनके नाम थे—संजीवक और नन्दक।..."पूरा पढ़ें)