विकिस्रोत:निर्वाचित पुस्तक/मई २०२३
बिरजा राधाचरण गोस्वामी द्वारा बंगाली से अनूदित हिंदी उपन्यास है।इसका प्रकाशन काशी के भारतजीवन यन्त्रालय द्वारा १८९१ ई॰ में किया गया था।
"आषाढ़ मास है; समय एक पहर भर मात्र दिन शेष है, आकाश के उत्तर पूर्व कोण में एक खण्ड वृहत् नील मेघ सज रहा है, उसके इतस्ततः कई एक क्षुद्र वारिदखण्ड छूट रहे हैं। भगवान् कमलिनीपति ज्यों ज्यों अस्ताचल शिखरावलम्बी होने लगे, वृहत् वारिदखण्ड भी त्यों त्यों वृहत होने लगा। ग्राम में जैसे किसी के बलवान और क्षमताशाली होने से पांच जन उसके शरणागत हो जाते हैं उसी प्रकार क्षुद्रकाय वारिदखण्ड समूह भी देखते देखते वृहत वारिदखण्ड के संग मिल गये। सूर्य्य-किरणों से मेघ समूह का पश्चिम प्रान्त रक्तवर्ण हो गया। झड़ वृष्टि के आगमन का पूर्व लक्षण देखकर गगनविहारी बिहङ्गम धीरे २ निम्न गमन करने लगे। दो एक श्वेतकाय पक्षी वारिदखण्ड को विद्रूप करने के छल से उसके इधर उधर फिरने लगे। नदी और पतिव्रता नारी का एक ही स्वभाव है। जैसे स्वामी का मुख विषण्ण देखने से पत्नी [ ४ ]का बदनकमल भी विपन्न हो जाता है, वैसे ही वारिद खण्ड को कृष्णकाय देखकर पतितपावनी भागीरथी भी कृष्णकाय हो गईं।
इस समय एक नौका गङ्गा में होकर नवद्वीप से कलकत्ते के अभिमुख जाती थी। वह नौका आषाढ़ मास की गङ्गा के तीक्ष्ण स्रोत के वेग में पूर्व पर होकर द्रुत गमन से जा रही थी, आरोही लोग छप्पर के भीतर थे और अति असमय में आहार करके सो रहे थे। आकाश में जो निविड़ कृष्णवर्ण मेघ छा रहा है यह उनलोगों ने नहीं देखा..." (पूरा पढ़ें)