विकिस्रोत:पूर्ण पुस्तक/१३

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रंगभूमि १९३६ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित प्रेमचंद का मौलिक सामाजिक उपन्यास है, जिसके लिए उन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्रदान किया गया था।


"शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है। उसके बाहर की भूमि उनके मनोरञ्जन और विनोद की जगह है। उसके मध्य भाग में उनके लड़कों की पाठशालाएँ और उनके मुकद्दमेबाजी के अखाड़े होते हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीबों का गला घोंटा जाता है। शहर के आस-पास गरीबों की बस्तियाँ होती हैं। बनारस में पाँड़ेपुर ऐसी ही बस्ती है। वहाँ न शहरी दीपकों की ज्योति पहुँचती है, न शहरी छिड़काव के छींटे, न शहरी जल-स्रोतों का प्रवाह। सड़क के किनारे छोटे-छोटे बनियों और हलवाइयों की दुकानें हैं, और उनके पीछे कई इक्केवाले, गाड़ीवान, ग्वाले और मजदूर रहते हैं। दो-चार घर बिगड़े सफेदपोशों के भी हैं, जिन्हें उनकी हीनावस्था ने शहर से निर्वासित कर दिया है। इन्हीं में एक गरीब और अन्धा चमार रहता है, जिसे लोग सूरदास कहते हैं।"...(पूरा पढ़ें)