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विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/२८

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नव-निधि १९४८ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित प्रेमचंद के नौ भावपूर्ण कहानियों का एक संग्रह है। ये नौ कहानियाँ हैं –– राजा हरदौल, रानी सारन्धा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्निकुण्ड, जुगुनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता तथा पछतावा।


बुन्देलखण्ड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुन्देले हैं। इन बुन्देलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है। एक समय ओरछे के राजा जुझारसिंह थे। ये बड़े साहसी और बुद्धिमान् थे। शाहजहाँ उस समय दिल्ली के बादशाह थे। जब शाहजहाँ लोदी ने बलवा किया और वह शाही मुल्क को लूटता पाटता ओरछे की ओर आ निकला, तब राजा जुझारसिंह ने उससे मोरचा लिया। राजा के इस काम से गुणग्राही शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने तुरन्त ही राजा को दक्खिन का शासन-भार सौंपा। उस दिन ओरछे में बड़ा आनन्द मनाया गया। शाही दूत खिलअत और सनद लेकर राजा के पास आया। जुझारसिंह को बड़े-बड़े काम करने का अवसर मिला। सफ़र की तैयारियाँ होने लगी, तब राजा ने अपने छोटे भाई हरदौल सिंह को बुलाकर कहा-"भैया, मैं तो जाता हूँ। अब यह राज-पाट तुम्हारे सुपुर्द है। तुम भी इसे जी से प्यार करना। न्याय ही राजा का सबसे बड़ा सहायक है। न्याय की गढ़ी में कोई शत्रु नहीं घुस सकता, चाहे वह रावण की सेना या इन्द्र का बल लेकर आये। पर न्याय वही सच्चा है, जिसे प्रजा भी न्याय समझे। तुम्हारा काम केवल न्याय ही करना न होगा, बल्कि प्रजा को अपने न्याय का विश्वास भी दिलाना होगा। और मैं तुम्हें क्या समझाऊँ, तुम स्वयं समझदार हो।" (पूरा पढ़ें)