विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/३४

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कहानी खत्म हो गई चतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित कहानी संग्रह है। इसका प्रकाशन "राजपाल एण्ड सन्ज़", (दिल्ली) द्वारा १९६१ ई॰ में किया गया।


"चाय आने में देर हो रही थी। और मेरा मिज़ाज गर्म होता जा रहा था! आप तो जानते ही हैं, मैं इन्तज़ार का आदी नहीं। फिर, चाय का इन्तजार।
मेजर वर्मा ने यह बात भांप ली, उन्होंने एक हिट दिया। बोले-चौधरी, उस औरत का फिर क्या हुआ?
क्षण-भर के लिए चाय पर से मेरा ध्यान हट गया, एक सिहरन-सी सारे शरीर में दौड़ गई, जैसे बिजली का तार छू गया हो। मैंने चौंककर मेजर की ओर देखा। पर जवाब देते न बना, बात मुँह से न फूटी। एक अजीब-सी बेचैनी में महसूस करने लगा।
लेकिन मेजर वर्मा जैसे अपने प्रश्न का उत्तर लेने पर तुले हुए थे। वे एकटक मेरी ओर देख रहे थे। प्रश्न का मेरे ऊपर जो असर हुआ था, उसे मित्र-मण्डली ने भी भांप लिया। वे लोग अपनी गपशप में लगे थे, पर विंग कमांडर भारद्वाज ने हंसकर कहा-कौन औरत भई, उसमें हमारा भी शेअर है।
भारद्वाज की हंसी में न मैंने साथ दिया न मेजर वर्मा ने। वर्मा की उत्सुकता उनकी आंखों से प्रकट हो रही थी। मैं उनकी आंखों से आंख न मिला सका। आप ही मेरी आँखें नीचे को झुक गईं। मैंने धीरे से कहा-मर गई।
मेजर की छाती में जैसे किसीने घूसा मारा। उन्होंने एकदम कुर्सी से उछलकर कहा-अरे, कब?
'कल सुबह-मैंने धीरे से कहा।...(पूरा पढ़ें)