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विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/३५

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आँधी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एवं प्रयाग के लीडर-प्रेस द्वारा १९५५ ई॰ में प्रकाशित कहानी संग्रह है।


मधुआ

"आज सात दिन हो गये पीने की कौन कहे छूना तक नहीं! आज सातवाँ दिन है सरकार!
तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हरे कपड़े से महँक आ रही है।
वह, वह तो कई दिन हुए। सात दिन से ऊपर--कई दिन हुए-- अँधेरे में बोतल उड़ेलने लगा था। कपड़े पर गिर जाने से नशा भी न आया। और आपको कहने का क्या कहूँ सच मानिए। सात दिन --ठीक सात दिन से एक बूंद भी नहीं।
ठाकुर सरदारसिंह हँसने लगे। लखनऊ में लड़का पढ़ता था। ठाकुर साहब भी कभी-कभी वहीं आ जाते। उनको कहानी सुनने का चसका था। खोजने पर यही शराबी मिला। वह रात को दोपहर में कभी-कभी सबेरे भी आ जाता। अपनी लच्छेदार कहानी सुनाकर ठाकुर का मनोविनोद करता।
ठाकुर ने हँसते हुए कहा--तो आज पियोगे न! झूठ कैसे कहूँ। आज तो जितना मिलेगा सारा पिऊँगा। सात दिन चने-चबेने पर बिताये हैं किस लिए।
अद्भुत! सात दिन पेट काटकर आज अच्छा भोजन न करके तुम्हें पीने की सूझी है। यह भी
सरकार! मौज बहार की एक घड़ी एक लम्बे दुखपूर्ण जीवन से अच्छी है। उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिये जा सकते हैं।..."(पूरा पढ़ें)