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विदेशी विद्वान्

विकिस्रोत से
विदेशी विद्वान  (1927) 
महावीर प्रसाद द्विवेदी

इलाहाबाद: इंडियन प्रेस लिमिटेड, पृष्ठ आवरण-पृष्ठ से – विषय-सूची तक

 
विदेशी विद्वान्



लेखक

महावीरप्रसाद द्विवेदी





प्रकाशक

इंडियन प्रेस, लिमिटेड, प्रयाग

१९२७

संस्करण]
[मूल्य१)
 
Published by
K. Mittras
at The Indian Press, Ltd,
Allahabad.









Printed by

A. Bose,

at The Indian Press. Ltd.,

Bennrcs-Branch

मनुष्य की उन्नति, ख्याति और प्रतिष्ठा का एक-मात्र कारण उसके गुण होते हैं। गुणों का सम्बन्ध चाहे दान-धर्म्म से हो, चाहे परोपकार से हो, चाहे विद्वत्ता से हो, चाहे देश या समाज-सेवा से हो, उत्कर्ष का कारण होते वही हैं। गुणहीनों को प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त होती। गुण कहीं और किसी में भी क्यों न हों, वे सदा ही गृहणीय होते हैं―

गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्ग न च वयः

चाहे वे अपने ही देश के निवासी में हो, चाहे अन्य देश के निवासी में, उनको ग्रहण करना ही चाहिए। उनके अनुकरण से मनुष्य का सदा ही कल्याण होता है।

इस पुस्तक मे जिन ग्यारह जीवनचरितों का संग्रह है उनके नायक सभी विदेशी और सभी विद्वान् है या थे। उनमें से आठ ऐसे हैं जिनकी ख्याति का कारण उनकी अपूर्व विद्वत्ता ही है। यह नहीं कि उनसे और गुणों का सम्पर्क ही न हो। मतलब इतना ही है कि और गुणों की तुलना में उनकी विद्वत्ता ही विशेष प्रशंसनीय है। शेष तीन में से एक की प्रसिद्धि का कारण स्वजाति-सेवा और शिक्षा-प्रेम, दुसरे का व्यवसाय-नैपुण्य और तीसरे का नूतन-धर्म-स्थापना है। परन्तु इन गुणों को भी विद्वत्तामूलक ही समझना चाहिए। और विद्वान् कहीं का क्यों न हो वह सदा ही आदरणीय और उसका चरित सदा ही कीर्तनीय होता है।

इस चरितमाला के चार चरित ऐसे पुरुषों के हैं जिन्होंने भारत से हज़ारों कोस दूर योरप में जन्म लेकर, केवल विद्याभिरुचि की उच्च-प्रेरणा से, संस्कृत भाषा का अध्ययन किया और अनेक उपयोगी ग्रन्थों की रचना भी की। एक ने अरबी के सदृश क्लिष्ट भाषा का चूड़ान्त ज्ञान प्राप्त करके अरब के निवासी विद्वानों तक से साधुवाद प्राप्त किये। अलबरूनी ने तो बड़े-बड़े कष्ट उठाकर यहीं भारत में संस्कृत भाषा सीखी और वह अपनी भाषा में एक ऐसा ग्रन्थ लिखकर छोड़ गया जो अब तक बड़े ही महत्त्व का समझा जाता है।

जिनके चरित इस पुस्तक में निबद्ध हैं उनके गुण सर्वथा अनुकरणीय हैं। उनके पाठ से पाठक यदि कुछ भी न सीख सकें या कुछ भी न सीखना चाहें तो भी, आशा है, पढ़ने में ख़र्च हुए अपने समय को वे व्यर्थ गया न समझेंगे।

दौलतपुर, रायबरेली महावीरप्रसाद द्विवेदी
१६ सितम्बर १९२७
 

विषय-सूची

लेखाङ्क लेख-नाम पृष्ठ
कोपर्निकस, गैलीलियो और न्यूटन .........
हर्बर्ट स्पेंसर ......... १०
कर्नल आलकट ......... २८
डाक्टर जी° थीबो, पी-एच°डी°, सी° आई° ई° ......... ३४
मुग्धानलाचार्य्य ......... ३९
डाक्टर कीलहार्न ......... ६६
विलियम हार्स्ट ......... ७०
अलबरूनी ......... ७८
अध्यापक एडवर्ड हेनरी पामर ......... ८८
१० बुकर टी° वाशिंगटन ......... १०८
११ डाक्टर हर्मन जी° जैकोबी ......... १२७

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