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वेनिस का बाँका/चतुर्विंश परिच्छेद

विकिस्रोत से
वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ १४८ से – १५६ तक

 

चतुर्विंश परिच्छेद।

अबिलाइनो रोजाबिला का स्नेह और महाराज की निष्ठुरता को चुपचाप खड़ा देखता था, और उसकी आँखों में आँसू डबडबा रहे थे। रोजाबिला ने महाराज का हाथ दो बार चुम्बन कर कहा 'यदि आप उस पर दया नहीं करते तो मानों मुझ पर नहीं करते, जो दण्ड आप उसके लिये अवधारण कीजियेगा वह मेरे निमित्त पहले हो चुका, मैं अपने और अविलाइनो दोनों के लिये आपसे क्षमा और दया की याचना करती हूँ, वह न होगा तो मेरा जीना भी कठिन है, परमेश्वर के लिये पूज्य पितृव्य मेरा कहना मान लीजिये और उसे स्वतन्त्रता प्रदान कीजिये।

इतनी प्रार्थना करने पर भी महाराज ने स्पष्ट उत्तर दे दिया कि अविलोइनो बच नहीं सकता अवश्य फांसी पावेगा।

अबिलाइनो―क्यों महाशय यही सौजन्य है कि वह बेचारी आपके चरणों पर गिर कर रुदन करे और आप खड़े देखा करें, धिक्कार है ऐसी कठोरता पर, जावो बस ज्ञात हुआ कि तुम निरे जंगली हो, तुम कदापि रोजाबिला के साथ उतना मोह नहीं करते जितना कि तुमको करना उचित था, अब वह आपकी नहीं है मेरी है।'

यह कह उसने रोजाबिला को उठा कर अपनी छाती से लगाया और उसके अरुणाधरोंका चुम्बन करके कहा 'प्यारी रोजाबिला अब तुम मेरी हो चुकी; उहँ! क्या करूँ कुछ बश नहीं चलता बुरे भाग्य की क्या औषध है। हाय! कतिपय क्षण में अबिलाइनो का शिर धरातल पर रजपूरित लोटता होगा पर मुझे हर्ष इस बात का है कि तुम मुझसे उतना स्नेह करती हो जितना कि स्नेह के मार्ग की सीमा है, अब मुझे किसी बात का दुःख नहीं। अच्छा अब मुख्य कार्य को देखना चाहिये।

उसने रोजाबिला को जो मूर्छित हो रही थी कामिला की गोद- में बैठा दिया और आप आयतन में बीचों बीच खड़े होकर लोगों की ओर यों प्रवृत्त हुआ 'क्यों महाशयो आपलोगों का दृढ़ विचार है कि मेरा शिर कर्त्तन किया जाय? और अब मैं आपसे क्षमा और कृपा की आशा न रक्खूँ? बहुत उत्तम, जैसी आप लोगों को इच्छा हो कीजिये मुझे कुछ कथन की आवश्य- कता नहीं। परन्तु इससे प्रथम कि आप मेरे लिये कोई दण्ड निर्धारण करें मैं आप लोगों में से कतिपय व्यक्तियों का दण्ड निर्धारण करता हूँ, भली भांति एकाग्र चित्त होकर श्रवण कीजिये, आपलोग मुझको कुनारी का घातक, पेलो मानफ्रोन का नाशक, और लोमेस्लाइनो का बिनाशक, न समझते हैं, कहिये हाँ! अच्छा, पर आप उन लोगों को भी जानते हैं जिन्हों ने उनके विनाश करने के लिये मुझे सन्नद्ध किया था और मुझे सहस्रों मुद्रायें दी थीं। यह कह कर उसने सीटी बजाई जिसके साथ ही द्वार कपाट धड़से खुल गया। और पहरे के पदातियोंने भीतर घुस कर परोजी और उस के सहकारियों को दृढ़ पाश में बाँध लिया। अबिलाइनो। (भर्त्सनापूर्वक) 'देखो इनका संरक्षण भली भाँति करो, तुम लोगों को आदेश मिल चुका है। (समज्या के लोगों से) महाशयो! इन्ही दुष्टात्माओं के कारण वेनिस के तीन विख्यात महाजनों का जीवन समाप्त हुआ। (उनकी ओर संकेत करके) एक, दो, तीन, चार और हमारे पादरी महाशय पाँच। परोजी और उस के सहकारी उद्विग्न और व्यग्र खड़े थे मुख पर हवाइयाँ छूट रही थीं और किसी के मुख से आधी बात भी न निकलती थी और निकले क्यों कर कहावत है कि चोर का हृदय कितना और फिर ऐसे साक्षी को झूठा कहना अत्यन्त कठिन था। इस के अतिरिक्त उन्हें यह क्या आशा थी कि अकस्मात् परमेश्वरी कोप उन पर ऐसा हो जावेगा और इस प्रकार वह आयत्त हो जावेंगे। कहाँ वह परस्पर उत्तमो- त्तम संकेतों को कर रहे थे और कहाँ कठिन पाश में बद्ध हो गये और बिवशता ने उनको जकड़ दिया। ऐसी दशा में अच्छे २ लोगों की चेतना शक्ति नष्ट हो जाती है और वेतो अपराधी ही थे। अकेले उन्हीं की यह गति न थी बरन जितने लोग वहाँ विद्य- मान थे चकित और चमत्कृत से हो कर यह कौतुक देखते और एक दूसरे से पूछते थे परन्तु कोई उसके मुख्य भेद से अभिज्ञ न था। कुछ देर बाद जब पादरी महाशय की चेतना शक्ति कुछ ठीक हुई तो उन्हों ने कहा 'महोदय! यह व्यर्थ हम लोगों को लिये मरता है। भला हम लोगों को इन बातों से क्या संबंध है, महाराज यह सर्वथा कपट और छल है। अब इस ने यह सोचा है कि मैं तो डूबताही हूँ औरों को भी क्यों न निज साथी कर लूँ, ईश्वर का शपथ है कि यह सर्वथा बनावट और कलंक है।'

काण्टेराइनो। 'अपने जीवन में इस ने बहुतेरे लोगों का प्राण हरण किया है अब मरते समय भी दो चार को अपने साथ ले मरना चाहता है।' अविलाइनो। (डांटकर) 'बस चुप रहो! मैं तुम्हारी सम्पूर्ण युक्तियों से अभिज्ञ हूँ, वह तालिका भी देख चुका हूँ और जो कुछ तुम लोगों ने प्रबन्ध किया है मुझे सब ज्ञात है। इस समय मैं तुम से बातें कर रहा हूँ और वहाँ पुलीसवाले मेरी आज्ञा से उन महाशयों को जिनके भुज मूल पर स्वेत सूत्र (फीते) बँधे हैं और जिन्हों ने आज की रात वेनिस के सत्या- नाश करने की मंत्रणा की थी पकड़ रहे हैं, वस अब चुप रहो अस्वीकार करना व्यर्थ है।'

अंड्रियास―'अबिलाइनो परमेश्वर के लिये तनिक मुझे तो बतला कि इसके क्या अर्थ हैं।'

अविलाइनों―'कुछ नहीं केवल इतना कि वेनिस के सत्या- नाश और उसके शाशनकर्ता का प्राण हरण करने के लिये कुछ मनुष्यों ने एका किया था, अबिलाइनों ने अनुसंधान करके उसका पथ बन्द कर दिया, अर्थात् आपलोगों की इस अनुकंपा के बदले में कि अभी आप उसका शिरकर्त्तन करना चाहते थे उसने सबको मृत्यु के कठिन आघात से बचा दिया'॥

एक कर्मचारी―(अपराधियों से) 'क्यों महाशय आपलोगों पर ऐसा भारी दोषारोपण किया गया है और आपलोग मौन हैं॥'

अबिलाइनो―वे ऐसे मूर्ख नहीं हैं कि अस्वीकार करें, इस से लाभ ही क्या होगा, उन के साथी राजकीय कारा- गार में पृथक् पृथक् बद्ध हैं, आप वहाँ जाकर उन से पूछिये तो आपको इसकी सम्पूर्ण व्यवस्था ज्ञात हो जायगी। अब आप समझे होंगे कि मैंने इस आयतन के द्वार पर अबिलाइनो के पकड़ने के लिये प्रहरियों को नहीं सन्नद्ध किया बरन इन्हीं लोगों के लिये, तनिक अब आप अपनी कृतज्ञता और मेरे वर्ताव और कर्तव्य का विचार कीजिये, मैंने अपने प्राण को संकट में डालकर वेनिस को सत्यानाश होने से बचाया है। डाकुओं का वेश बदल कर उन लोगों की समज्यावों में प्रविष्ट हुआ, जिन्हों ने लोगों के वध कराने की वृत्ति ग्रहण की थी, आप लोगों के निमित्त मैंने सर्दगर्भ सब कुछ सहन किया, आपकी अहर्निशि रक्षा करता रहा, और वेनिस अथच उस के निवासियों को वि नष्ट होने से बचाया, और इस बड़ी सेवा सम्पादन करने पर भी मैं किसी पुरस्कार के योग्य न निश्चित किया गया। यह सब दुःख, क्लेश और संताप मैंने केवल रोजाबिला के लिये उठाया है फिर भी आप प्रतिज्ञा करके उस से फिरे जाते हैं। मैंने आप लोगों को मृत्यु के कर से छुड़ाया, आपकी स्त्रियों के पातिव्रत धर्म्म का संरक्षण किया, और आपके बालकों की रक्षा की इस पर भी आप मेरा शिर खण्डन किया चाहते हैं। तनिक इस तालिका को अवलोकन कीजिये और देखिये कि आप लोगों में से आज कितनों के प्राण का अपहरण होता, यदि अविलाइनो ने रोक न की होती। यह आप के सम्मुख अपराधी विद्यमान हैं जिन्हों ने आप के नाश करने का प्रयत्न किया था। प्रत्येक के मुख को नहीं देखते कि कैसी फिटकार बरस रही है। कोई भी अपने को निष्कलंक सिद्ध करने के लिये जिह्वा हिलाता है। कोई भी इस लांछन के असत्य प्रमाणित करने की चेष्टा करता है। परन्तु इसके अतिरिक्त मुझसे और प्रमाण लीजिये,। यह कहकर वह अपराधियों की ओर प्रवृत्त हुआ 'सुनो तुम लोगों में से जो व्यक्ति सत्य और तथ्यवचन कथन करेगा वह अवश्यमेव मुक्त हो जायगा। मैं शपथ करके कहता हूँ, मैं अवि- लाइनों बाँका,। यह सुन कर वह लोग चुप रहे परन्तु कुछ घड़ी बाद अकस्मात मिमो महाराज के चरणों पर गिर पड़ा और कहने लगा कि जो कुछ अबिलाइनों ने कथन किया है सत्य है'॥

परोजी प्रभृति―(असत्य है सर्बथा असत्य है'॥

अबिलाइनों―(भर्त्सना पूर्वक) चुप रहो, स्मरण रक्खो कि जो जिव्हा हिलाई तो अच्छा न होगा। (उच्चस्वर से) प्रकट हो! प्रकट हो! यही समय है'। उसने फिर सीटी बजाई, तत्काल द्वारकपाट खुल गया और महाराज के तीनों प्राचीन मित्र कोनारी लोमेलाइनो और मानफरोन आकर उपस्थित हुये। यह देख काण्टेराइनो ने कुक्षिप्रान्त से यमधार निकाल कर आत्मघात किया शेष चार अपराधियों को पदातिगण अपने साथ ले गये। महाराज ने जो अपने बिछुड़े हुये मित्रों को बहुत कालोपरान्त पाया तो दौड़ कर उनसे लिपट गये और प्रत्येक के गले लग कर बहुत ही रुदन किया। यह दशा अवलोकन कर अपर लोगों की आँखों में भी आँसू भर आया। नृपति महाशय को कदापि आशा न थी कि उन लोगों से स्वर्ग के अतिरिक्त फिर कभी समागम होगा। इसलिये उनको जीवित पाकर परमेश्वर को लाखो बार उन्होंने धन्यवाद प्रदान किया। इन चारों मनु- प्यों में बालापन ही से अत्यन्त प्रीति थी, और चिरकाल से अबिछिन्न मैत्री निर्वाहित थी, युवावस्था में बहुत काल पर्य्य- न्त एक द्वितीय के सहायक और सहकारी रह चुके थे, इस कारण वृद्धावस्था में वे एक दूसरे का सम्मान और भी अधिक करते थे॥

रोजाबिला अबिलाइनो के गले से लिपट कर रुदन कर रही थी और बार बार यही कहती थी 'तू अबिलाइनो प्राणहारक नहीं है। थोड़ी देर बाद महाराज उनके मित्र और दूसरे लोग अपने अपने स्थान पर बैठे और पहले उनके मुख से यही शब्द निकले 'धन्य अबिलाइनो धन्य क्यों न हो परमेश्वर तुझको चिरञ्जीवी करे, निस्सन्देह तूने हम लोगों के प्राण की रक्षा की। अब प्रत्येक व्यक्ति की जिव्हा पर अबिलाइनो की प्रशंसा के शब्द थे, धन्य धन्य के छर्रे चल रहे थे और सब उसके चिरञ्जीवी होने के लिये वर याचना करते थे। अहा! समय का भी अद्भुत ढङ्ग है, वही अबिलाइनो जो एक घण्टा प्रथम शिर काटे जाने और भाँति भाँति के क्लेश के साथ मारे जाने के योग्य था, अब सर्वजनों का मान्य और पूज्य बन गया,प्रत्येक को उस पर अभिमान था और प्रत्येक व्यक्ति उसको द्वितीय परमेश्वर समझता था। नृपति महाशय ने कुर्सी पर से उठ कर उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और अपनी जिह्वा से कथन किया 'अबिलाइनो तुमने हमलोगों का बड़ा भारी उपकार किया।' अबिलाइनो ने नृपति महाशय के कर-कमल का सत्कार पूर्वक चुम्बन किया और मन्द मुसकान से उत्तर दिया 'पृथ्वीनाथ मेरा नाम अबिलाइनो नहीं है और न फ्लोडोआर्डो है, मेरा नाम रुसाल्वो है और मैं नेपल्स का निवासी हूँ। मैंने अपना नाम केवल मोनाल्डस्चीके राजकुमार की शत्रुता के कारण बदल दिया था। परन्तु वह तो मर गया अब मुझको अपना नाम गुप्त रखना आव- श्यक नहीं॥

अंड्रियास―(अकुलाकर) मोनाल्डस्ची?।'

रुसाल्वो―'कुछ आपत्ति न कीजिये, यह सत्य है कि मोना- ल्डस्ची मेरे हाथ से मारा गया, परन्तु मैंने उसको छल से नहीं मारा वरन मेरा उसका देर तक सामना हुआ और कुछ घाव मुझको भी लगे। मरते समय उसको परमेश्वरका कुछ भय आया, उसने अपने हाथ से मुझ को निष्कलङ्क उन कलंकों के विषय में लिख दिया, जो उसने मुझ पर आरोपण किये थे, और यह भी बता दिया कि मैं किस प्रकार अपना पैतृक धन जो हृत हो गया है पुनः प्राप्त कर सकता हूँ। उसके अनुसार मैंने कार्य्य किया, और अब सम्पूर्ण नेपल्स को ज्ञात हो गया कि मोनाल्डस्चीने मेरे सत्यानाश होने और चौपट करने के लिये क्या क्या युक्तियाँ की थीं जिसके कारण मुझको वहाँ से वेश बदल कर भागना पड़ा। इसी बेश में मैं बहुत दिनों तक इतस्ततः मारा मारा फिरा और अन्त को भाग्य मुझे खींच कर वेनिस में लाया। उस समय मेरा स्वरूप इतना बदल गया था कि मुझको पकड़ जाने का तनिक भय न था, बरन यह आशंका थी कि ऐसा न हो कि मैं उपवास करते करते मर जाऊँ-परन्तु इस बीच ऐसा संयोग हुआ कि मुझसे बेनिस के डाकुओं से परस्पर हो गया, मैंने हर्ष से उनका सहवास स्वीकार किया। मेरी अभिलाषा यह थी कि पहले तो अवसर पाकर बेनिस से इस आपदा को निवारण करूँ, और दुसरे उनके द्वारा उनलोगों को भी पहचान लूँ जो डाकुओं से कार्य्य कराते हैं। मैंने इस बात में सिद्धिलाभ की अर्थात् डाकुओं के अधीश्वर को रोजा- बिला के सामने मारा। और शेष लोगों को पकड़वा दिया। उस समय बेनिस भर में मैं ही एक डाकू रह गया और प्रत्येक व्यक्ति को मेरे ही पास आना पड़ा। रस रीति से मुझे परोजी और उसके सहकारियों की अभिसन्धि का भेद ज्ञात हुआ और अब आप लोग भी उनसे अभिज्ञ हो गये। मैंने देखा कि वे लोग महाराज के तीनों मित्रों के प्राण अपहरण करना चाहते हैं, उन के समीप विश्वस्त बनने के लिये यह अवश्य था कि उनको किसी प्रकार विश्वास हो जाता कि तीनों व्यक्तियों का मैंने संहार किया। इस विषय में पूर्ण विचार करके मैंने एक बात निकाली और उस समय लोमेलाइनो से जाकर सम्पूर्ण समा- चारों को कहा। इस कार्य में वे ही मेरे सहकारी थे उन्होंने मुझको महाराज के सामने मित्र का पुत्र बनाकर उपस्थित किया। उन्होंने ही मुझको उत्तमोत्तम परामर्श दिये, उन्हींने मुझे राजकीय उपवनों की कुञ्चिकायें दीं, जिनमें महाराज और उनके मुख्य मित्रोंके अतिरिक्त कोई व्यक्ति जाने नहीं पाता था और जिनके द्वारा मैं प्रायः बच कर निकल जाता था। उन्हींने मुझे महाराज के प्रासादों के गुप्त मार्गों को दिखलाया जिन से मैं महाराज के मुख्य शयनागार में प्रविष्ट हो सकता था और जब समय उनके टलजाने का आया तो वह एकाकी आपही नहीं छिप बैठे बरन मानफरोन और कोनारी को भी इस बात पर आमादा किया। बारे परमेश्वरने यह दिवस् दिखाया कि सम्पूर्ण युक्तियाँ सफल हुईं; डाकुओं का नाम निशान मिट गया, उनके उत्तेजन दाता पकड़े गये और महाराज के तीनों मित्र जीवित और निर्विघ्न बचे। अब भी यदि आपलोग उचित समझते हों तो अबिलाइनों प्रस्तुत है चाहे उसका शिर काटिये चाहे उसे फाँसी दीजिये।'

सब लोग एक मुँह होकर―'हूँ हूँ शिर काटना? कोई तुम्हारे समान हो तो ले,॥

अंड्रियास―"धन्य! अबिलाइनों जो कार्य तुमने किया है ऐसा कार्य अल्प लोगों ने किया होगा, मुझे उस दिवस का तुमारा कथन स्मरण है जब तुमने कहा था 'महाराज! इस समय बेनिस में हम और तुम दोही बड़े ब्यक्ति हैं, परन्तु सच पूछो तो अविलाइनो तुम मुझसे कहीं बढ़ कर हो। मेरे पास रोजाविला से अधिकतर कोई उत्तमोत्तम और बहुमूल्य पदार्थ नहीं है और न उससे बढ़कर कोई मुझे प्रिय है मैंने उसको तुम्हें प्रदान किया'॥

निदान परमेश्वर ने दोनों प्रेमी और प्रेयसी का इस रीति से समागम कराया॥