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वेनिस का बाँका/सप्तदश परिच्छेद

विकिस्रोत से
वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ १०४ से – १०८ तक

 

सप्तदश परिच्छेद।

हम पहले वर्णन कर चुके हैं कि अंड्रियास रोजा- बिलाको फ्लोडोआर्डो के निकट एकाकी छोड़ कर बाहर चला गया और दोनों एक प्रशस्त गवाक्ष के समीप जाकर खड़े हुये। कुछ कालोपरान्त फ्लोडोआर्डो चित्त कडा करके कहा "राजात्मजे! तुम अब भी मुझसे अप्रसन्न और रुष्ट हो?"॥

रोजाबिला―"मैं तुमसे कदापि रुष्ट नहीं हूँ, यह कहकर वह उपबन के वृत्तान्त को स्मरण करके अत्यन्त लज्जित हुई॥

फ्लोडोआर्डो―"अच्छा तो आपने मेरा अपराध क्षमा कर दिया"॥

रोजाबिला―(ईषत् हास्य करके) "तुम्हारा अपराध! निस्सन्देह! यदि अपराध था तो मैंने सम्पूर्ण क्षमा कर दिया क्योंकि जो लोग मरने के सन्निकट हों उन्हें उचित है कि औरों का अपराध क्षमा कर दें इसलिये कि इसके बदले में परमेश्वर उनके अपराधों को क्षमा करे और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं अब कुछ दिन की ही मेहमान हूँ॥

फ्लोडोआर्डो―"राजकन्यके!"

रोजाबिला। न, न, इसमें तनिक सन्देह नहीं है, मान लिया कि अभी कल पलँग परसे उठी हूँ परन्तु मैं भली भाँति जानती हूँ कि अति शीघ्र फिर गिरूँगी और इस बार मेरा जीवन समाप्त ही हो जावेगा, इस लिये (कुछ रुककर) इसी लिये मैं महाशय आपसे क्षमा प्रार्थना करती हूँ और चाहती हूँ कि प्रथम सम्मिलन के समय मैंने जो कुछ आपका अपराध किया हो उसको आप हृदय से भूल जावें॥ फ्लोडोआर्डो ने इसका कुछ उत्तर न दिया॥

रोजाबिला―"क्यों महाशय! तो आप न क्षमा कीजियेगा आप अत्यन्त कठोर ज्ञात होते हैं"॥

फ्लोडोआर्डो ने उसका स्वरूप देख कर बनावट से मुस- करा दिया, परन्तु अवलोकन करने से उसके मुख से स्पष्ट आन्तरिक दुःख का विकास होता था। रोजाबिला ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया॥

रोजाबिला―"क्यों आप स्वच्छ हृदय से मुझसे हाथ न मिलाइयेगा, और अपने हृदय से सब बातों को न भुलाइयेगा?"

फ्लोडोआर्डो―"राजकन्यके भुलाना? कदापि नहीं? कदापि नहीं? आपके एक एक शब्द का चिन्ह मेरे हृदय पर ऐसा हो गया है कि मरणकाल पर्यंत न मिटेगा, हाय! मैं उन बातों को कैसे भूल सकता हूँ जिससे मेरा मर्म वेध हुआ है, मैं उस वृत्तान्त को जो आपके और मेरे स्नेह का साक्षी है कथमपि भूल नहीं सकता! उसका प्रत्येक भाग अनमोल और अद्वितीय है। रहा क्षमा करना (रोजाबिला का करकमल सादर चुम्बन कर) परमेश्वर करता कि प्यारी तुमने मुझे वास्तव में अधिक संताप से संतप्त किया होता कि मैं तुमको क्षमा करता पर खेदका विषय है कि इस समय मैं तुमको क्या क्षमा करूं"॥

इतने कथोपकथन उपरांत दोनों कुछ काल पर्यंत मौन रहे, अंत को रोजाविला ने फिर बात छेड़ी॥

रोजाविला―"इस ओर तो आप बहुत दिनों तक बाहर रहे, क्या दूर की यात्रा की थी?"॥

फ्लोडोआर्डो―"जी हाँ"॥

रोजाबिला―"और आनन्द भी पूर्ण प्राप्त हुआ?"॥

फ्लोडोआर्डो―"पूर्ण, जहाँ कहीं जाता था रोजाबिला की प्रशंसा सुनता था"॥ रोजाबिला―(तनिक तीखी चितवन से परन्तु ऋजुता के साथ) "कौण्ट फ्लोडोआर्डो क्या आप फिर मुझे कुढ़ाना चाहते हैं"॥

फ्लोडोआर्डो―"यह बात तो बहुत जल्द मेरे अधिकार से बाहर हो जायगी, कदाचित् आप समझ गई होंगी की अब मेरी क्या कामना है"।

रोजाबिला―"फिर यात्रा करने की"

फ्लोडोआर्डो―"जी हाँ, और इस बार वेनिस से गया तो फिर न आने की"।

रोज़ाबिला―(अनुराग के साथ) "फिर न आओगे? नहीं ऐसा क्या करोगे! हाय! तुम मुझे छोड़कर चले जावोगे" यह कह कर वह अपनी मूर्खता पर अत्यन्त लज्जित हुई और फिर सँभल कर कहने लगी "मेरा अभिप्राय यह था कि तुम मेरे पितृव्य को छोड़ कर चले जावोगे? मैं अनुमान करती हूँ कि तुम परिहास कर रहे हो"॥

फ्लोडोआर्डो―"नहीं नहीं! राजात्मजे मैं सत्य कहता हूँ और अबकी बार वेनिस से गया तो फिर नहीं आने का"॥

रोजाबिला―"फिर भला आप जाइयेगा कहाँ?"

फ्लोडोआर्डो―"माल्टा के द्वीप में, इस लिये कि वहाँ के निवासियों की, जो बरबरी के डाकुओं से संग्राम कर रहे हैं सहायता करूँ संभव है कि ईश्वरानुकम्पा से मैं किसी पोत का कमाउण्ड हो जाऊँ, उस समय मैं उसका नाम रोजाबिला रक्खूँगा, और संग्राम समय भी रोजाबिला का नाम लेकर युद्ध करूँगा, इससे परमेश्वर ने चाहा तो वैरी का प्रहार मुझ पर सफल न होगा"॥

रोजाबिला―"उहँ 'यह तो आप मेरा उपहाँस करते हैं मैंने आपके साथ कोई ऐसी बुराई नहीं की है कि आप इस निर्दयता के साथ मेरा मन दुःखी करें"॥

फ्लोडोआर्डो―"राजात्मजे! इसी लिये तो मेरी इच्छा वेनिस से भाग जाने की है कि जिसमें आपका मन न दुःखी हो, मेरे रहने से क्या आश्चर्य्य है कि किसी समय आपको फिर क्लेश हो, अतएव उत्तम है कि मैं यहाँ से कहीं निकल जाऊँ, जिसमें आप तो सुखसे रहैं"॥

रोजाबिला―"तो वास्तव में आप महाराज को छोड़ कर चले जाइयेगा जो तुमारो हृदय से सत्कार करते हैं और तुमारे साथ अत्यन्त प्रीति रखते हैं"॥

फ्लोडोआर्डो―"मैं उनकी प्रीतिका अत्यन्त सम्मान करता हूँ, परन्तु वह मेरे आनन्द के लिये पर्याप्त नहीं और यदि वह मुझे राज्य भी प्रदान करदें तो भी मेरे समीप कुछ नहीं है"॥

रोजाबिला―"तो श्रेय के लिये यह आवश्यक है कि यहाँ से आप चले जाइये॥

फ्लोडोआर्डो―"निस्सन्देह! बरन जितना मैंने वर्णन किया है उससे भी कुछ अधिक पैर पड़कर यांचना कर चुका" यह कह कर उसने रोजबिला का करकमल अपने हाथों में लेकर चुम्बन किया और फिर कहने लगा॥ "रोजाबिला मैंने तुमसे पैर पड़ कर निवेदन और प्रार्थना की और तुमने टकासा उत्तर दे दिया"॥

रोजाबिला―"तुम अद्भुत व्यक्ति हो! इतने शब्द रोजाबि- लाकी रसना से कठिनता से निकले,। फ्लोडोआर्डो ने उसे अपने समीप आकर्षण कर लिया और बहुत गिड़गिड़ा कर कहा "रोजाबिला"॥

रोजाबिला―"आप मुझसे क्या चाहते हैं"॥

फ्लोडोआर्डो―"मुझे अपनो सेवकाई में स्वीकार करो"॥

रोजाबिला―"कुछ काल पर्यन्त उसे आश्चर्य की दृष्टि से देखती रही इसके उपरान्त उसने शीघ्रता पूर्वक अपना हाथ खींचकर कहा "मैं आज्ञा देती हूँ कि आप यहाँ से भी चले जाँय, परमेश्वर के लिये आप प्रस्थान कीजिये"॥

उसकी इस कठोरता पर फ्लोडोआर्डो अपना हाथ दुःख से मलता हुआ धीरे धीरे द्वार पर्यन्त गया। ज्योंहीं उसने देहली के बाहर पद रक्खा, और मुड़ कर रोजाबिला से सदा की बिदा माँगी कि अचाञ्चक रोजाबिला दौड़ पड़ी और उसका हाथ लेकर निजोच्छलित हृदय पर रखने पीछे कहने लगी "फ्लोडो मैं तेरी हूँ"। इतने शब्द उसकी चंचला रसना से कठिनता से निकले थे कि वह उसी ठौर गिर पड़ी और अचेत होगई॥