वैशाली की नगरवधू/30. मृत्यु-चुम्बन

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वैशाली की नगरवधू  (1949) 
द्वारा आचार्य चतुरसेन शास्त्री
[ १२९ ]

30. मृत्यु-चुम्बन

यह सब देख कुण्डनी के संकेत को पाकर सोमप्रभ ने पुकारकर कहा—"सब कोई सुने! यह मगध सुन्दरी है, जिसे असुर नहीं भोग सकते। जो कोई इसका चुम्बन आलिंगन करेगा, वही तत्काल मृत्यु को प्राप्त होगा।"

असुरों में अब सोचने-विचारने की सामर्थ्य नहीं रही थी। 'चुम्बन करो, चुम्बन करो', सब चिल्लाने लगे।

शम्बर ने हाथ का मद्यपात्र फेंककर हकलाते हुए कहा—"सब कोई इस मानुषी का—चुम्बन करो।"

सोम ने क्रुद्ध होकर कुण्डनी की ओर देखा। फिर उसका अभिप्राय जान सोम ने कहा—"जो कोई चुम्बन करेगा, वही मृत्यु को प्राप्त होगा। महान् शम्बर इसको न भूल जाएं।"

"शम्बर सब जानता है। उसने बहुत देव, दैत्य, गन्धर्व और मानुषियों का हरण किया है, कहीं भी तो ऐसा नहीं हुआ। दे, सौ ऐसी तरुणियां दे रे मानुष, यदि मेरी मैत्री चाहता है।" शम्बर ने मद से लाल-लाल आंखों से सोम को घूरकर कहा।

कुण्डनी नृत्य कर रही थी। जब बहुत-से असुर तरुण हंसते हुए उसका चुम्बन करने को आगे बढ़े, तो कुण्डनी ने एक छोटी-सी थैली वस्त्र से निकालकर उसमें से महानाग को निकाला और कण्ठ में पहन लिया। यह देख सभी तरुण असुर भयभीत होकर पीछे हट गए। कुण्डनी ने उस नाग का फन पकड़कर उसके नेत्रों से नेत्र मिला नृत्य जारी रखा। कभी वह शम्बर के पास जाकर ऐसा भाव दिखाती, मानो चुम्बनदान की प्रार्थना कर रही हो, कभी सोम के निकट जा अपना अभिप्राय समझाती। कभी असुरों के निकट जा लीला-विलास से उन्हें उम्मत्त करती।

शम्बर ने कहा—"वह उस सर्प से क्या कर रही है रे मनुष्य?"

सोम ने कुण्डनी से संकेत पाकर कहा—"मैंने कहा था कि यह मागधी नाग-पत्नी है, अब सर्वप्रथम नाग चुम्बन करेगा, पीछे जिसे मृत्यु की कामना हो, वह चुम्बन करे।"

"तो नाग-चुम्बन होने दे!"

"तो महान् शम्बर इस मानुषी के नागपति के नाम पर एक-एक पात्र मद्य पीने की आज्ञा दें।"

शम्बर ने उच्च स्वर से सबको आज्ञा दी। फिर असुरों ने मद्य के बड़े-बड़े पात्र मुंह से लगा लिए।

इसी समय कुण्डनी ने नाग से दंश लिया। उस दंश को देखकर सभी आश्चर्यचकित हो गए। कुण्डनी ने नाग को थैली में रख अपने वस्त्रों में छिपा लिया। उसके मस्तक पर स्वेदबिन्दु झलक आए और वह विष के वेग से लहराने लगी। उस समय उसके नृत्य ने [ १३० ]अलौकिक छटा प्रदर्शित की। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह हवा में तैर रही हो। उसके नेत्र और अधरोष्ठ मानो मद-निमन्त्रण-सा देने लगे।

शम्बर ने असंयत होकर चिल्लाकर कहा—"चुम्बन करो इस मागध मानुषी का।"

सोम ने चिल्लाकर कहा—"जो कोई चुम्बन करेगा, उसकी मृत्यु होगी। महान् शम्बर इसके ज़िम्मेदार हैं।"

"चुम्बन करो! चुम्बन करो!" शम्बर ने पुकारकर कहा। उसमें अब सोचने-विचारने की कुछ भी शक्ति न थी। एक तरुण ने हठात् कुण्डनी को अपने आलिंगन में कसकर अधरों पर चुम्बन लिया। वह तुरन्त बिजली के मारे हुए प्राणी की भांति निष्प्राण होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। सोम यह चमत्कार देख भय से पीला पड़ गया। कुण्डनी ने उधर भ्रूपात नहीं किया। उसने दूसरे तरुण की ओर मुस्कराकर देखा। उसने भी आगे बढ़कर कुण्डनी को कसकर बाहुपाश में बांधकर चुम्बन लिया और उसकी भी यही दशा हुई। अब तो उन्मत्त की भांति असुरगण कुण्डनी का चुम्बन ले-लेकर और निष्प्राण हो-होकर भूमि पर गिरने लगे। एक अलौकिक-अतर्कित मोह के वशीभूत होकर असर एक के बाद एक होती हुई मृत्यु की परवाह न कर उस असाधारण उन्मादिनी के आलिंगन-पाश में आकर और उसका अधर चूम-चूमकर ढेर होने लगे। शम्बर बार-बार मद्य पी रहा था। असुरों के इस प्रकार आश्चर्यजनक रीति से मरने पर उसको विश्वास नहीं होता था। प्रत्येक असुर के चुम्बन के बाद निष्प्राण होकर गिरने पर कुण्डनी ऐसे मोहक हास्य से शम्बर की ओर देखती कि वह समझ ही नहीं पाया कि वास्तव में उसके तरुण मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं या विमोहित-मूर्छित हो रहे हैं। सोमप्रभ बराबर मद्य के पात्र पर पात्र शम्बर के कण्ठ से उतार रहा था। अब कुण्डनी ने एक-एक तरुण के निकट जाकर चुम्बन-निवेदन करना प्रारम्भ किया। कुछ असुर भयभीत हो गए थे, पर उस मोहिनीमूर्ति के चुम्बन-निवेदन को अस्वीकार करने की सामर्थ्य मूर्ख, मद्य-विमोहित असुरों में न थी। वे चुम्बन ले-लेकर प्राण गंवाते गए। देखते-देखते मृतक असुर तरुणों के ढेर लग गए। कुण्डनी अब वृद्ध मन्त्रियों की ओर झुकी परन्तु वे भयभीत होकर झिझककर पीछे हट गए। कुण्डनी ने उन्हें हठात् अपने आलिंगन-पाश में बांधकर उनके होंठों पर अपना चुम्बन अंकित कर दिया और वे निष्प्राण होकर जहां के तहां ढेर हो गए। सोम ने घबराकर, उसके निकट आकर कहा—"तो कुण्डनी, तुम विषकन्या हो?"

कुण्डनी ने नृत्य करते हुए कहा—"सावधान रहो! संकट-काल निकट है, देखो उसके तेवर।"

शम्बर अब सावधान हुआ और क्रुद्ध नेत्रों से कुण्डनी को ताकने लगा। कुण्डनी ने यह देखकर मुस्कराकर बंकिम कटाक्षपात कर एक परिपूर्ण मद्य-पात्र उसके होंठों से लगा दिया। परन्तु उसने कुण्डनी को एक ओर धकेल कर मद्यपात्र फेंक दिया। उसने फिर गुर्राकर कहा—"क्या तूने मेरे तरुणों का हनन किया?"

सोम ने शम्बर की बात उसे समझा दी। कुण्डनी ने संकेत से कहा कि वह शम्बर के पाश्र्व में ही रहे और उसके सिंहासन के बगल में जो बर्छे और शूल लगे हैं, आवश्यकता पड़ने पर उनसे काम ले। पर इसमें वह जल्दी न करे, संयम और धैर्य से अन्तिम क्षण तक कुण्डनी का कौशल देखे। [ १३१ ] सोम ने शम्बर को क्रुद्ध होते देख कहा—"महाशक्तिशाली शम्बर से कह दिया गया था कि यह तरुणी नागपत्नी है और मागधी मानुषी असुरों के भोग की नहीं। असुर अपने ही दोष से मरे हैं और महान् शम्बर ने उन्हें चुम्बन की आज्ञा दी थी।"

"परन्तु यह मानुषी अति भीषण है।" कहकर उसने सिंहासन से खड़े होने की चेष्टा की परन्तु लड़खड़ाकर गिर गया। सोम ने कहा—"मागध मानुष इससे भी अधिक भीषण हैं, यदि उन्हें शत्रु बना दिया जाए। क्या महान् शम्बर को मागध बिम्बसार की मित्रता स्वीकार है?"

शम्बर ने बड़बड़ाते हुए कहा—"मागध मानुषी अति भीषण होती है।" उसने कुण्डनी की ओर प्यासी चितवन से देखा। कुण्डनी ने मद्य का एक बड़ा पात्र लाकर उसके होंठों से लगा दिया। शम्बर उसे पीकर ओठ चाटता हुआ फिर सिंहासन से उठने लगा। इस बीच में बचे हुए असुर तरुण कुण्डनी से भयभीत हो-होकर भागने लगे थे। बहुत-से विवश मदमस्त पड़े थे। मृत असुरों के ढेर जहां-तहां पड़े थे। उनके कज्जलसमान निश्चल शरीर उस अग्नि के प्रकाश में भयानक दीख रहे थे। शम्बर के मन में भय समा गया। पर वह कुण्डनी की ओर वैसी ही प्यासी चितवन से देखने लगा। हठात् कुण्डनी ने फिर आकर एक मद्यभाण्ड उसके होंठों से लगा दिया। उसे भी गटागट पीकर शम्बर ने खींचकर कुण्डनी को हृदय से लगा, उन्मत्त भाव से हकलाकर कहा—"दे, मृत्यु-चुम्बन-मानुषी, तेरे-स्वर्ण अधरों को एक बार चूमकर मरने में भी सुख है।"

पर कुण्डनी ने यत्न से अपने को शम्बर के बाहुपाश से निकालकर फुर्ती से एक लीला-विलास किया और फिर दूसरा मद्यपात्र उसके होंठों से लगाया। फिर उसने सोम से संकेत किया। मद्य पीकर शम्बर शिलाखण्ड पर बदहवास पड़ गया। वह कुण्डनी को बरबस खींचकर अस्त-व्यस्त आसुरी भाषा में कहने लगा, "द-द-दे मानुषी, एक चुम्बन दे! और मगध-बिम्बसार के लिए मेरी मैत्री-ले। दे, चुम्बन दे!"

कुण्डनी ने गूढ़ मार्मिक दृष्टि से सोम की ओर देखा। वह सोच रही थी कि असुर को मारा जाय या नहीं। परन्तु सोम ने लपककर कुण्डनी को असुर शम्बर के बाहुपाश से खींचकर दूर कर दिया और हांफते-हांफते कहा—"नहीं-नहीं, असुर को मारा नहीं जायगा। बहुत हुआ।" फिर उसने शम्बर के कान के पास मुंह ले जाकर कहा—"महान् शम्बर चिरंजीव रहें। यह मागध बिम्बसार का मित्र है। उसे मृत्यु-चुम्बन नहीं लेना चाहिए।

शम्बर ने कुछ होंठ हिलाए और आंखें खोलने की चेष्टा की, परन्तु वह तुरन्त ही काष्ठ के कुन्दे की भांति निश्चेष्ट होकर गिर गया। उस समय बहुत कम असुर वहां थे, जो भयभीत होकर भाग रहे थे। कुण्डनी को एक ओर ले जाकर सोम ने कहा—"उसे छोड़ दे कुण्डनी।"

कुण्डनी अपनी विषज्वाला में लहरा रही थी। उसने कहा—"मूर्खता मत करो सोम, मरे वह असुर।"

"ऐसा नहीं हो सकता।" उसने इधर-उधर देखा। इसी समय अन्धकार से वह तरुण असुर नेत्रों में भय भरे बाहर आया, जिससे सर्वप्रथम परिचय हुआ था और जिसके प्राण सोम ने बचाए थे। उसने पृथ्वी पर प्रणिपात करके कहा—"भागो, वह शक्ति उठा लो, मैं चम्पा का मार्ग जानता हूं।" [ १३२ ] सोम ने शक्ति हाथ में ले ली। कुण्डनी ने वेणी से विषाक्त कटार निकालकर हाथ में ले ली। उसने कहा—"इसकी एक खरोंच ही काफी है। इससे मृत पुरुष को उसके घाव को छूने ही से औरों की मृत्यु हो जाएगी। यह हलाहल में बुझी है।"

तीनों लपककर एक ओर अन्धकार में अदृश्य हो गए। जो असुर दूसरी ओर शोर कर रहे थे, वे शायद उन्मत्त और हतज्ञान हो रहे थे। सोम ने देखा, नगरद्वार पर चार तरुण असुर पहरा दे रहे हैं।

कुण्डनी ने हंसकर उनसे कहा—"अरे मूर्खों, तुमने मेरा चुम्बन नहीं लिया! एक को उसने आलिंगनपाश में बांध चुम्बन दिया। अधर छूते ही वह मृत होकर गिरा। दूसरे ने हुंकृति कर कुण्डनी पर आक्रमण किया। उसकी पीठ में सोम ने शक्ति पार कर दी। शेष दो में एक ने कुण्डनी की कटार का स्पर्श पाकर, दूसरे ने सोम की शक्ति खाकर प्राण त्यागे। सोम ने अपने अश्व पर सवार हो तारों की छांह में उसी समय असुरपुरी को त्यागा। असुर तरुण भी उनके साथ ही भाग गया।