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सङ्कलन/१४ अमेरिका के गाँव

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काशी: भारतीय भंडार, पृष्ठ ८१ से – ८९ तक

 

१४
अमेरिका के गाँव

जिस तरह भारतवर्ष अत्यन्त दरिद्र है, उसी तरह अमे- रिका अत्यन्त धनवान् है। यह बात दोनों देशों के गाँवों की तुलना करने से अच्छी तरह प्रकट हो जाती है। हमारे देश के गाँव दरिद्रता और मूर्खता के केन्द्र-स्थान हैं। अकेला गँवार शब्द ही इस बात का साक्षी है। गाँवों के घर निरी मिट्टी के झोंपड़े होते हैं। रहने का घर, चौपायों का घर, कूड़ा-घर आदि सब एक ही जगह होते हैं। एक ही तालाब में गाँव भर के लोग नहाते, कपड़े धोते, पशुओं को पानी पिलाते और कभी कभी स्वयं उसका पानी पीते हैं। इसके सिवा वे लोग आधे नंगे, आधे भूखे रह कर अपना जीवन बिताते हैं। उनके लिये "काला अक्षर भैंस बराबर" है। दीन-दुनियाँ की उन्हें कुछ खबर नहीं। सभ्य संसार को ऐशो-आराम की चीज़ें उन्हें स्वप्न में भी नसीब नहीं। मतलब यह कि यदि गाँवों के झोंपड़ों के अधिवासियों को दरिद्रता और अविद्या का मूर्ति- मान अवतार कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति नहीं।

परन्तु अमेरिका की दशा यहाँ से ठीक उलटी है। वहाँ

के गाँव हमारे देश के अधिकांश शहरों से अधिक अच्छी हालत में हैं। कुछ दिन हुए, सन्त निहालसिंह का लिखा हुआ एक लेख इस विषय पर माडर्न रिव्यू में निकला था। उसमें उन्होंने उदाहरण-स्वरूप अमेरिका के एक गाँव का वर्णन किया है। सिंह जी के उस लेख से हमारे पूर्वोक्त कथन की पुष्टि होती है। इसलिए उसकी मुख्य-मुख्य बातें हम यहाँ पर लिखते हैं। इससे पाठकों को मालूम हो जायगा कि अमे- रिका कितना उन्नत, सभ्य और सम्पत्ति-शाली देश है।

निहालसिंह महाशय ने जिस गाँव का वृत्तान्त लिखा है, उसका नाम केम्ब्रिज है। वह अमेरिका की इलीनाई (Illinois) रियासत में है। जहाँ पर यह गाँव बसा हुआ है, साठ वर्ष पहले वहाँ जंगली जानवर रहते थे; मनुष्य या वृक्ष का मीलों तक पता न था। परन्तु इस समय वहाँ जंगली जानवरों का नामोनिशान तक नहीं। एक सुन्दर छोटा सा गाँव बस गया है। उसका रक़बा कोई एक वर्ग मील होगा और सब मिला कर कोई चौदह सौ मनुष्य उसमें रहते हैं।

परन्तु इतना छोटा गाँव होने पर भी केम्ब्रिज उन्नति की चरम सीमा तक पहुँच गया है। उसके प्रायः सभी घर पक्के, दो-मंजिले हैं, और क़रीने से बने हुए हैं। रेलवे स्टेशन, तार- घर, डाकख़ाना, स्कूल, अस्पताल आदि उसमें सब कुछ है। गाँव भर में रात को बिजली की रोशनी होती है। जगह जगह टेलीफोन लगे हुए हैं। प्रत्येक चौराहे और मकान में गहरे

कूएँ और पम्प बने हुए हैं। उनका निर्मल और रासायनिक क्रिया से साफ़ किया हुआ जल अत्यन्त स्वादिष्ट और स्वास्थ्य- कर है। गाँव भर में ऐसी कोई सड़क नहीं जिस पर पत्थर न जड़े हों। सड़कों की तो बात ही क्या है, गलियों तक में ईंटें लगी हुई हैं और उन पर सीमेंट बिछा हुआ है, जिससे वे बारहो मास पक्की गचं सी बनी रहती हैं। बरसात तक में कीचड़ के दर्शन नहीं होते।

यह हम लिख चुके हैं कि केम्ब्रिज में रेलवे स्टेशन, तार- घर, डाकखाना, स्कूल और अस्पताल आदि सब कुछ हैं। इनके सिवा वहाँ आग बुझानेवाली टोली और एक कचहरी भी है। बिजली की रेल चलने का भी प्रबन्ध हो रहा है। डाकखाना दिन में चार दफे डाक बाँटता है। गाँववाले साल भर में कोई पन्द्रह हज़ार रुपये के डाक-टिकट ख़रीदते हैं। डाकख़ाने में एक पोस्ट मास्टर, एक सहकारी पोस्ट- मास्टर, एक क्लर्क और पाँच चिट्ठी-रसाँ हैं। जो किसान गाँव से कई मील दूर खलिहानों में रहते हैं, उन्हें चिट्ठी लेने या देने के लिए गाँव में नहीं आना पड़ता। चिट्ठी-रसाँ लोग खुद जाकर डाक दे आते हैं; और ले भी आते हैं। इससे किसानों को बड़ा सुभीता रहता है; उनके काम में विघ्न नहीं पड़ता।

केम्ब्रिज में एक सार्वजनिक पुस्तकालय भी है। उसमें कई हज़ार किताबें हैं। इससे सर्व-साधारण को बड़ा लाभ होता है। जिसका जी चाहता है, इन ग्रंथों से मुफ्त फायदा

उठाता है। इसके सिवा गाँव में एक गायनशाला, तमाशाघर और नाट्यशाला भी है। उनमें क्रम से नित्य गाना-बजाना, चलती-फिरती तसवीरों के तमाशे और थियेटर हुआ करते हैं। वहाँ ईसाई धर्म के भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के पाँच गिरजे भी हैं। उनमें हर इतवार को अच्छी धूम रहती है। गाँव- वालों की एक बैंड कम्पनी भी है। उसकी मुखिया एक स्त्री है।

केम्ब्रिज गाँव में छः वकील और सात डाक्टर हैं। उनमें से दो स्त्री-डाक्टर हैं। दो दन्त-चिकित्सक और एक पशु- चिकित्सक हैं । तीन बैंक हैं। चार भोजनशालाओं और चार पानशालाओं के सिवा एक नानबाई की, एक कल से कपड़े धोने की, तीन हजामत बनाने की, दो शौक़ के सामान की, तीन मामूली असबाब की, एक जूतों की, तीन बज़ाज़ी की, दो कागज़ की, चार बरतनों की, तीन पंसारियों की, दो दर- ज़ियो की और छः पोशाक बनानेवालों की दूकानें हैं। सिलाई का एक स्कूल भी है। उसमें नौ जवान स्त्रियाँ कपड़े सीना सीखती हैं। पूरी दो बाज़ारे गोश्तवालों की हैं। उनमें से एक-एक बाज़ार में कई-कई दूकानें हैं। इनके सिवा गाँव में तीन लोहार, तीस वढ़ई, तीन ठेकेदार, दो पैमाइश करनेवाले और दस चित्रकार हैं। घोड़ों की दो, और मोटर गाड़ियों की एक दूकान है। वहाँ घोड़े और गाड़ियाँ किराये पर भी मिलती हैं। दो यन्त्र-शालायें भी हैं, जहाँ से किसान लोग अपने लिए औज़ार खरीदते हैं। पाठकों को यह सुनकर शायद आश्चर्य

होगा कि इतने छोटे गाँव से तीन साप्ताहिक समाचारपत्र भी निकलते हैं। उनमें से हर एक के पास कई प्रेस हैं। उनमें बढ़िया से बढ़िया और बारीक से बारीक काम छप सकता है। फोटोग्राफर की भी एक दूकान है। ये सब दूकानें खूब चलती हैं और सबेरे से लेकर आधी रात तक इनमें भीड़ लगी रहती है। इन शोभा-सम्पन्न दूकानों के सिवा प्रत्येक सड़क और गली के दोनों तरफ लगे हुए मनोहर फूल इस गाँव की सुन्दरता को और भी बढ़ाते हैं। सुनते हैं कि एक सार्वजनिक पार्क भी बन रहा है।

केम्ब्रिज के निवासी बड़े उन्नतिशील हैं। वे अपनी वर्त्त- मान अवस्था से कभी सन्तुष्ट नहीं रहते । दिन-रात उन्नति की धुन में लगे रहते हैं। वे अपने घरों को वर्तमान सभ्य संसार की प्रत्येक आवश्यक और आराम देनेवाली चीज़ से पूर्ण रखते हैं । सन्त निहालसिंह, जो केम्ब्रिज में कई महीने रहे हैं, कहते हैं -- "केम्ब्रिज के निवासी की एक मामूली पशु- शाला हिन्दुस्तान की किसी सार्वजनिक इमारत ( Public Building ) से भी अधिक अच्छी हालत में है।" केम्ब्रिज की पशु-शालाओं में (अर्थात् जहाँ घोड़े और गायें बँधती हैं) बिजली की रोशनी होती है। गायें ग्लोब चढ़े हुए क़ीमती लेम्पों की रोशनी में दुही जाती हैं।

केम्ब्रिज के स्कूल की इमारत बड़ी ही भव्य और विशाल है। यह एक सौ सत्ताइस फीट लम्बी और छिहत्तर फुट

चौड़ी है। इमारत खूब ऊँची कुरसी पर बनाई गई है और तिमंजिला है। उसमें हवा आने जाने, गरमी पहुँचाने और सफ़ाई रखने का वड़ा अच्छा प्रबन्ध है। ये सब काम नवा- विष्कृत यन्त्रों के द्वारा होते हैं। उसमें एक ऐसा भी यन्त्र लगा हुआ है जिससे रोगोत्पादक कीड़े वहाँ पैदा ही नहीं हो सकते।

प्रत्येक मंजिल में कई कमरे हैं। प्रत्येक कमरा एक-एक काम के लिए है। कोई पढ़ाई के लिए है; कोई व्यावहारिक शिक्षा के लिए; किसी में शिक्षक रहते हैं; किसी में विद्यार्थी; कोई शिक्षकों के बैठने के लिए है; कोई विद्यार्थियों के खेलने और व्यायाम करने के लिए; किसी में दफ्तर है; किसी में पुस्तकालय; कोई कमरा सभा करने के लिए है; कोई कविता पढ़ने के लिए। इसी तरह किसी में असबाब रहता है; किसी में यन्त्र और यंजिन। मतलब यह कि सब चीजों के लिए स्थान नियत हैं।

स्कूल से सम्बन्ध रखनेवाला वैज्ञानिक परीक्षागार नवीन यन्त्रों से पूर्ण है। वैज्ञानिक शिक्षागृह में न मालूम कितने जीवित पक्षी हैं। हर एक कमरे में टेलीफ़ोन लगा हुआ है। पढ़ाई के कमरों को छोड़ कर बाक़ी सारी इमारत में कोई एक सौ साठ जगह बिजली की रोशनी होती है। टाइम टेबुल का काम घड़ियों से लिया जाता है। ज्योंही एक विषय पढ़ाने का समय समाप्त होता है, त्योंही घड़ी घण्टी बजा देती है। इमारत

के प्रत्येक कमरे में आवश्यकीय और सजावट का कितना सामान है, यदि इसका संक्षिप्त वर्णन भी किया जाय तो भी लेख बहुत बढ़ जायगा, इसलिए इस विषय में केवल इतना ही कहना काफी है कि हिन्दुस्तान के बड़े से बड़े कालेज को जो सामान नसीब नहीं, वह सब अमेरिका के छोटे से गाँव केम्ब्रिज के स्कूल में विद्यमान है।

स्कूल में सब मिला कर एक सौ सत्रह लड़के और एक सौ अड़तीस लड़कियाँ हैं। उन्हें पढ़ाने के लिए स्कूल में बारह शिक्षक नियत हैं। उनके सिवा दो शिक्षक और भी हैं; एक गाना सिखाने और दूसरा ड्राइङ्ग सिखाने के लिए। चौदह सौ की बस्ती के गाँव में इतने लड़के लड़कियाँ इसलिए पढ़ती हैं कि वहाँ जबरदस्ती शिक्षा का नियम है। अर्थात् रियासत भर में सात से सोलह वर्ष की उम्र तक का प्रत्येक लड़का और लड़की स्कूल जाने के लिए बाध्य है। जो माता- पिता अपने बच्चों को पढ़ने नहीं भेजते,उन्हें गवर्नमेंट दण्ड देती है।

स्कूल से कुछ दूर पर "क्रानिकल" नामक समाचारपत्र का दफ्तर है। केम्ब्रिज से निकलनेवाले अखबारों में यह मुख्य है। यह साप्ताहिक पत्र है और कोई पचास वर्ष से निकलता है। इसके पास तीन प्रेस हैं, जो स्टीम-इंजिन के द्वारा चलते हैं। इस पत्र के प्रत्येक अङ्क में आठ पृष्ठ रहते हैं। इनमें से चार छपे-छपाये एक सभा से सादे काग़ज़ के मूल्य पर खरीद लिये जाते हैं। इनमें देश-विदेश की ख़बरों के

सिवा राजनैतिक गपशप भी रहती है। व्यापारी, किसान, अहीर और दरज़ियों के काम के लेख और समाचार भी इनमें रहते हैं। उपन्यास, आख्यायिका और यात्रा-वृत्तान्त भी प्रत्येक अंक में रहता है। इस पत्र की बिक्री खूब होती है।

अमेरिका के गाँवों के मकान बड़े ही साफ़ और करीने से सजे हुए होते हैं। इस बात को स्पष्ट रूप से समझाने के लिए सन्त निहालसिंह ने केम्ब्रिज के उस मकान का वृत्तान्त लिखा है जिसमें वे कुछ दिन रहे थे। उनके कथन का सारा मर्म यह है।

यह घर दो-मंजिला बना हुआ है। पहली मंज़िल के बीच का कमरा सुन्दर चित्रों से सजा हुआ है। उसके एक कोने में पियानो रक्खा है और दूसरे में लिखने का डेस्क। फर्श पालिश की हुई लकड़ी का है, जिस पर वेल-बूटेदार गालीचा बिछा हुआ है। नियत स्थान पर झूले और कुरसियाँ रक्खी हुई हैं। उससे मिला हुआ मुलाक़ात का कमरा है। उसमें दो तीन आराम-कुरसियाँ हैं, एक मेज़ और एक आलमारी भी है। मेज़ पर कुछ मासिक पुस्तकें और ग्रन्थ रक्खे हुए हैं और आलमारी सुन्दर जिल्द बँधी हुई किताबों से पूर्ण है। उसके आगे भोजनशाला, पाकशाला और धोवी-घर है। पाकशाला में तीन चूल्हे हैं। इससे तीन चीज़ें एक ही साथ पक सकती हैं। ये तीनों गैस के द्वारा जलते हैं। इस कमरे में कई मेज़ें और आलमारियाँ हैं, जिनमें खाने की चीज़ें, बरतन

और अन्य सामान रक्खे जाते हैं। धोबी-घर में धोने की एक मैशीन है। वह जल-शक्ति के द्वारा चलती है। उसमें बड़ी आसानी से कपड़े धोये जा सकते हैं और इतने साफ़ होते हैं, मानों किसी धोबी के धोये हुए हैं। इसलिए केम्ब्रिज-निवासी अपने कपड़े अपने ही घर में धो लेते हैं। इस धोबी-घर में मैशीन के सिवा और भी कितने ही यन्त्र हैं, जिनसे कपड़े धोने से सम्बन्ध रखनेवाले अन्य काम लिये जाते हैं। इस घर की एक आलमारी में कुछ रासायनिक पदार्थ रक्खे रहते हैं। ये कपड़ों के दाग़ आदि छुड़ाने के काम में आते हैं। दूसरे खण्ड में शयनकक्ष, स्नानागार और सिलाई-घर हैं। ये कमरे भी खूब सुसज्जित और नाना प्रकार की आवश्यक चीज़ों से पूर्ण हैं।

[अगस्त १९०९.