सत्य के प्रयोग/ अच्छे-बुरे का मेल

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

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अध्याय ३५ : अच्छे-बुरेका मेल ३४५ इस प्रकार रूल मानेका पश्चात्ताप आजतक होता रहता है ।। मैं समझता है कि उसे पीटकर मैंने उसे अपनी आत्मा की सात्विकता का नहीं, बल्कि अपने पशुताका दर्शन कराया था ।। मैंने बच्चों को पीट-पीकर लिखने का हमेशा विरोध किया है। सारी जिदगी एक ही अवसर मुझे याद पड़ता है जब मैंने अपने एक न्नड़केको पीटा शः । मेरा बह ल मार देना उचित था । इहीं, इस निर्णय | भाजत नहीं कर सका । इस दंडके श्रौचित्यके विजय अत्र भी मुझे संदेह है; क्योंकि उसके मूल में क्रोध भरा हुआ था और भने सजा देने आई था । यदि उसे केवल मेरे दुःखका ही प्रदर्शन होता तो मैं उस दंड उचित समझता; परंतु उसमें निती-जुली भावनाएं थीं । इस वदनाके बाद तो में विद्यार्थियों को सुधारने की और भी अच्छी तरकीब जान गया । यदि इस मौकेर उस झलाने काम लिया होता तो क्या फल निकलता, यह में नहीं कह सकत । बह् शुक तो इस बातको उसी समय भूल गया } में नहीं कह सकता कि वह बहुत सुधर गया हो; परंतु इस प्रसंगने मेरे इन विचारोंको वहुत गति दे दी कि विद्यार्थी के प्रति शिक्षकका क्या धर्म है । उसके बाद भी युवकले ऐसा ही कसूर हुअा है; परंतु मैंने नीतिका प्रयोग कभी नहीं किया। इस तरह अात्मिक ज्ञान देनेका प्रयत्न करते हुए मैं खुद अात्माके गुणको अधिक जान सका । अच्छा मेल टॉस्टय-श्रममें मि० केलनबेकने मेरे सामने एक प्रश्न खड़ा कर दिया था। इसके पहले मैंने उसपर कभी विचार नहीं किया था । आममें कितने ही लड़के बड़े ऊधमी और वाहियात थे, कई बार भी थे । उन्हींके साथ भेरे तीन लड़के रहते थे । दूसरे लड़के भी थे, जिनका कि लालन-पालन मेरे लड़कों की तरह हुआ था; परंतु मि केलनकका ध्यान तो इस बात के तरफ था कि वे आवारा लड़के और मेरे लड़के एक साथ इस तरह नहीं रह सकते। एक दिन उन्होंने कहा---- “आपका यह सिलसिला मुझे बिलकुल ठीक नहीं मालूम [ ३६५ ]________________

इ-कई : भन ४ होता । इन लड़कों के साथ आप लड़के हैं तो इसका बुरा लीजा होला । उन अब लड़की सइदत इनको गे तो थे भिड़े बिन न | इनको सुनकर मैं थोड़ी देरके लिए खोजें पड़ा । नहीं, यह तो मुझे इस समय याद नहीं; परंतु अब उर मुझे याद है । मैंने जवाब दिया--- * अपने लड़कों और इन या लड़कों में -: है रज का हूं ? अभी तो दोनों की जिम्मेदारी मुझपर हैं। ये युवक मेरे लिये यहां ये हैं। यदि मैं रुपये दे दें तो ये आज ही जोहान्सबर्ग जर र ल ७ । आर्य नहीं, यदि उनके माता-पिता यह समझते हों कि उन लड़कों यां कर मुजर बहुत मेहरबान की है। यहां कर वे सुविधा उ हैं, यह तो आप और मैं दोनों दे रहे हैं। सो इस मंत्र ३ ब मुझे दिखाई दे रहा है। मुझे उन्हें यहीं रखना चाहिए। मेरे लड़के भी हो साथ रहें । फिर क्या आज ही मेरे लड़को यह भेद-ब सिखें कि वे में ऊंचे दर्ज हैं ? ऐसा विचार उनके दिल डाला मानो उसे उलटे रास्ते ले जाता हैं। इस स्थिति रहने से उनका जीन बनेगा, खुद-ब-खुद सारासारी परीक्षा करने रा। हम यह क्यों न माने कि उनमें न लुच कोई कुयः ह त उलटा उसीका असर उनके साथियोंपर होगा ? -कुछ भी हो; पर मैं तो उन्हें था। नहीं हटा सकता और ऐक्ष थाने में यदि कुछ जोखम है तो उसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए । इसपर वि० केनके सिर हिलाकर रह गये ।। यह नहीं कह सकते कि इस भयो तीजा बुरा हुआ। मैं नहीं पता था कि ये लड़कों को इससे कुछ नुक हु । हां, लाभ होता हुआ तो भल मैंने देखा है । में इन कि कुछ श र हो तो वह ' । गया, वे सबके साथ शिशु ना सीखे, वे लवकर ठीक हो गये ।। | इससे तथा ऐसे दूसरे का हू । वला कि दिं - নাথ ঠা-চী শিখালী যন্ত্র সু ল ভ ড শ্রী সভায় ; শা २ श्री पढ़ने से अच्छे न कि अ नुना ही हो सकता । अपने कोक संदूक बंदकर रखने से ये शुद्ध ही रहते हैं और हर किसे में 1 जाते हैं, यह कोई नियम नहीं हैं। हां, यह बात जरूर है कि जहां अनेक प्रकार

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