सत्य के प्रयोग/ इलाज क्या किया?

विकिस्रोत से
सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

[ ३८२ ]________________

अध्याय ४२ : इलाज क्य? किया ? और कुछ बाह्य उपचारसे बीमारी जरूर अच्छी हो जानी चाहिए ।। १८९० ई० में मैं डाक्टर एलिसन से मिला था, जोकि फलाहारी थे और भोजनके परिवर्तन द्वारा ही बीमारियोंका इलाज करते थे। मैंने उन्हें बुलाया । उन्होंने आकर मेरा शरीर देखा। तब मैंने उनसे अपने दूधके विरोधका जिक्र किया । इन्होंने मुझे दिलासा दिया और कहा, “दुबकी कोई जरूरत नहीं । मैं तो ग्रापको कुछ दिन ऐसी ही खुराकपर रखना चाहता हूं, जिसमें किसी तरह चका अंश न हो।' यह कहकर पहले तो मुझे सिर्फ सूखी रोटी, कच्चे शाक और फलपर ही रहने को कहा । कच्चे शकोंमें भूली, प्याज तथा इसी तरहकी दूसरी चीजें और सब्जी एवं फलोमें खासकर नारंगी । इन शाकको कीसकर या पीसकर खानेकी विधि बताई थी । कोई तीनेक दिन इसपर रहा होऊंगा। परंतु कच्चे शाक मुझे बहुत मुफिक नहीं हुए। मेरे शरीर की हालत ऐसी नहीं थी कि वह प्रयोग विधिपूर्वक किया जा सके, और न उस समय मेरा इस बातपर विश्वास ही था । इसके अलावा उन्होंने इतनी बातें और वताई---- चौबीसों घंटे खिड़की खुली रखना, रोज गुनगुने पानी में नहाना, दर्द की जगहपर तेल मलना और रावअाध घंटे तक खुली हवामें घूमना । यह सब मुझे पसंद आया । घरमें खिड़कियां इसेंच-लर्जकी थीं । उनको सारा खोल देनेसे अंदर का पानी अाता था। ऊपरका रोशनदान ऐसा नहीं था जो खुल सकता। इसलिए उसके कांच तुड़वाकर वहांसे चौबीसों घंटे हवा अानेका रास्ता कर लिया । फुच खिड़कियां इतनी खुली रखता था कि जिससे पानीकी बौछारें भीतर न आने पावें ।।. इतना सब करनेसे स्वास्थ्य कुछ सुधरा जरूर। अभी बिलकुल अच्छ। तो नहीं हो पाया था। कभी-कभी लेडी सिसिलिया राबर्ट्स मुझे देखने आतीं । उनसे मेरा अच्छा परिचय हो गया था ! उसकी प्रबल इच्छा थी कि मैं दुध पिया करू । सो. तो मैं करता नहीं था। इसलिए उन्होंने दूधके गुणवाले पदार्थोकी छानबीन शुरू की। उनके किसी मित्रने ‘माल्टेड सिल्क' बताया और अनजामें ही उन्होंने कह दिया कि इसमें दुधका लेशमात्र नहीं है, बल्कि रासायनिक विधिसे बनाई दूधके गुण रखनेवाली वस्तुओंकी बुकनी है। मैं यह जान चुका था कि लेडी राबर्टस भेरी धार्मिक भावनाशको बड़े अदरकी दृष्टिसे देखती थी। इस कारण मैने उस बुकनीको पानी में डालकर पिया [ ३८३ ]३६६ अात्म-कथा : भाग ४ तो मुझे उसमें दूध जैसा ही स्वाद आया । अब मैंने पानी पीकर जात पूछने,’ जैसी बात की । पी चुकनेके बाद बोतल पर लगी चिट को पढ़ा तो मालूम हुआ कि यह तो दूध की ही बनावट हैं । इसलिए एक ही बार पीकर उसे छोड़ देना पड़ा । लेडी राबर्टस को मैंने इसकी खबर की और लिखा कि आप ज़रा भी चिंता न करें। सुनते ही वह मेरे घर दौड़ आई और इस भूल पर बड़ा अफसोस प्रकट किया । उनके मित्र ने बोतलवाली चिट पढ़ी ही नहीं थी । मैंने इस भली बहन को तसल्ली दी और इस बात के लिए उनसे माफी माँगी कि जो चीज़ इतने कष्ट के साथ आपने भिजवाई, उसे मैं ग्रहण न कर सका । और मैंने उनसे यह भी कह दिया कि मैंने तो अनजाने में यह बुकनी ली हैं, सो इसके लिए मुझे पश्चाताप या प्रायश्चित्त करने का कोई कारण नहीं हैं ।

     लेडी राबर्टस के साथ के और भी मधुर संस्मरण हैं तो, पर उन्हें मैं यहाँ छोड़ ही देना चाहता हूं । ऐसे तो बहुत-से संस्मरण हैं जिनका महान आनंद मुझे बहुत विपत्तियों और विरोध में भी मिल सका है । श्रद्धावान् मनुष्य ऐसे मीठे संस्मरणों में यह देखता है कि ईश्वर जिस तरह दु:ख रूपी कडई औषध देता है उसी तरह वह मैत्री के मीठे अनुपान भी उसके साथ देता है ।
     दूसरी बार जब डाक्टर एलिन्सन देखने आये तो उन्होंने और भी चीज़ों की खाने की छुट्टी दी और शरीर में चर्बीं बढ़ाने के लिए मूंगफली आदि सूखे मेवों की चीज़ों का मक्खन अथवा जैतूनका तेल लेने के लिए कहा । कच्चे शाक मुआफिक न हों तो उन्हें पकाकर चावल के साथ लेने की सलाह दी । यह तजवीज मुझे बहुत मुआफिक हुई ।
     परंतु बीमारी अभी निर्मूल न हुई थी । संभाल रखने की ज़रूरत तो अभी थी ही। अभी बिछौने पर ही पड़ा रहना पड़ता था । डाक्टर मेहता बीच-बीच में आकर देख जाया करते थे और जब आते तभी कहा करते-- अगर मेरा इलाज कराओ तो देखते-देखते आराम हो जाय ।
     यह सब हो रहा था कि एक रोज मि० राबर्दूस मेरे घर आये और मुझे ज़ोर देकर कहा कि आप देश चले जाओ । उन्होंने कहा, “ऐसी हालत में आप नेटली हर्गिज़ नहीं जा सकते । कड़ाकेका जाड़ा तो अभी आगे आनेवाला है । में तो आग्रह के साथ कहता हूँ कि आप देश चले जाएँ और वहाँ चंगे हो 

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।