सत्य के प्रयोग/ ईसाइयोंसे परिचय

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

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यह सब हम ईसामसीहके नामपर मांगते हैं।' इस प्रार्थनामें भजन-कीर्तन न होते। किसी विशेष बातकी याचना ईश्वरसे करके अपने-अपने घर चले जाते। यह समय सबके दोपहरके भोजन का होता था, इसलिए सब इस तरह प्रार्थना करके भोजन करने चले जाते। प्रार्थनामें पांच मिनटसे अधिक समय न लगता।

कुमारी हैरिस और कुमारी गेबकी अवस्था प्रौढ़ थी। मि॰ कोट्स क्वेकर थे। ये दोनों महिलायें साथ रहतीं। उन्होंने मुझे हर रविवारको ४ बजे चाय पीनेके लिए अपने यहां आमंत्रित किया। मि॰ कोट्स जब मिलते तब हर रविवारको उन्हें मैं अपना साप्ताहिक धार्मिक-रोजनामचा सुनाता। मैंने कौन-कौन-सी पुस्तकें पढ़ीं, उनका क्या असर मेरे दिलपर हुआ, इसकी चर्चा होती। ये कुमारिकायें अपने मीठे अनुभव सुनातीं और अपनेको मिली परम-शांतिकी बातें करतीं।

मि॰ कोट्स एक शुद्ध भाववाले कट्टर युवक क्वेकर थे। उनसे मेरा घनिष्ट संबंध हो गया। हम बहुत बार साथ घूमने भी जाते। वह मुझे दूसरे भाइयोंके यहां ले जाते।

कोट्सने मुझे किताबोंसे लाद दिया। ज्यों-ज्यों वह मुझे पहचानते जाते त्यों-त्यों जो पुस्तकें उन्हें ठीक मालूम होतीं, मुझे पढ़नेके लिए देते। मैंने भी केवल श्रद्धाके वशीभूत होकर उन्हें पढ़ना मंजूर किया। इन पुस्तकोंपर हम चर्चा भी करते।

ऐसी पुस्तकें मैंने १८९३ में बहुत पढ़ीं। अब सबके नाम मुझे याद नहीं रहे हैं। कुछ ये थीं—सिटी टेंपलवाले डा॰ पारकरकी टीका, पियर्सनकी 'मेनी इनफॉलिबल प्रूफ्स', बटलर कृत 'एनेलाजी' इत्यादि। कितनी ही बातें समझमें न आतीं, कितनी ही पसंद आतीं, कितनी ही न आतीं। यह सब मैं कोट्ससे कहता। 'मेनी इनफॉलिबल प्रूफ्स'के मानी हैं 'बहुतसे दृढ़ प्रमाण', अर्थात् बाइबलमें रचयिताने जिस धर्मका अनुभव किया उसके प्रमाण। इस पुस्तकका असर मुझपर बिलकुल न हुआ। पारकरकी टीका नीतिवर्द्धक मानी जा सकती है; परंतु वह उन लोगोंकी सहायता नहीं कर सकती जिन्हें ईसाई-धर्मकी प्रचलित धारणाओंपर संदेह हैं। बटलरकी 'एनेलाजी' बहुत क्लिष्ट और गंभीर मालूम हुई। उसे पांच-सात बार पढ़ना चाहिए। वह नास्तिक को आस्तिक बनानेके लिए लिखी गई मालूम हुई। उसमें ईश्वरके अस्तित्वको सिद्ध करनेके लिए जो युक्तियां [ १४५ ]
दी गई हैं, उनसे मुझे लाभ न हुआ; क्योंकि यह मेरी नास्तिकताका युग न था; और जो युक्ति‍यां ईसामसीहके अद्वितीय अवतारके संबंधमें अथवा उसके मनुष्य और ईश्वरके बीच संधि-कर्ता होनेके विषयमें दी गई थीं, उनकी भी छाप मेरे दिलपर न पड़ी।

पर कोट्स पीछे हटनेवाले आदमी न थे। उनके स्नेहकी सीमा न थी। उन्होंने मेरे गलेमें वैष्णव-कंठी देखी। उन्हें यह वहम मालूम हुआ, और देखकर दु:ख हुआ। "यह अंध-विश्वास तुम जैसों को शोभा नहीं देता। लाओ तोड़ दूं।

"यह कंठी तोड़ी नहीं जा सकती। माताजीकी प्रसादी है।"

"पर तुम्हारा इसपर विश्वास है?

"मैं इसका गूढ़ार्थ नहीं जानता। यह भी नहीं भासित होता कि यदि इसे न पहनूं तो कोई अनिष्ट हो जायगा। परंतु जो माल मुझे माताजीने प्रेमपूर्वक पहनाई है, जिसे पहनानेमें उसने मेरा श्रेय माना, उसे मैं बिना प्रयोजन नहीं निकाल सकता। समय पाकर जीर्ण होकर जब यह अपने आप टूट जायगी तब दूसरी मंगाकर पहननेका लोभ मुझे न रहेगा; पर इसे नहीं तोड़ सकता।"

कोट्स मेरी इस दलीलकी कद्र न कर सके; क्योंकि उन्हें तो मेरे धर्मके प्रति ही अनास्था थी। वह तो मुझे अज्ञान-कूपसे उबारनेकी आशा रखते थे। वह मुझे इतना बताना चाहते थे कि अन्य धर्मोंमें थोड़ा-बहुत सत्यांश भले ही हो; परंतु पूर्ण सत्य-रूप ईसाई-धर्मको स्वीकार किये बिना मोक्ष नहीं मिल सकता, और ईसामसीहकी मध्यस्थताके बिना पाप-प्रक्षालन नहीं हो सकता, तथा सारे पुण्य कर्म निरर्थक हैं। कोट्सने जिस प्रकार पुस्तकोंसे परिचय कराया उसी प्रकार उन ईसाइयोंसे भी कराया, जिन्हें वह कट्टर समझते थे। इनमें एक प्लीमथ ब्रदर्सका भी परिवार था।

'प्लीमथ ब्रदरन्' नामक एक ईसाई-संप्रदाय है। कोट्सके कराये बहुतेरे परिचय मुझे अच्छे मालूम हुए। ऐसा जान पड़ा कि वे लोग ईश्वर-भीरू थे; परंतु इस परिवारवालोंने मेरे सामने यह दलील पेश की—"हमारे धर्मकी खूबी ही तुम नहीं समझ सकते। तुम्हारी बातोंसे हम देखते हैं कि तुम हमेशा बात-बातमें अपनी भूलोंका विचार करते हो, हमेशा उन्हें सुधारना पड़ता है, न सुधरें तो उनके लिए प्रायश्चित्त करना पड़ता है। इस क्रियाकांडसे तुम्हें मुक्ति [ १४६ ]
कब मिल सकती है? तुमको शांति तो मिल ही नहीं सकती। हम पापी हैं, यह तो आप कबूल ही करते हैं। अब देखो हमारे धर्म-मन्तव्यकी परिपूर्णता। वह कहता है मनुष्यका प्रयत्न व्यर्थ है। फिर भी उसे मुक्तिकी तो जरूरत है ही। ऐसी दशामें पापका बोझ उसके सिरसे उतरेगा किस तरह? इसकी तरकीब यह कि हम उससे ईसामसीह पर ढो देते हैं; क्योंकि वह तो ईश्वरका एकमात्र निष्पाप पुत्र है। उसका वरदान है कि जो मुझे मानता है वह सब पापोंसे छूट जाता हैं। ईश्वरकी यह अगाध उदारता है। ईसामसीहकी इस मुक्ति-योजनाको हमने स्वीकार किया है, इसलिए हमारे पाप हमें नहीं लगते। पाप तो मनुष्यसे होते ही हैं। इस जगत् में बिना पापके कोई कैसे रह सकता है? इसलिए ईसामसीहने सारे संसारके पापोंका प्रायश्चित्त एकबारगी कर लिया। उसके इस बलिदानपर जिसकी श्रद्धा हो वही शांति प्राप्त कर सकता है। कहां तुम्हारी शांति और कहां हमारी शांति।"

यह दलील मुझे बिलकुल न जंची। मैंने नम्रता-पूर्वक उत्तर दिया—"यदि सर्वमान्य ईसाई-धर्म यही हो, जैसाकि आपने बयान किया है, तो इसमें मेरा काम नहीं चल सकता। मैं पापके परिणामसे मुक्ति नहीं चाहता, मैं तो पाप-प्रवृत्तिसे, पाप-कर्मसे मुक्ति चाहता हूं। जबतक वह न मिलेगी, मेरी अशांति मुझे प्रिय लगेगी।"

प्लीमथ ब्रदरने उत्तर दिया—"मैं तुमको निश्चयसे कहता हूं कि तुम्हारा यह प्रयत्न व्यर्थ है। मेरी बातपर फिरसे विचार करना।"

और इन महाशयने जैसा कहा था वैसा ही कर भी दिखाया—जान बूझकर बुरा काम कर दिखाया।

परंतु तमाम ईसाइयोंकी मान्यता ऐसी नहीं होती, यह बात तो मैं इनसे परिचय होनेके पहले भी जान चुका था। कोट्स खुद पाप-भीरु थे। उनका हृदय निर्मल था, वह हृदय-शुद्धिकी संभावनापर विश्वास रखते थे। वे बहनें भी इसी विचारकी थीं। जो-जो पुस्तकें मेरे हाथ आईं उनमें कितनी ही भक्तिपूर्ण थीं, इसलिए प्लीमथ ब्रदर्सके परिचयसे कोट्सको जो चिंता हुई थी उसे मैने दूर कर दिया और उन्हें विश्वास दिलाया कि प्लीमथ ब्रदरकी अनुचित धारणा के आधारपर मैं सारे ईसाईधर्मके खिलाफ अपनी राय न बना लूंगा। मेरी कठिनाइयां

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