सत्य के प्रयोग/ कांग्रेसमें

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

[ २४९ ] आया । अंग्रेजी भाषाका दौर-दौरा भी देखा । इससे उस समय भी दुःख हुआ था । मैंने देखा कि एक दसके करने के काममें एक से अधिक आदमी लग जाते और कुछ जरूरी कामको तो कोई भी नहीं करता था !

मेरा मन इन तमाम बातोंकी आलोचना किया करता था। परंतु चित्त उदार था---इसलिए, यह मान लेता कि शायद इससे अधिक सुधार होना असंभव होगा । फलतः किसीके प्रति मनमें दुर्भाव उत्पन्न न हुआ ।

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कांग्रेसमें

कांग्रेसकी बैठक शुरू हुई। मंडपका भव्य दृश्य, स्वयंसेवकोंकी कतार, मंचपर बड़े-बूढ़ोंके समुदायको देखकर मैं दंग रह गया । इस सभामें भला मेरा क्या पता चलेगा, इस विचारसे मैं बेचैन हुआ ।

सभापतिका भाषण एक खासी पुस्तक थी । उसका पूरा पढ़ा जाना मुश्किल था । कोई-कोई अंश ही पढ़े गये ।

फिर विषय-निर्वाचिनी समिति सदस्य चुने गये । गोखले मुझे उसमें ले गये थे ।

सर फिरोजशाहूने मेरा प्रस्ताव लेना स्वीकार तो कर ही लिया था। मैं यह सोचता हुआ समितिमें बैठा था कि उस प्रस्तावको समितिमें कौन पेश करेगा, कब करेगा, आदि। हर प्रस्तावपर लंबे-लंबे भाषण होते थे और सब-केसब अंग्रेजीमें। प्रत्येक प्रस्तावके समर्थक कोई-न-कोई प्रसिद्ध पुरुष थे। इस नक्कारखानेमें मुझे तूतीकी आवाज कौन सुनेगा ? ज्यों-ज्यों रात जाती थी, त्यों-त्यों मेरा दिल धड़कता था। मुझे याद आता हैं कि अंतमें रह जानेवाले प्रस्ताव आजकलके वायुयानकी गतिसे चलते थे । सब घर भागनेकी तैयारीमें थे । रातके ११ बजे गये । मेरी बोलनेको हिम्मत न होती थीं । पर मैं गोखलेसे मिल लिया था और उन्होंने मेरा प्रस्ताव देख लिया था ।

उनकी कुरसीके पास जाकर मैंने धीरेसे कहा[ २५० ] "मेरी बात न भूलिएगा।"

उन्होंने कहा--- " तुम्हारा प्रस्ताव मेरे ध्यानमें हैं। यहांकी जल्दी तो तुम देख ही रहे हो । पर मैं उसे भूलमें न पड़ने दूंगा ।"

"अब सब ख़तम हुआ न? " सर फिरोजशाह बोले ।

"अभी तो दक्षिण अफ्रीकाका प्रस्ताव बाकी हैं न ? मि० गांधी बैठे कबके राह देख रहे हैं।" गोखले बोल उठे ।

"अपने उस प्रस्तावको देख लिया है ?" सर फिरोजशाहने पूछा।

"हां, जरूर।"

"आपको ठीक जंचा है ?"

“हां, सब ठीक है ।"

“तो गांधी, पढ़ो तो ।"

मेंने कांपते हुए पढ़ सुनाया।

गोखलेने उसका समर्थन किया ।

“सर्वसम्मतिसे पास---सव बोल उठे ।

"गांधी, तुम पांच मिनट बोलना ।" अच्छा बोले ।

इस दृश्यसे मुझे खुशी न हुई । किसीने प्रस्तावको समझ लेनेका कष्ट न उठाया । सब भाग-दौड़ में थे । गोखलेके देख लेने से औरोंने देखने-सुननेकी जरूरत न समझी ।

सुबह हुई ।

मुझे तो अपने भाषणकी पड़ी थी । पांच मिनटमैं क्या कहूंगा ? मैंने अपनी तरफसे तैयारी तो ठीक-ठीक की थी; परंतु आवश्यक शब्द न सुझते थे । इधर यह निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो लिखित भाषण न पढूंगा । पर ऐसा प्रतीत हुआ, मानो दक्षिण अफ्रीकामें बोलने की जो नि:संकोचता आ गई थी। वह् यहां खो गई ।

मेरे प्रस्तावका समय था और सर दीनशीनें मेरा नाम पुकारा । मैं खड़ा हुआ; सिर चक्कर खाने लगा। ज्यों-त्यों करके प्रस्ताव पढ़ा । किसी कविने अपनी एक कविता समस्त प्रतिनिधियोंमें बांटी थी । उसमें विदेश जाने और समुद्र-यात्रा करनेकी स्तुति की गई थी। मैंने उसे पढ़ सुनाया और दक्षिण अफ्रीका

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