सत्य के प्रयोग/ फिनिक्सकी स्थापना

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

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अत्मक र ४ १६ फिनिक्सकी स्थापना सुबह होते हैं। मैंने सञसे पहले बेस्टसे इस सबंधों बातें कीं । 'सर्वोदय'का जो प्रभाव मेरे मनपर पड़ा वह मैंने उन्हें कह सुनाया और सुझाया कि 'इंडियन प्रोपीनियनको एक खेतपर ले जायं तो कैसा ? वहां सब एक साथ रहें, एकसा भोजन-खर्च लें, अपने लिए सब खेती कर लिया करें और बचतके समय में इंडियन ओपीनियन का काम करें। वेस्टको यह बात पसंद हुई। भोजन-खर्चको हिसाब लगाया गया तो कम-से-कम तीन पौंड प्रति मनुष्य अाया। उसमें काले-गोरे का भेद-भाव नहीं रखा गया था । । परंतु प्रेसमें काम करनेवाले तो कुल ८-१० आदमी थे। फिर सवाले यह था कि जंगलमें जाकर बसनेमें सबको सुविधा होगी या नहीं ? दूसरा सवाल यह था कि सब एकसा भोजन-खर्च लेनेके लिए तैयार होंगे या नहीं ? आखिर इस दोनोंने तो यही तय किया कि जो इस तजबीज में शरीक न हो सकें वे अपनः वेतन ले लिया करे---- किंतु आदर्श यही रक्खा जाय कि धीरे-धीरे सब कार्यकर्ता संस्थावासी हो जायं ।। | इस दृष्टिले मैंने समस्त कार्य-कत्तसे बातचीत शुरू की। मदनजीतको । यह बात विलकुल पसंद न हुई । उन्हें अंदेशा हुआ कि जिस चीजमें उन्होंने अपना जी-जान लगाया उसे मैं कहीं अपनी मूर्खतासे एकाध महीनेमें ही मिट्टीमें न मिला इ। उन्हें भय हुआ कि इस तरह ‘इंडियन ओपीनियन बंद हो जायगड़ा, प्रेस भी दृट जायगा और सब कार्यकर्ता भाग खड़े होंगे । । मेरे भतीजे छगनलाल गांधी उस प्रेसमें काम करते थे। उनसे भी मैंने : वेस्टके साथ ही बात की थी। उनपर परिवारका बोझ था; किंतु बचपनसे ही। उन्होंने मेरे नीचे तालीम लेना और काम करना पसंद किया था। मुझपैर उनका बहुत विश्वास था । इसलिए उन्होंने तो बिना दलील और हुज्जतके ही हो । कर ली और तबसे आजतक वह मेरे साथ ही है । ." तीसरे थे गोविः सामी' शीर्दैन । वहु भी शामिल हो गये । दूसरे ६ जयि । [ ३२५ ]________________

अध्याय १६ : फिनिक्सकी स्थायल लोग यद्यपि संस्थावाची न बने, पर फिर भी उन्होने जहां प्रेस या नहीं जाना इस तरह कार्यक्रतोंके साथ बातचीत करने में से अधिक दिन गये हो, होस याद नहीं पड़ता। तुरंत ही मैंने अखदार विज्ञापन दिया कि इरबनके नजदीक दिन भी स्टेशदके पाल जमीन झाश्यक है। उनमें किन्।ि जमीन संदेा । वेस्ट इज देने ये और सात दिन अंदर २० एकड़ नच ले ला । में एक छोटा-ना ना न भ था । कुछ शाम र के पेड़ थे । स ही ८० एकड़ एक र दुका । उनु फलके इ ज्या थे , एक झोपड़ा भी था ! कुछ समय बाद उसे भी खरीद लिया। दोनों मिलकर १००० पर लगे । सेठ पारसी रुस्तमजी मेरे ऐसे तमाम साहुसके काम में मेरे साथी होते थे। उन्हें मेरी यह तजवीज पसंद आई। इसलिए उन्होंने अपने एक गोदाम टन वगैरा, जो उनके पास पड़े थे, नुक्त हमें दे दिये । कितने ही हिंदुस्तानी बढ़ई और राज, जो मेरे साथ लड़ाईमें थे, इसमें मदद देने लगे और कारखाना बनने लुगा । एक महीने में कान तैयार हो गया। वह ७५ फीट लंबा और ५० फीट चौड़ा था । वेस्ट वगैरह अपने शरीरको खतरेमें डालकर भी बइई आदिके साथ रहने लगे ।। | फिनिक्समें धाक्ष खूब थी और आबादी बिलकुल नहीं थी । इससे सांप अदिक उपद्रव रहता था और खतरा भी था। शुरू में तो हम तंदू तानकर ही रहने लगे । मुख्य भान तैयार होते ही हम लोग एक सप्ताह बहुतेरा सामान गाड़ियोंपर लादकार किलिन चले गये । डेरइन शौर फिलिमें तेरह मीलका फासला था । फिनिक्स स्टेशनले ढाई मील दूर था । . इक्ष स्थान-परिवर्तनके कारण सिर्फ एक ही सप्ताह 'इंडियन ओपीनियनको रक्यूरी प्रेसमें छपाना पड़ा था । मेरे साथ मेरे जो-जो रिश्तेदार वगैरा वहां गये और व्यापार आदि में लग गये थे उन्हें अपने मतमें मिलानेका और फिनिक्समें दाखिल करनेका प्रयत्न मैंने शुरू किया । वे सब तो धन जमा करनेकी उमंग दक्षिण अफ्रीका में थे ।

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