सत्य के प्रयोग/ मवक्किल जेल से कैसे बचा?

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

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अत्मि-कथा : भाग ४ बह अपनी व्यापार-संबंधी भी बहुत-सी बातें मुझसे किया करते थे, फिर भी एक बात मुझसे छिपा रखी थी। वह चुंगी चुरा लिया करते थे । बंबई-कलकत्तेसे जो माल मंगाते उसकी चुंगीमें चोरी कर लिया करते थे। तमाम अधिकारियोंसे उनका. राह-रसूक अच्छा था। इसलिए किसीको उनपर शक नहीं होता था। जो बीजक वह पेश करते उसपरसे चुंगीकी रकम जोड़ ली जाती । शायद कुछ कर्मचारी ऐसे भी होंगे, जो उनकी चोरीकी ओरसे आंखें मूंद लेते हों । . . परंतु आखा भगतकी यह वाणी कहीं झूठी हो सकती है ? --- 'काचो पारो खावो अन्न, तेवं छे चोरी नुं धन ।” ( यानी कच्चा पारा खाना और चोरीका धन खाना बराबर है।) एक बार पारसी रुस्तमजीकी चोरी पकड़ी गई । तब वह मेरे पास दौड़े आये । उनकी आंखोंसे आंसू निकल रहे थे। मुझसे कहा-- “भाई, मैंने तुमको धोखा दिया है। मेरा पाप आज प्रकट हो गया है। मैं चुंगीकी चोरी करता रहा हूं। अब तो मुझे जेल भोगने के सिवा दूसरी गति नहीं है। बस, अब में बरवाद हो गया। इस अाफत मेंसे तो आप ही मुझे बचा सकते हैं। मैंने वैसे आपसे कोई बात छिपा नहीं रक्खी है; परंतु यह समझकर कि यह व्यापारकी चोरी है, इसका जिक्र आपसे क्या करूं, यह बात मैंने आपसे छिपाई थी । अब इसके लिए पछताता हूँ ।" मैंने उन्हें धीरज और दिलासा देकर कहा--- " मेरा तरीका तो आप जानते ही हैं । छुड़ाना-न-छुड़ाना तो खुदके हाथ है। मैं तो आपको उसी हालत में छुड़ा सकता हूं जब आप अपना गुनाह कबूल कर लें ।' | यह सुनकर इस भले पाका अह्रा उतर गया । | " परंतु मैंने आपके सामने कबूल कर लिया, इतना ही क्या काफी नहीं है ? " रुस्तमजी सेठने पूछा ।। | " अापने कसूर तो सरकारका किया है, तो मेरे सामने कबूल करने से क्या होगा ? ” मैंने धीरेसे उत्तर दिया । : " अंतको तो मैं वही करूंगा, जो आप बतायेंगे; परंतु मेरे पुराने वकीलकी भी तो सलाह ले लें, वह मेरे मित्र भी हैं।' पारसी रुस्तमजी ने कहा। [ ३९४ ]________________

अध्याय ४७ : वकिल जैलसे कैसे बचा ? . अधिक पूछ-ताछ करनेसे मालूम हुआ कि यह चोरी बहुत दिनोंसे होती आ रही थी । जो चोरी पकड़ी गई थी वह तो थोड़ी ही थी । पुराने वकील पास हम लोग गये। उन्होंने सारी बात सुनकर कहा कि “यह मामला जूरी के पास जायगी । यहांके जूरी हिंदुस्तानीको क्यों छोड़ने लगे ? पर मैं निराश होना नहीं चाहता ।' इन वकीलके साथ मेरा गाढ़ा परिचय न था । इसलिए पारसी रुस्तमजीने ही जवाब दिया--- " इसके लिए आपको धन्यवाद है। परंतु इस मुकदमे में मुझे मि० गांधीकी सलाहके अनुसार काम करना है। वह मेरी बातोंको अधिक जानते हैं। आप जो कुछ सलाह देना मुनासिब समझे हमें देते रहिएगा।" | इस तरह थोड़े में समेटकर हम रुस्तमजी सेठकी दुकानपर गये । मैंने उन्हें समझाया--- “मुझे यह मामला अदालतमें जाने लायक नहीं दिखाई देता । मुकदमा चलाना न चलाना चुंगी-अफसरके हाथ में है । उसे भी सरकारके प्रधान वकीलकी सलाहसे काम करना होगा । मैं इन दोनोंसे मिलने के लिए तैयार हूं, परंतु मुझे तो उनके सामने यह चोरीकी बात कबूल करना पड़ेगी, जोकि वे अभीतक नहीं जानते हैं। मैं तो यह सोचता हूं कि जो जुरमाना वे तजवीज कर दें उसे मंजूर कर लेना चाहिए। बहुत मुमकिन है कि वे मान जायंगे । परंतु यदि न मानें तो फिर आपको जेल जानेके लिए तैयार रहना होगा। मेरी राय तो यह है कि लज्जा जेल जाने में नहीं, बल्कि चोरी करनेमें है। अब लज्जाका काम तो हो चुका; यदि जेल जाना पड़े तो उसे प्रायश्चित्त ही समझना चाहिए । सच्चा प्रायश्चित्त तो यह है कि अब गेसे ऐसी चोरी न करनेकी प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए। मैं यह नहीं कह सकता कि रुस्तमजी सेठ इन सब बातोंको ठीकटीक समझ गये हों । वह बहादुर आदमी थे। पर इस समय हिम्मत हार गये थे। उनकी इज्जत बिगड़ जाने का मौका आ गया था और उन्हें यह भी डर था कि खुद मिहनत करके जो यह इमारत खड़ी की थी वह कहीं सारी-की-सारी न देह जाय । | उन्होंने कहा-- “मैं तो आपसे कह चुका हूं कि मेरी गर्दन पके हाथ में है । जैसा आप मुनासिब समझे वैसा करें । मैंने इस मामलेमें अपनी सारी कला और सौजुन्य खर्च कर डाला। [ ३९५ ]________________

अभि-कथा :गि ४ चुंगीके अफसरसे मिला, चौरीकी सारी बात मैंने नि:शंक होकर उनसे कहूदी, यह भी कह दिया कि “आप चाहें तो सब कागज-पत्र देख लीजिए । पारसी रुस्तमजीको इंस घटनापर बड़ा पश्चात्ताप हो रहा है ।। अफसरने कहा- "मैं इस पुराने पारसीको चाहता हूं । उस की तो यह बेवकूफी है; पर इस मामलेमें मेरा फर्ज क्या है, सो आप जानते हैं। मुझे तौ प्रधान वकीलकी आज्ञाके अनुसार करना होगा। इसलिए आप अपनी समझानेकी सारी कलाका जितना उपयोग कर सके वहां करें ।'

  • यदि पारसी रुस्तमजीको अदालतमें घसीट ले जाने पर जोर न दिया जाय तो मेरे लिए बस है ।'

इस अफसरसे अभय-दान प्राप्त करके मैने सरकारी वकीलके साथ पत्रव्यवहार शुरू किया और उनसे मिला भी । मुझे कहना चाहिए कि मेरी सत्यप्रियताको उन्होंने देख लिया और उनके सामने मैं यह सिद्ध कर सका कि मैं कोई बात उनसे छिपाता नहीं था। इस अथवा किसी दूसरे मामले में उनसे साका पड़ा तो उन्होंने मुझे यह प्रमाण-पत्र दिया था--- " मैं देखता हूं कि आप जबाबमें 'ना' तो लेना ही नहीं जानते ।" : रुस्तमजीपर मुकदमा नहीं चलाया गया । हुक्म हुआ कि जितनी चोरी पारसी रुस्तमजीने कबूल की है उसके दूने रुपये उनसे ले लिये जाये और उनपर मुकदमा न चलाया जाय । •. - रुस्तमजीने. अपनी इस चुंगी-चोरीका किस्सा लिखकर कांच में जड़ाकर अपने दफ्तरमें टांग दिया और अपने वारिसों तथा साथी व्यापारियों को ऐसा न करनेके लिए खवरदार कर दिया । रुस्तमजी सेठके व्यापारी मित्रोंने मुझे सावधान किया कि यह सच्चा वैराग्य नहीं, स्मशान बैराग्य है । पर मैं नहीं कह सकता कि इस बातमें कितनी सत्यता हो । जब मैंने यह बात रुस्तमजी' सेठ कही तो उन्होंने जवाब दिया कि श्रापको धोखा देकर मैं कहां जाऊंगा ।

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