साहित्य का उद्देश्य/37

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साहित्य का उद्देश्य
द्वारा प्रेमचंद
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प्रेम-विषयक गल्पों से अरुचि
 

जनता की साहित्यिक रुचि के विषय में बुकसेलरों से अच्छी जानकारी शायद ही किसी को होती हो। और लोग अक़लीगद्दा लगाते हैं, बुकसेलर को इसका प्रत्यक्ष अनुभव होता है। अभी थोड़े दिन हुए एक समाचार पत्र ने कई बडे-बड़े बुकसेलरों से पूछा था कि आजकल आप लोगों के यहाँ किस विषय की पुस्तकों की ज्यादा माँग है। इसका बुकसेलरों ने जो उत्तर दिया, उसका साराश यों है:

'जहाँ तक पुस्तकों की बिक्री का सम्बन्ध है, कल्पना साहित्य बड़ी आसानी से प्रथम स्थान ले लेता है। कहानियों के संग्रह, उपन्यास, नाटक और कई विख्यात लेखकों के निबन्ध-यह सब इसी श्रेणी में आ जाते हैं। लेकिन प्रेम-विषयक और शृङ्गारपूर्ण रचनाओं की अब उतनी खपत नहीं रही, जितनी कई साल पहले थी। क्या इसका मतलब यह है कि प्रेम-कथाओं और कामोत्तेजक विषयों में लोगों की दिलचस्पी कम होती जा रही है? नहीं। प्रेम और काम सम्बन्धी साहित्य में लोगों की रुचि बढ़ रही है। हाँ, अब जनता को केवल भावुकता और विकलता से सन्तोष नहीं होता, प्रेम और विवाह आदि का वह वास्तविक और तात्विक ज्ञान प्राप्त करना चाहती है, और इस तरह के साहित्य की माँग बढ़ रही है। उपन्यासों में भी 'सेक्स' सम्बन्धी समस्याओं की चर्चा केवल विरह और मिलन तक नहीं रहती, गृहस्थी और विवाह पर एक नवीन और विचार-पूर्ण ढंग से विचार किया जाने लगा है। प्रेम की मधुर कल्पनाओं से हटकर जन-रुचि विवाह और घर और नर-नारी के [ २८३ ]असली जीवन की ओर अधिक झुका हुआ है। जनता केवल कविता नहीं चाहती, गम्भीर-विचार और वैज्ञानिक प्रकाश चाहती है। विनोदपूर्ण साहित्य और रोमांचकारी जासूसी कहानियों की ओर जनता का प्रेम ज्यों-का-त्यों बना हुआ है। पी॰ जी॰ वुडहाउस और थार्न स्मिथ की हास्य कथाओं का बहुत अच्छा प्रचार है। आम तौर पर जो यह ख्याल है कि ऊँची श्रेणी के लोगों में घासलेटी साहित्य और रक्त और हत्या से भरी हुई कथाओं का विशेष प्रचार है-कम-से-कम हिन्दुस्तान में उसकी पुष्टि नहीं होती।'


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